सत्तर के दशक के शुरूआती साल होंगे. पिथौरागढ़ महाविद्यालय में स्नातकोत्तर की कक्षायें शुरु हो चुकी थी. 1963 में बने पिथौरागढ़ महाविद्यालय में पहले छात्र संघ के चुनाव 1970 में हुये थे. पहले अध्यक्ष ईश्वरी दत्त पन्त हुये. इस समय तक पिथौरागढ़ महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता था.
उत्तराखंड के पहाड़ों में कालेज पढ़ने वाले बच्चों को अपनी मार्कशीट में सुधार से लेकर बैक पेपर, डिग्री लाने तक के लिये छात्रों को आगरा जाना पड़ता. पूरे उत्तराखंड में एक आन्दोलन चला जिसका नाम था “कुमाऊं-गढ़वाल विश्वविद्यालय बनाओ आन्दोलन”.
इस बीच 1972 में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के अध्यक्ष चुने गये निर्मल भट्ट. अध्यक्ष चुने जाने के बाद से ही निर्मल भट्ट ने महाविद्यालय के नाकारा अध्यापकों को वहां से हटाने की मांग को लेकर आन्दोलन शुरु करा दिया.
नैनीताल समाचार पत्र में छपे एक लेख में पिथौरागढ़ के वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह महर बताते हैं कि इस दौरान छात्र संघ में भूपेन्द्र माहरा उपाध्यक्ष, इकबाल बख्श सचिव और हयात सिंह तड़ागी जी कोषाध्यक्ष के पद पर थे. छात्र संघ के आन्दोलन कि मांग पर प्रशासन ने कुछ दिन के लिये अध्यापकों को छुट्टी पर भेज दिया और फिर पुनः भाल कर दिया.
इससे छात्र उग्र हो गये और कुछ छुटपुट तोडफोड हुई. इसी शाम को छात्र नेताओं के नाम वारंट निकाल दिये गये. निर्मल भट्ट प्पद्यौ गांव में नेपालियों के भेष में भूमिगत हो गये जबकि भूपेन्द्र सिंह माहरा, इकबाल बक्श और राजू पुनेडा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और अल्मोड़ा ले गई.
15 दिसम्बर, 1972 को छात्रों की बहस जिलाधिकारी से हो गई. सिल्थाम चौराहे पर, फिर कोतवाली का घेराव हुआ जिसके बाद रामलीला मैदान में छात्र इकट्ठा हुये. अचानक सुबह की खुन्नस में बौखलाये जिलाधिकारी रोशनलाल ने गोली चलाने का मौखिक आदेश दे दिया, जबकि स्थिति नियंत्रण में थी, 10 से 15 लोग इस गोलीकांड में घायल हुये और सज्जन लाल शाह नाम के एक हाईस्कूल के छात्र और निर्मल भट्ट के नेपाली भेष में होने के धोखे में एक नेपाली मजदूर सोबन सिंह की गोली लगने से मौत हो गई.
आनन्द वल्लभ उप्रेती अपनी किताब हल्द्वानी का इतिहास में बताते हैं कि गोलीकांड की जांच के लिये बनी फैक्ट फाईडिंग समिति में छात्रों का पक्ष रखने के लिये नैनीताल से दयाकिशन पाण्डे आये. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि प्रशासन की लापरवाही के कारण यह गोलीकांड हुआ और गोली चलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी.
इस गोलीकांड के बाद उ.प्र. सरकार दबाव में आई और जनवरी 1973 में कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी का गजट नोटिफिकेशन हो गया. फरवरी से विश्वविद्यालय शुरु भी हो गये. यूनिवर्सिटी बनी नैनीताल में.
पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का एक बयान जारी किया जिसमें बताया गया कि अल्मोड़ा लोकसभा सीट के लिये एक अलग से यूनिवर्सिटी बनाई जा रही है. यह यूनिवर्सिटी अल्मोड़ा जिले में स्थित होगी.
सीमांत जिलों के क्षेत्रों के नाम पर बनाई जा रही यह यूनिवर्सिटी अल्मोड़ा में बनाई जा रही है जिसकी वर्तमान कुमाऊं यूनिवर्सिटी नैनीताल से दूरी 3 घंटे की है.
पिथौरागढ़ महाविद्यालय में मुनस्यारी, धारचूला, थल, डीडीहाट, गंगोलीहाट, बुंगाछिना, जौलजीवी, झूलाघाट जैसे न जाने कितने सीमांत क्षेत्रों के युवा सपने लिये आते हैं. इन क्षेत्रों के युवाओं के नाम पर विश्वाविद्यालय खोला जा रहा है अल्मोड़ा में. कितना जायज है पिथौरागढ़ महाविद्यालय के होते हुये अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय खोले जाने का प्रस्ताव?
पिथौरागढ़ महाविद्यालय, यूनिवर्सिटी को लेकर यूजीसी के सभी नार्म्स लगभग पूरे करता है उसकी अनदेखी क्यों की जा रही है? एक शहर जहाँ से यूनिवर्सिटी बनने का आन्दोलन शुरु हुआ, उसकी सरकार द्वारा लगातार अनदेखी की जा रही है.
पिथौरागढ़ महाविद्यालय के वर्तमान छात्र संघ के अध्यक्ष राकेश, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष महेंद्र, छात्र नेता शिवम बताते हैं कि यूनिवर्सिटी की माँग को लेकर पिछले दस दिनों में उन्होंने शहर भर में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया है. जिसे पूरे शहर के लोगों ने समर्थन दिया है. उन्होंने इस संबंध में सरकार को ज्ञापन भी सौंपा है.
11 फरवरी को 12 बजे, पिथौरागढ़ में यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर पिथौरागढ़ छात्र संघ ने एक जनसभा, टकाना रामलीला मैदान में बुलायी है. जिसमें कालेज के छात्रो के अलावा पिथौरागढ़ महाविद्यालय के बहुत से पूर्व पदाधिकारी भी शामिल होने वाले हैं.
पिथौरागढ़ में पहले से एक महाविद्यालय के बावजूद अब क्यों पिथौरागढ़ में यूनिवर्सिटी की मांग की जा रही है? इस प्रश्न पर महेंद्र कहते हैं कि पिथौरागढ़ महाविद्यालय हर साल हजारों की संख्या में बहुत दूर के गांवों से युवा सपने लेकर आते हैं. लेकिन सरकारी नियमों के अनुसार सभी को एडमिशन नहीं दिया जा सकता क्योंकि महाविद्यालय के तमाम विभागों में पढ़ाने के लिये कोई है ही नहीं.
राकेश कहते हैं कि कालेज में 7000 युवा पढ़ते हैं लेकिन यहां हास्टल 50 लड़के और 35 लड़कियों के लिये है. लड़कों के हास्टल में तो खाना तक नहीं बनता. लाइब्रेरी के नाम कर विज्ञान जैसे हर दिन बदलने वाले विषयों की 1967 के प्रकाशन की किताबें हैं. अन्य विभागों का हाल इससे भी बुरा है. पिथौरागढ़ महाविद्यालय में लाइब्रेरी के लिये सरकार से किसी भी प्रकार के अनुदान का प्रावधान ही नहीं है. कालेज प्रशासन के सामने जब भी किसी सुधार की बात रखी जाती है तो कालेज फंड का रोना रोता है.
यूनिवर्सिटी बनने से मजबूरी में सही लेकिन प्रशासन को यूजीसी के नार्म्स पूरे करने ही होंगे. जिससे उसका अपना फंड होगा जिसका लाभ सीधा सीमांत क्षेत्र के बच्चों को होगा. यूनिवर्सिटी बनने से प्रशासन को पूरे अध्यापक भी रखने होंगे.
शिवम बताते हैं कि हम अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय खोलने के प्रत्युत्तर में कोई आन्दोलन नहीं चला रहे हैं. हम चाहते हैं कि अगर सरकार सीमांत क्षेत्र के लोगों के नाम पर कोई यूनिवर्सिटी बना रही है तो वह पिथौरागढ़ में बनाये. जिससे वाकई सीमांत क्षेत्रों के लोगों का भला हो.
इन सबके अतिरिक्त अगर पिथौरागढ़ में यूनिवर्सिटी बनती है तो इसके अंदर चंपावत, बेरीनाग, गंगोलीहाट, मुनस्यारी आदि क्षेत्रों के कालेज आयेंगे. जाहिर सी बात है अल्मोड़ा से ज्यादा पिथौरागढ़ आने में यहां के युवाओं को सुविधा होगी. इस बात का कोई तर्कसम्मत उत्तर सरकार के पास भी नहीं है कि अल्मोड़ा में क्यों यूनिवर्सिटी बनायी जाये.
छात्र संघ के अन्य नेताओं का कहना है कि पिथौरागढ़ में यूनिवर्सिटी की मांग पर पूरा शहर एकमत है. भाजपा और कांग्रेस के कई नेता इस मुद्दे को पार्टी हाईकमान तक पहुँचा चुके हैं. दोनों दलों के कई सारे नेताओं ने तो माँग न माने जाने पर पार्टी लीक से हटकर समर्थन देने की बात कही है.
– काफल ट्री डेस्क
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