अमित श्रीवास्तव

जब `स्पानी फ़्लू’ की तीसरी लहर लौटकर आई

वो वापस आई! 

प्रथम विश्व युद्ध अपने साथ अमरीका के तिरपन हज़ार सैनिकों को ले गया था और उसकी मृत्यु–सहोदरा पिचहत्तर हज़ार सैनिक खींच ले गई! 

ग्यारहवें महीने के ग्यारहवें दिन के ग्यारहवें घंटे में बंदूकों ने आग उगलनी बंद की. वो साल उन्नीस सौ अठारह था. पहला विश्व युद्ध समाप्त हो गया. लेकिन मौत का तांडव एक हल्के विश्राम के बाद फिर से अपने शबाब पर आ गया. तीसरी बार. इस बार थोड़ा गुपचुप तरीके से.

इसके पहले के माहौल में बीमारी का भय था. संशय था, एक दूसरे पर शक और आरोप–प्रत्यारोप था. खांसने–छींकने वालों को अलग कर दिया जाता था. गांव–शहर में दूसरी जगह से आने वालों को ठहरने की जगह नहीं मिलती थी. ट्रेन से अजनबियों को बीच रास्ते उतार दिया जाता था. लेखिका मेरी मैककार्थी अपनी आत्मकथा में उस घटना का मार्मिक ज़िक्र करती हैं जिसमें उनके बीमार पिता ने ट्रेन के कंडक्टर के ऊपर पिस्तौल तान दी थी जो उनके बीमार परिवार को ट्रेन से नीचे उतर जाने को कह रहा था. उन्हें मेडिकल हेल्प के लिए दूसरे शहर जाना था और वो उनके पिता के साथ–साथ मां की भी आखिरी यात्रा साबित हुई थी.

दवाओं, ज़रूरी सामानों की कालाबाजारी के साथ–साथ अपराध भी देखने में आ रहे थे. मोंटाना शहर में एक व्यक्ति ने अपने परिवार का इलाज करने के लिए पिस्तौल की नोक पर एक डॉक्टर का अपहरण कर लिया. सैन फ्रांसिस्को में स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी को सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का नियम कठोरता से लागू करवाने के एवज में चिट्ठी बम तक डिलीवर हो गया.

मास्क भी राहजनी के काम आ रहा था, फैशन के भी. फैशन के लिहाज़ से देखें तो तीन तरह के मास्क प्रचलन में थे– पहले एजिनकोर्ट, वो जिनके थूथन आगे की ओर निकले हुए होते थे जैसे कि पंद्रहवीं शताब्दी के एजिनकोर्ट काल में सैनिकों के शिर स्त्राण यानी हेलमेट में हुआ करता था. दूसरे, राविओली जिसमें बिना लटकन वाला सिर्फ एक चौकोर टुकड़ा मुंह और नाक को ढांप लेता था. पुलिस वाले इस तरह के मास्क लगाया करते थे. और तीसरे, स्कार्फ की तरह के यशमक या चिलमन जो मुख्यतः युवतियों में मशहूर थे.

लॉ एंड ऑर्डर की स्थितियां वहां बहुत बेकाबू हो जाती थीं जहां फ्लू से मुतल्लिक कानून बहुत सख्ती से लागू किया जा रहा था. उन मकान मालिकों पर हत्या के मुकदमे दर्ज हुए जिनके बीमार किराएदार किराया न दे पाने की वजह से घर से निकाले गए और फ्लू से उनकी मृत्यु हो गई. डॉक्टरों पर फ्लू के मरीजों की सूचना सरकार को न देने पर फाइन लगाया गया. सैकड़ों की संख्या में लोग सार्वजनिक स्थानों पर थूकने के लिए दंडित किए गए. खुलेआम बिना मास्क के घूमने वालों और खुले मुंह छींकने वालों को `दुश्मन नंबर वन’ का खिताब दिया गया. एरिजोना के प्रेसकॉट शहर में हाथ मिलाना जेल भेज देने के लिए पर्याप्त अपराध था. लोगों को समझाने, धमकाने और मनाने की कवायद एक साथ चल रही थी–

Obey the laws
And wear the guaze
Protect your jaws
From septic paws

संशय, अनिश्चितता और डर के माहौल में लोग विक्षिप्त हो रहे थे. डॉक्टर को घर बुलाकर घर से भाग जाना, अजनबियों, दोस्तों यहां तक कि अपने बेहद प्रिय लोगों पर बीमार होने का शक़ करना, उनसे दूर भाग जाना, परिवार समेत आत्म हत्या कारित कर लेना जैसी चीजें होती रही थीं.

डॉक्टर, नर्स और पुलिस कर्मियों को छोड़िए इतने फायर मैन इंफेक्टेड थे कि वॉशिंगटन के फायर मार्शल का कहना था सारा शहर जलकर ख़ाक हो जाएगा अगर गलती से कहीं छोटी सी भी आग लग गई. अस्पतालों की स्थिति यह थी कि मरीज़ों को बेड मिलने की सुविधा अंडरटेकर (जिसका काम अंतिम क्रिया की कार्यवाही करना होता है) की क्षमता के समानुपातिक हो गयी थी. जितनी तेज़ी से वो मरे हुए लोगों को पिछले दरवाज़े से निकाल पाएगा, बीमार लोगों को अस्पताल के अगले दरवाज़े से प्रवेश मिल पाएगा. बहुत से स्थानों पर सैनिकों को कब्र खोदने के काम में ड्यूटी लगी थी. ताबूत काले मोतियों के जैसे कीमती और दुर्लभ हो चले थे यहां तक कि कई जगह बनी हुई कब्रों को खोदकर उससे ताबूत की चोरी कर नए मुर्दों को दफनाने के काम में लाया गया. सामूहिक कब्रें बन रही थीं. फिलाडेल्फिया शहर में कैथोलिक चैरिटीज़ के हेड फादर जोसफ ने छः घोड़ा-लॉरियों का एक काफ़िला बनाया जो दिन भर घर-घर जाकर मरे हुए लोगों को इकठ्ठा करके सामूहिक अंतिम क्रिया संपन्न करवाता था. लोगों को यह बताया गया था कि घर में किसी के मरने पर उसे तत्काल बाहर गली, सड़क पर रख दें. गाड़ी उन्हें उठा ले जाएगी.    

लेकिन यही वो वक्त था जब सहयोग, सेवा और सहभागिता की अद्भुद मिसालें भी कायम हुई थीं. व्यक्तिगत मकानों, होटलों में अस्पताल बने, लोगों ने अपनी गाड़ियां एंबुलेंस सेवाओं के लिए दीं, किसी ने राशन बांटा, किसी ने पके हुए भोजन की सुविधा दी. ड्यूटी खत्म करके पुलिस वाले, फायर ब्रिगेड के जवानों ने अस्पतालों में सेवाएं दीं, शिक्षकों ने घरों में जाकर नर्स के कार्य किए. विल्सन नॉर्मल स्कूल जिसे `सूप किचन’ में तब्दील कर दिया गया था के एस्थर जॉन नामक एक युवा शिक्षक बताते हैं कि `एक दिन एक बुढिया आई उसने कहा मैं और तो कुछ नहीं कर सकती बर्तन मांज सकती हूं. उसे सेवा के लिए रख लिया गया. उस बुजुर्ग जर्जर महिला ने दिन रात बर्तनों के ढेर के ढेर मांजे. हीप्स एंड माउंटेन्स ऑफ डिशेज!’

अब जब साल उन्नीस सौ अठारह के आखिरी महीनों में युद्ध समाप्त हो चुका था और चारों तरफ ‘जॉनी गेट योर गन’* गूंज रहा था. काराखानों के सायरन, चर्च की घंटियां और हवा में दागे गए हर्ष फायर का अनुनाद हवाओं में उत्साह और उत्सव घोल रहा था. गली, सड़कों, चौराहों पर लोग थे, सैनिकों को चूमा जा रहा था उनके लिए तालियां बज रही थीं, सम्मान कार्यक्रम हो रहे थे. इन सबके बीच वो फिर आई. मायाविनी! स्पैनिश लेडी! 

दरअसल वो कहीं गई ही नहीं थी. हां इतना भर था कि किसी स्प्रिंग की तरह वो खिंच कर ढीली छूट गई थी. तीसरी बार उसमें हुए खिंचाव, जिसे ‘स्प्रिंग वेव’ कहा गया, का उल्लेख युद्ध की उपलब्धियों के आगे अख़बारों के पिछले सफहों में सिमट गया. एक और अजीब बात रही कि शहरों में एक ही महीने में हज़ारों लोगों के मरने को सामान्य सर्दी ज़ुखाम से जोड़ दिया गया. राष्ट्रवाद और भक्ति चरम पर थी. जनता की स्मृति कितनी हल्की हो सकी है ये उसका उदाहरण था. लोग भूल गए कुछ हफ्ते पुरानी बातें. शीर्ष नेतृत्व में वैज्ञानिक चेतना का अभाव क्या–क्या गुल खिला सकता है ये उसका भी उदाहरण है. 

पेरिस पीस कांफ्रेंस से लौटकर राष्ट्रपति विल्सन को भी 103 डिग्री बुखार हुआ जिसे डॉक्टर ने स्पैनिश फ्लू का प्रकोप कहा. लेकिन स्वयं राष्ट्रपति ने कभी इन्फ्लूएंजा को गंभीरता से नहीं लिया. कहते हैं कि उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध की शांति संधि यानी वर्साय की संधि पर अपने बीमारी के कक्ष में ही दस्तख़त किए थे. कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि इस बीमारी के बाद वो कभी शारीरिक और मानसिक रूप से चंगे नहीं हो सके. उनके गोपनीय सेवा सहायक स्टर्लिंग का तो ये कहना था कि वो अक्सर वो महत्वपूर्ण ब्रीफकेस यहां–वहां भूल आते थे जिसमें सुरक्षा संबंधी सबसे ज़रूरी दस्तावेज रखते थे. उन्हें लगता था कि वो चारों तरफ से जासूसों से घिर गए हैं. वो अपने फर्नीचर अपनी कार को भी सशंकित निगाहों से देखते थे. अगले ही साल सितंबर आते न आते उन्हें एक हार्ट स्ट्रोक हुआ और वो हमेशा के लिए सामाजिक जीवन से दूर हो गए और अपने जीवन में हमेशा के लिए अक्षम.

इन्फ्लूएंजा का उनके ऊपर इतना प्रभाव पड़ा था कि मानसिक अस्थिरता की वजह से ही वो अपने शांति समझौते के 14 बिंदुओं वाले प्रस्ताव से डिगे और सिर्फ एक प्रस्ताव ‘लीग ऑफ नेशंस’ की स्थापना पर सिमट गए. कहा जाता है कि वर्साय की संधि की वजह से जर्मनी पर कठोर प्रतिबंध लगे जिसका नतीजा अगले दो दशकों में उभरे हुए राष्ट्रवाद, हिटलर और दूसरे विश्व युद्ध के रूप में विश्व को भुगतना पड़ा. ये स्पैनिश फ्लू की तीसरी लहर का असर था.

एक बीमारी ने विश्व राजनीति के नक़्शे में ग़ैर मामूली रद्दोबदल कर दी जिसकी चर्चा भर के लिए किसी भी ज़िम्मेदार सरकार के पास पर्याप्त आंकड़े, विश्लेषण या कागज़ात भी उपलब्ध नहीं हैं. क्योंकि लोग भूल गए. एक बीमारी जिसके बारे में कहते हैं कि दुनिया के सभी लोगों ने अपने परिवार से किसी न किसी को खो दिया. एक बीमारी जिसने मानवता का इतिहास हिला कर रख दिया, एक बीमारी जिसने चार लाख पचास हज़ार रूसी, तीन लाख पिचहत्तर हज़ार इतालवी, दो लाख अट्ठाइस हज़ार ब्रितानी, दो लाख पच्चीस हज़ार जर्मन और दो करोड़ भारतीय नागरिकों को कुछ महीनों के भीतर मार दिया, उसे लोग भूल गए!

अमरीका से लगातार सैनिकों की खेप भेजी जा रही थी. राष्ट्रपति विल्सन को उनके सलाहकारों ने सैनिक न भेजने की सलाह दी थी और ये चेतावनी भी कि बीमारी विकराल हो सकती है, शक्तिपुंज अमरीका से सैनिक भेजे जाते रहे!

राष्ट्रपति बाइडेन को यह सलाह दी गई थी कि तालिबान पर दो दशकों के कठोर नियंत्रण को ढीला न छोड़ा जाए, अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस न बुलाया जाए, शक्तिपुंज अमरीका ने सैनिकों को वापस बुला लिया! लोग भी

लेख की कई महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए लिनेट लिजुओनी की लिखी किताब ‘इन्फ्लूएंजा 1918’ का आभार. 
*जॉर्ज एम कोहन का लिखे गीत ‘ओवर देयर’ की लाइन, जो अमरीका की सेना में बहुत लोकप्रिय रहा. 

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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इसे भी पढ़ें: सौ बरस पहले जब कोविड 19 जैसे ही एक वायरस `स्पानी फ़्लू’ ने तबाही मचाई

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