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गरतांग गली की रोमांचक यात्रा

पिता द्वारा सुनाये गये किस्से, कहानियां ताजीवन पिता से ही अपने होते हैं यह अपनापन मुझे गरतांग गली तक पहुंचते हुए साहसिक, रोमांचक  पैदल यात्रा करते हुए महसूस हुआ. मेरी अचेतन स्मृतियों में गरतांग, नेलंग, जादुंग जैसे शब्द कहीं चिर-परिचित से जमे हुए महसूस हो रहे थे. कारण – आफिस के दौरे से वापस आकर पिताजी अक्सर अपने दौरे के अनुभव, संस्मरण हमसे साझा किया करते थे उन्हीं साझा अनुभवों में जो उन्हें सबसे प्रिय था वह भैरोघाटी से होकर गुजरना और नेलंग, जादुंग, जाड़ गंगा के बारे में हमें बताना. 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद गरतांग पुल को व्यापार के लिए बंद कर दिया गया था. (Gartang Gali)

बचपन में भैंरोघाटी से नेलांग घाटी और जाड़ गंगा के किनारे चट्टानों से लटके हुए गरतांग गली के बारे में पिताजी से अक्सर सुना करती थी. इसलिए स्मृतियों के धागे को मन ही मन मैं कतार में बुनती हुई गरतांग गली का जोख़िम भरा सफर तय कर रही थी. दरअसल दुर्धर्ष सफर से जुड़ी विशेष स्मृतियों के भंवर में गोते लगाना आपके दुर्गम सफर को आसान ही करती है इसलिए मेरे लिए स्मृतियों की उन्हीं पगडंडियों पर सजीव गुजरकर गरतांग गली तक पहुंचना आसान हुआ.  

गरतांग गली उत्तरकाशी जिले से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

गंगोत्री दर्शन के बाद हम गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंच गये हैं. गरतांग गली जाने के लिए गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क के बैरियर पर उत्तराखंड सरकार द्वारा दो सौ रुपए शुल्क लिया जाता है. गरतांग गली नेलंग घाटी में गंगोत्री से दस किलोमीटर पहले पड़ता है. सीमा पर आये दिन तनाव होते रहने से भारत के सीमांत गांव खाली होते जा रहे हैं जो देश की सुरक्षा दृष्टि से ठीक नहीं है. क्योंकि सीमावर्ती गांव देश की सुरक्षा में अहम प्रहरी की भूमिका निभाते हैं.

सुना है कि इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने सीमावर्ती गांव नेलंग और जादुंग में पर्यटकों की सीमित आवाजाही और सड़क निर्माण के लिए रास्ते खोल दिये हैं. 2021 में 59 साल बाद गरतांग गली पर्यटकों के लिए खोल दी गयी है. कहा जाता है सतरहवीं शताब्दी में पेशावर से आये पठानों ने व्यापार के लिए इस गली को बनवाया था.

माना जाता है कि गरतांग गैलियोन प्राचीन समय में नेलंग और जादुंग सीमावर्ती गांव से होकर तिब्बत के व्यापारिक केंद्र तकलाकोट जाने के लिए दुर्गम रास्ता था यह भी कहा जाता है कि भारत उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से जोड़ने वाला यह प्राचीन सिल्क रूट था. इसी पुल द्वारा भारत, तिब्बत की परस्पर संस्कृति, सभ्यता के साथ-साथ गुड़, मसाले, ऊन चमड़े आदि का व्यापार होता था. गरतांग गली एक सौ पचास साल पहले 11000 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया प्राचीन व्यापारिक मार्ग है. इसमें करीब 150 मीटर सीढियां हैं. हम ने जून के महीने यहां जाने के लिए ट्रैकिंग की है.  गरतांग गली हमारे अनुभव से 2.5 किलोमीटर का कठिन ट्रेक है.

रास्ते भर देवदार की सनसनाती हवायें आपके रास्ते को आसान करती है. गरतांग गैलियोन को यदि जाड़ गंगा के दूसरी ओर से देखा जाये तो यह चट्टानों से लगा हुआ हवा में लटका हुआ लकड़ी का पुल है. तस्वीरें देखने पर मैं सिहर गयी कि क्या हम हवा में लटकते हुए पुल पर ट्रैकिंग कर रहे थे.

गरतांग गैलियोन भैरोंघाटी पुल से जाड़ गंगा के किनारे जाते हुए एक साहसिक, रोमांचक यात्रा है. जाड़ नदी के आर-पार खड़े नंगे चमकीले रेशेदार पहाड़ हैं जिन के ऊपर देवदार की दूर-दूर छींट मानो सुनहरे मुकुट पर हरे-हरे फुग्गे. सरे-राह कभी सीधी, खड़ी चढ़ाई है कभी नीचे सीधी ढलान की ओर उतरती पगडंडी. कहीं चट्टान के छतनुमा आश्रय से संकरे रास्ते से गुजरते हैं, गलती से पांव फिसला नहीं कि जाड़ नदी का कोपभाजन बनने में देर नहीं लगेगी. जून के महीने में गरतांग गली का ट्रैक देवदारों से होकर मचलती हवा और विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के कोलाहल का मिश्रित सैर-सपाटा सुखदायी है और साथ में अपने ही स्वाद और परिदृश्य की संगति हो तो दुर्गम सफर कब सहज मार्ग बन गये पता ही नहीं चलता हम फोटो खिंचवाते हुए, गुनगुनाते, बातें करते जा रहे हैं. साथ में परांठे और अचार लेकर आये हैं गंतव्य तक पहुंचने के बाद उदरस्थ करेंगे.

हरसिल रिट्रीट से एक भैया  मारा मार्ग-दर्शन कर रहे हैं. जहां हम तक जाते हैं वह हमें ग्लूकोज़ का पानी पीने के लिए देते हैं. बहुत से राहगीर मिल रहे हैं. कुछ राहगीर हमें हिमालय की यात्राओं के लिए पूर्णतः समर्पित मिले. ऐसे घुमक्कड़ों से मिलना एक प्रेरक अहसास है हिमालय, पहाड़ और साहसिक यात्रा करने के लिए. कुछ मित्रों के नंबर लिये हैं. उम्मीद है उनकी साहसिक रोमांचक यात्राओं के अनुभव हम तक पहुंचते रहेंगे सोशल मिडिया के द्वारा. कितना सुखद है ना घुमक्कड़ी! जीवन के नये आयामों से परिचित होना, नये लोगों से जुड़ना.

देहरादून की रहने वाली सुनीता भट्ट पैन्यूली रचनाकार हैं. उनकी कविताएं, कहानियाँ और यात्रा वृत्तान्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं.

इसे भी पढ़ें : मालरोड मसूरी

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Sudhir Kumar

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