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जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के सौ बरस

सन 1919 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था भारतीयों को इस युद्ध में ब्रिटिशों की सहायता के बदले में पुरस्कार के नाम पर मिला रौलट एक्ट जैसा काला कानून. अब तक ब्रिटिश संसद शासन के हिमायती रहे गांधी को यह भारत लौटने पर ब्रिटिशों द्वारा दिया गया पहला झटका था. 100 years of Jallianwala Bagh Massacre

पहला झटका इसलिए क्योंकि इससे पहले चम्पारण में तीनकठिया के विरोध में चला आन्दोलन हो, अहमदाबाद मिल मजदूर आन्दोलन हो या खेड़ा का किसान आन्दोलन हो गांधी की बातें मानी गयी थी. गांधी ने पहले विश्व युद्ध में भारतीयों को ब्रिटिशों का साथ देने के लिए प्रेरित भी किया जिसके बदले में ब्रिटिश सरकार ने रौलेट कानून दिया.

सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिशों के आधार पर बना कानून भारत प्रतिरक्षा विधान का ही विस्तारित रूप रौलेट कानून कहलाया था. क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए बनाये गए इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज कर सकती थी और तो और अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था.

इस कानून के विरोध में गांधी भारत में पहला अखिल भारतीय आन्दोलन चलाया रौलेट सत्याग्रह. आंदोलन के तहत जुलूस निकाले जाने थे और प्रदर्शन होने थे. रौलेट आन्दोलन में ही गांधी ने पहली बार भारत में व्यापक हड़ताल का आयोजन किया. देशभर में रौलेट सत्याग्रह जारी था और पर्दे के पीछे कांग्रेस असहयोग आन्दोलन की तैयारी में पूरे जोर-शोर से लग चुकी थी.

10 अप्रैल का दिन था पंजाब के दो बड़े कांग्रेसी नेता डॉ सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया गया. 10 अप्रैल के दिन दोनों नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर लोग अमृतसर के उप कमीश्नर के घर जा पहुंचे और शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करने लगे.

उप कमीश्नर ने विरोध कर रहे लोगों पर गोलियां चलवा दी. इसके बाद पूरे अमृतसर में कई हिंसात्मक घटनाएँ हुई. इस हिंसात्मक घटना में पांच यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई. ब्रिटिश सरकार ने इसके बाद जहां-तहां गोली चलवा दी जिसमें आठ से दस भारतीय मारे गए. 100 years of Jallianwala Bagh Massacre

10 अप्रैल का दिन था. अमृतसर में मार्सेला शेरवुड नाम की युवा नन ने हिंसात्मक घटनाओं के चलते अपने स्कूल में छुट्टी करवा दी. मार्सेला शेरवुड वह अपनी साइकिल से लौट रही थी तो कुछ लोगों ने उसे रोका और उसे पीटा. कुछ ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि मार्सेला शेरवुड के कपड़े फाड़कर उसे बाजार में घुमाया और एक संकरी गली में फेंक दिया.

फोटो : नेशनल आर्मी म्यूजियम से साभार

इस घटना के संबंध में नेशनल आर्मी म्यूजियम नाम की एक वैबसाइट में एक फोटो मौजूद है. इसमें लिखा गया है कि मार्सेला शेरवुड को पीटा गया जिसके बाद वह बच गयी. ब्रिटिश अधिकारीयों ने जिस गली में यह घटना घटी वहां भारतीय पुरुषों को रेंगेते हुए चलाया गया. ब्रिटिश अधिकारियों ने उस क्षेत्र में रहे सभी पुरुषों को गली में रेंगेते हुए चलने की सजा दी. इस संबंध में डायर का मत था कि

भारतीय को यूरोपीय महिला को अपनी देवियों के समान पवित्र मानना चाहिये और उनके सामने हमेशा वैसे ही दंडवत रहना चाहिये जैसे वह अपनी देवियों के सामने रहता है.

इसके बाद पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था. अमृतसर में 10 अप्रैल वाली घटना के बाद शांति थी बांकी के पंजाब में भी लगभग शान्ति रही. 13 फरवरी वैशाखी का दिन था अधिकांश लोगों को इस मार्शल लॉ लागू होने की जानकारी नहीं थी.

बैशाखी के दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जाने के बाद लोग उससे सटे बाग़ जलियांवाला बाग़ में इक्कट्ठा होने लगे जहां एक छोटी से सभा होनी थी. थोड़ी देर में वहां सभा का आयोजन हो गया. लोग बैशाखी के दिन मेले में घुमने और शहर देखने आये थे. कांग्रेस नेता रोड़ीयों को ही मंच बना उसके ऊपर चढ़ भाषण देने लगे.

जब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को सभा की खबर हुई तो वह 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंच गया. उसने चारों तरफ से बाग़ को घेरा और बिना किसी चेतावनी के गोलियां बरसाने के आदेश दे दिये.

अगले दस मिनट तक 1650 राउंड गोलियां चली. ब्रिटिशों के सरकारी दस्तावेज के अनुसार इस काण्ड में 200 लोगों के घायल होने और 379 के मारे जाने की बात स्वीकार की गयी है. जबकि अनाधिकारिक आकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 1000 से ऊपर है. बाग़ में लगी एक पट्टी के अनुसार बाग़ में मौजूद कुएं से ही केवल 120 शव मिले थे.

ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने घटना की सूचना तत्कालीन पंजाब गवर्नर जनरल ओ. डायर को दी जिसने उसके कदम को सही मानते हुए उसकी प्रशंसा की. खुद ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर अगले दिन अमृतसर की जनता से कहा कि

लोग तय करें की युद्ध चाहिये या शांति. शांति चाहिये तो हर दिन की तरह अपनी दुकानें खोलें और रोजमर्रा के जीवन में जुट जायें. अगर लोग ऐसा नहीं करते हैं तो मैं मानूंगा की लोगों को युद्ध चाहिये. मेरे लिये सभी युद्ध एक से हैं अगर यूरोपीयन लोगों की हत्या का बदला लेना हुआ तो आपसे और आपके बच्चों से लिया जायेगा.

जलियांवाला बाग हत्याकांड की विश्वभर में आलोचना की गयी बावजूद इसके ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को कर्नल बनाया गया. ब्रिटेन की ऊपरी संसद ने तो प्रशंसा प्रस्ताव तक पारित कर दिया.

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की जांच के लिये हंटर कमीशन बैठाया गया. जिसमें ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को निर्दोष बताया गया. कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपना बयान देते हुए कहा कि

मैं गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहां गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी लकर गया था लेकिन संकरे रास्ते के कारण वह वहां नहीं जा पाई थीं. सभा करने की मनाही थी मैंने तुरंत फायर करने के आदेश दिये. मुझे लोगों के वहां से भगाना नहीं था बल्कि उनके मन में खौफ पैदा करना था कि आगे से कोई ऐसा न करे.

रेजीनॉल्ड डायर की मौत 1928 में प्राकृतिक कारणों से हुई. 13 मार्च 1940 को लन्दन के कैकस्टन हॉल में उधमसिंह ने हत्या की वह जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के दौरान पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर था.

1920 में कांग्रेस ने एक ट्रस्ट बनाकर यहां स्मारक की स्थापना की. 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलीजाबेथ ने यहां आकर शहीदों को श्रद्धाजंली दी. 2013 में जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भारत आये उन्होंने जलियांवाला बाग काण्ड की विजिटर्स बुक में लिखा कि ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी. 100 years of Jallianwala Bagh Massacre

बीते दस अप्रैल को जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के सौ साल पूरे होने के बाद पहली बार ब्रिटेन की संसद ने इस पर खेद जताया है. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरसा मे ने संसद में कहा कि जो हुआ उसपर हमें बेहद अफ़सोस है. हालांकि विश्व के सबसे नृशंस हत्याकांडों में शामिल जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर ब्रिटेन ने कभी मांफी नहीं मांगी है.

– गिरीश लोहनी

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Girish Lohani

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