Featured

उत्तराखण्ड में इष्ट देवता

इष्ट देवता का सामान्य अर्थ है मान्य, आदरणीय, पूज्य देवशक्ति. लेकिन उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में इसका अर्थ है वह देवी या देवता जिसे किसी परिवार, कुटम्ब अथवा समुदाय द्वारा वंशागत रूप से पूजा जाता है.

गढ़वाल में इन देवी-देवताओं के प्रतीकात्मक लिंग या त्रिशूल घरों के कमरों की ताखों में स्थापित किये जाते हैं. कई जगह पाषाण लिंगों को घरों की मुंडेर में भी स्थापित किया जाता है.

कुमाऊं में इनकी स्थापना के स्थान नियत किये गए होते हैं.

इष्ट देवताओं की स्थिति पौराणिक देवी-देवताओं से भिन्न हुआ करती है. कभी-कभार इष्ट देवता या कुल देवता के रूप में किसी पौराणिक देवी या देवता को भी माना जाना दिखाई देता है.

हर परिवार का अपना मान्य इष्ट देवता, कुलदेवता हुआ करता है. इष्ट देवताओं की कृपादृष्टि बनाये रखने और दैवीय, भौतिक व सांसारिक विपत्तियों से बचाए रखने के लिए परिवार और समुदायों द्वारा नियमित रूप से पूजा, अनुष्ठान इत्यादि किये जाते हैं. इन पूजा अनुष्ठानों में कुल के सभी परिवार सम्मिलित हुआ करते हैं. इसमें पारंपरिक घर में रह रहे लोगों के अलावा विभिन्न कारणों से अन्यत्र बस गए परिजन भी आवश्यक रूप से शामिल हुआ करते हैं.

इस पूजा में जागर, घड़ियाला लगाकर डंगरिया/पस्वा में देवता का अवतरण करवाया जाता है. उससे आशीष लिया जाता है और पारिवारिक विपत्तियों के कारण और निवारण के बारे में भी जाना जाता है.

कुल देवता-इष्ट देवता इस दौरान पारिवार व कुल के आपसी विवादों को निपटाने में न्यायाधीश का काम भी किया करते हैं. वे कुल के विवादों को सुनते हैं और सभी पक्षों को आवश्यक निर्देश दिया करते हैं.

सामान्यतः इन आयोजनों में पशुबलि दिए जाने की भी परम्परा है.

विद्वानों का मानना है कि यह परम्परा शायद कबीलाई युग की दें है. उस दौर में कबीले के सभी सदस्यों सम्मिलित होकर और एकता बनाकर रहना उनके अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी हुआ करता था.

( उत्तराखण्ड ज्ञानकोष: प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

AddThis Website Tools
Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

3 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

3 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago