पर्यावरण

स्वच्छ पेयजल के लिए संघर्ष करता उत्तराखण्ड का गांव

वर्ष 2024 तक देश के 19 करोड़ घरों तक पीने का साफ़ पानी पहुंचाने का केंद्र सरकार का लक्ष्य हर उस भारतीय के लिए उम्मीद की एक किरण है जो आज भी पीने के साफ़ पानी से वंचित हैं. विशेषकर उन ग्रामीण महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा, जिनका आधा जीवन केवल पानी लाने में ही बीत जाता है. भले ही शहरों में नल के माध्यम से घर घर तक पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह सुविधा किसी ख्वाब से कम नहीं है. विशेषकर उत्तराखंड के लमचूला जैसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए तो हर घर नल योजना किसी वरदान से कम नहीं होगी. जहां आज भी लोगों को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है. किसानों को खेतों में सिंचाई का मुद्दा हो या घर के किसी अन्य कार्य में पानी की ज़रूरत हो, इसकी किल्लत हमेशा बरकरार रहती है. (Uttarakhand Village Struggling for Clean Drinking Water)

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से करीब 20 किमी दूर गरूड़ ब्लॉक स्थित लमचूला गांव न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से बल्कि शैक्षणिक रूप से भी पिछड़ा हुआ है. लगभग सात सौ की आबादी वाले इस गांव की अधिकतर आबादी अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति से संबंध रखती है. प्रकृति की गोद में बसे इस गांव की आबादी मवेशी पालन और खेती पर निर्भर है. गांव में बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव है. न तो यहां पक्की सड़क है, न 24 घंटे बिजली की व्यवस्था. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी गांव से दूर है. लेकिन दैनिक जीवन में इस गांव के लोग जिस कठिनाइयों का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं वह है पीने का साफ़ पानी. इसकी कमी ने लमचूला के लोगों के जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है. न वह मवेशियों के लिए पीने के पानी का उचित प्रबंध कर पाते हैं और न ही अपने दैनिक जीवन में उनकी पूर्ति हो पाती है. विशेषकर महिलाओं और किशोरियों का जीवन पीने के साफ़ पानी को जमा करने के लिए ही गुज़र जाता है. 

सूखता पेयजल स्रोत

इस संबंध में गांव की एक 28 वर्षीय महिला नीतू देवी का कहना है कि गांव में पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें प्रतिदिन पांच किमी दूर नलधूरा नदी जाकर पानी लाना पड़ता है, जिससे समय की हानि के साथ साथ स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. सबसे अधिक कठिनाई वर्षा और अत्यधिक ठंड के दिनों में होती है. जब कच्ची पगडंडियों के कारण फिसलने का खतरा बना रहता है. उन्होंने बताया कि गांव में पाइपलाइन तो बिछी हुई है, लेकिन वह अक्सर बरसात के दिनों में टूट जाता है, जिसे ठीक कराने में काफी लंबा समय बीत जाता है, जब तक ठीक होकर काम के लायक होता है तब तक फिर से बारिश का मौसम आ जाता है. वहीं बुज़ुर्ग मोतिमा देवी पानी की समस्या को गंभीर बताते हुए कहती हैं कि गांव में पाइपलाइन बिछे होने का क्या लाभ, जब हमें दूर जाकर जलधाराओं से पानी भरना होता है? महिलाएं छोटे छोटे बच्चों को घर में छोड़कर पानी लाने के लिए जाने पर मजबूर हैं. जबकि पानी दैनिक जीवन का सबसे अभिन्न अंग है, केवल इंसान ही नहीं बल्कि मवेशियों के लिए भी पानी की व्यवस्था करनी होती है. बरसात में जमा किये पानी का उपयोग मवेशियों के लिए उपलब्ध तो हो जाता है, लेकिन घर के सदस्यों के लिए साफ़ पानी ही चाहिए.

माहवारी के दौरान लड़कियों संग होने वाले अमानवीय व्यवहार पर कपकोट से 11वीं की छात्रा मंजू की रपट

पानी की कमी का सीधा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर भी पड़ रहा है. जल संग्रहण के लिए घर की महिलाओं के साथ साथ उन्हें भी प्रतिदिन पांच किमी जाना पड़ता है. जिससे उनकी पढ़ाई अधूरी रह जाती है. इसके कारण कुछ लड़कियों का स्कूल भी छूट जाता है. गांव की किशोरियां गीता और कविता के अनुसार गांव में पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हमें घर का सारा काम करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं का अधिकतर समय पानी जमा करने में ही गुज़र जाता है. जिसके कारण उन्हें पढ़ाई का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है. वह कहती हैं कि कई बार माहवारी के समय असहनीय दर्द में उन्हें भी पानी लाने जाना पड़ता है. जिसकी वजह से काफी कष्ट होता है और स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. पानी की कमी से वह स्वयं की साफ़-सफाई पर भी ध्यान नहीं दे पाती हैं. इन किशोरियों का कहना है कि स्कूल में भी उन्हें पानी की कमी का बहुत अधिक सामना करना पड़ता है. कई बार स्कूल के शौचालय में पानी नहीं होने के कारण किशोरियां स्कूल जाने से घबराती हैं. यही कारण है कि स्कूल में लड़कियों का ड्राप आउट देखने को मिलता है. लेकिन इस समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है या इसे मामूली बात समझी जाती है. 

पानी है मगर पीने लायक नहीं

पानी की समस्या के जल्द हल निकालने की बात करते हुए लमचूला पंचायत के सदस्य बलवंत राम कहते हैं कि पंचायत इस समस्या की गंभीरता को समझता है, इसलिए हम संबंधित विभाग के निरंतर संपर्क में हैं. पंचायत इसकी पूरी कोशिश कर रहा है और सब कुछ ठीक होने में अभी भी 6 से 8 माह का समय लग सकता है. बहरहाल सरकार का हर घर जल योजना अर्थात जल जीवन मिशन का उद्देश्य 2024 तक देश के सभी घरों में पीने का साफ़ पानी पहुंचना है. योजना का मुख्य फोकस ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं होता है और इसके लिए उन्हें मीलों पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है. इस योजना के तहत इंफ्रास्ट्रचर को भी मज़बूत करना है, जिससे जल संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा सके ताकि भविष्य में पानी की कमी को भी दूर किया जा सके. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस योजना के आने से लमचूला के लोगों की पानी की समस्या हल हो जाएगी, जिससे किशोरियों को भी अपनी शिक्षा प्राप्त करने में आई रुकावट दूर होगी. (Uttarakhand Village Struggling for Clean Drinking Water)

लमचूला, बागेश्वर, उत्तराखंड की कुमारी माहेश्वरी का यह लेख हमें चरखा फीचर से प्राप्त हुआ है.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

3 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

4 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

4 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

1 month ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

1 month ago

अनास्था : एक कहानी ऐसी भी

भावनाएं हैं पर सामर्थ्य नहीं. भादों का मौसम आसमान आधा बादलों से घिरा है बादलों…

1 month ago