उत्तराखंड में अंतरिम जमानत अब निचली अदालत से ही मिल जाएगी. हाईकोर्ट ने राज्य में भारतीय दंड संहिता की धारा 438 को प्रभावी बना दिया है.अब किसी भी अपराध के आरोपित को अंतरिम जमानत के लिए हाईकोर्ट नहीं आना पड़ेगा.
अब किसी भी अपराध के आरोपित को अंतरिम जमानत के लिए हाईकोर्ट नहीं आना पड़ेगा. निचली अदालतों को भी अंतरिम जमानत देने का अधिकार मिल गया है. इससे आरोपित को जेल जाने से पहले ही जमानत मिल जाए.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील स्वीकार करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है.
दरअसल देश के तमाम राज्यों ने आईपीसी की धारा 438 को प्रभावी बनाया है, मगर उत्तराखंड इसमें शामिल नहीं था.यूपी की तर्ज पर अब उत्तराखण्ड में भी जल्द संशोधन से जुड़ा विधेयक अगले विधानसभा सत्र में रखा जाएगा.
त्रिवेन्द्र सरकार आगे होने वाले विधानसभा के सत्र में संशोधन विधेयक लाएगी. बिल के पास होने के बाद 1976 से चला आ रहा कानून खत्म हो जाएगा और अग्रिम जमानत की व्यवस्था बहाल हो जाएगी.
अविभाजित यूपी में 1976 में एक कानून बनाया गया था जिसके तहत सीआरपीसी की धारा 438 में संशोधन किया गया था. धारा 438 ही नागरिकों को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी मुकदमे में गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए कोर्ट से पहले ही ज़मानत हासिल कर ले.
यूपी ने 1976 में धारा 438 में संशोधन करके अग्रिम जमानत की व्यवस्था को खत्म कर दिया था. साल 2000 में उत्तराखण्ड बनने के बाद से लेकर अभी तक 1976 का पुराना कानून यहां भी लागू था.
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