क्या आपको पता है? उत्तराखंड के किस स्थान पर एक ही दिन में दो बार सूर्योदय और दो बार सूर्यास्त होता है? चलिए हम ही बताते हैं, वह स्थान है मालिपा यानि मालपा गाँव, हाँ! हाँ! वही मालपा गाँव जो 18 अगस्त 1998 में भू स्खलन के बाद तबाह हो गया. इस भू स्खलन से मालिपा, सरकारी आंकड़ों के अनुसार मशहूर नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी समेत 60 मानसरोवर यात्रियों तथा अन्य यात्रियों को मिलाकर 221 लोगों और स्थानीय लोगों के हिसाब से 300 से अधिक लोगों की कब्रगाह बन गयी थी. (Sunrise Sunset Twice a Day)
मालिपा में दो बार सूर्योदय और सूर्यास्त होता है? इस संदर्भ में क्षेत्र में पहेलियाँ भी बूझी जाती थी—
“तिग बंग मिन ट्वोनी जई बंग ख़्वो निष्य च्वो नी जयरखन निष्य च्वो नी र्खन, जइ मी सै मिन ट्वोयंग अती मी खर छयोयंग म्ता नै ख्हैनै ख्है.”
यानि उस जगह का नाम बताओ जहां पर दो बार सूर्य उदय होता है और दो बार सूर्य अस्त होता है, जो बताएगा उसे एक किला मिलेगा नहीं बता पाए तो कुछ नहीं.
असल में मालिपा में दुनिया में प्रकृति विरुद्ध कोई असम्भव घटना नहीं घटती है बल्कि यहां की भौगोलिकता ऐसी है कि घाटी में स्थित होने के कारण एक विशेष समय में सूर्योदय के बाद गतिमान सूर्य सामने के पर्वत के पीछे कुछ समय के लिए छुप जाता और फिर आगे बढ़ते हुए पुनः प्रकट होता है. इस क्रम में ऐसा लगता है जैसे सूर्य दो बार उदय हो रहा हो और दो बार अस्त हो रहा हो.
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वास्तव में भू स्खलन से पहले मालिपा कैलाश मानसरोवर यात्रा का सबसे सुकून दायक पड़ाव हुआ करता था. प्राचीन काल से ही मालपा व्यासी शौकाओं के लिए पशुपालन और ऋतु प्रवास का पसंदीदा स्थल रहा है. क्योंकि व्यास घाटी के बाद दक्षिण की ओर पहला ऐसा स्थान था जो काफी गर्म और जाड़ों में पशुपालन के लिए चारे से भरपूर बढ़िया स्थान था.
अगस्त 1998 से पहले तक व्यासी लोगों की कुंचा यानि माइग्रेशन के रास्ते का सबसे पसंदीदा पड़ाव रहा है क्योंकि मालिपा में, कुंचा आने जाने वालों के डेरों के सबसे निकट पशुओं के लिए चारे की प्राप्ति होती थी. कहते हैं कि प्राचीन काल से ही व्यास घाटी के लोग यहां घाम तापने आते थे जिसके लिए चंद शासकों और गोरखा शासकों द्वारा व्यास घाटी के व्यासी शौकाओं से घामतपुवा टैक्स वसूला जाता था.
(लेखक गोविन्द सिंह गुन्जियाल जवाहर नवोदय विद्यालय, बागेश्वर में शिक्षक हैं)
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