ये दास्तां है 1931 की जब हल्द्वानी के ट्रांसपोर्टर ठाकुर गोपाल सिंह की हल्द्वानी से रानीखेत तक मोटर बस लॉरी चला करती थी. उस ज़माने में मोटर गाड़ी खरीदने के लिए कई तरह की शर्ते थीं, इसलिए उन शर्तों को पूरा करने वाले उनके मित्र इंद्र लाल साह के नाम से 20 जनवरी 1931 को एसेसरीज सहित कुल 5500 रूपये कीमत की यह मोटर बस लॉरी खरीदी गयी. गाड़ी का लोन और बीमा, दोनों म्युचुअल इन्डेमनिटी एंड फाइनेंस कम्पनी से करवाया गया. ये ब्रितानी राज की एकाधिकार वाली फाइनेंस कम्पनी थी. Thakur Gopal Singh a Kumaon Businessman
मोटर लॉरी खरीदने के ठीक 9 माह बाद 20 अक्टूबर 1931 को जब यह मोटर बस लॉरी हल्द्वानी से रानीखेत जा रही थी और गरमपानी के पास पहुंची थी तो गाड़ी के इंजन से निकली आग की लपटों ने गाड़ी को पूरी तरह राख कर दिया. आज भी आटोमोबाइल तकनीक में इतनी प्रगति के बावजूद चलती गाड़ी में आग लगने की घटनाएँ आम हैं पर उस दौर में जितने दुर्लभ वाहन थे उतना ही दुर्लभ यह हादसा था.
संयुक्त प्रान्त के मोटर कानूनों के अनुसार तब पहाड़ी इलाकों में मोटर बस अधिकतम उन्नीस सवारियों को ही ले जा सकती थी. उस वक्त ठाकुर साहब की उस मोटर बस लॉरी में चार सवारी और ड्राइवर और क्लीनर सवार थे और साथ में लदे थे सरसों के तेल के 60 टिन जिनका कुल वजन 20 मोंड था. माउंड (मोंड) वजन मापने की ब्रिटिश इकाई थी, मुगलों के समय मन में तौल होती थी, 1 मोंड लगभग आज का 37 किलोग्राम माना जा सकता है. ठाकुर गोपाल सिंह की मोटर बस की क्षमता अधिकतम 19 सवारी (ड्राइवर, क्लीनर सहित) या 38 माउंड वजन ले जाने की थी. संभवतः दीपावली निकट होने के कारण पहाड़ी इलाकों में यह सरसों का तेल ले जाया जा रहा था.
इस मोटर बस लॉरी में जब आग लगी तो चारों सवारी और ड्राइवर और क्लीनर फुर्ती से उतर गए और लपटों के बीच जुट गए सरसों के तेल के टिन जलती मोटर बस लॉरी से उतारने में, भारी मशक्कत के बाद भी 10 टिन नीचे नहीं उतारे जा सके.गाड़ी पूरी तरह स्वाह हो गयी और सिर्फ चेचिस और लोहे के कुछ टुकड़े ही अवशेष बचे थे. बचाए गए सरसों के 50 टिन मौके पर ही सड़क पर छोड़ दिए गए, वह जमाना ही ऐसा था कि कोई भी तसल्ली से ऐसा कर सकता था.
एक सप्ताह बाद ठाकुर गोपाल सिंह, अपनी लॉरी के अवशेष दूसरी लॉरी की छत पर लादकर हल्द्वानी लाये जिसमें मजदूरी समेत उनके कुल 50 रूपये खर्च हुए. क्यूंकि लॉरी लोन पर थी और ऋण अदा होने तक म्युचुअल इन्डेमनिटी एंड फाइनेंस कम्पनी लॉरी की सहस्वामी थी इसलिए जली हुई लॉरी के अवशेषों को कम्पनी ने हल्द्वानी से उठा लिया.
ठाकुर गोपाल सिंह ने कम्पनी से मुआवजे की मांग की तो कम्पनी ने अस्वीकार कर दिया कम्पनी का कहना था कि लॉरी का ऋण बकाया है. बीमा और ऋण दोनों एक ही कम्पनी से होने से कम्पनी खुद को लॉरी का सहस्वामी बताती और उलटे कम्पनी ने ठाकुर साहब से ऋण की बकाया किश्तों की मांग कर दी. ठाकुर साहब मामले को जिला जज कुमाऊँ की अदालत में ले गए जहाँ उन्होंने मुआवजे और किश्तों की मांग पर रोक लगाने का दावा किया.
जिला अदालत में कम्पनी ने ठाकुर साहब का प्रतिवाद किया कि सवारी गाड़ी में 20 मोंड ज्वलनशील पदार्थ (तेल) लाद कर गोपाल सिंह ने बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया है क्यूंकि सवारी गाड़ी सिर्फ सवारियां ले जाने के लिए होती है और चढ़ाई वाले रास्ते पर 20 मोंड वजनी तेल के टिन लादकर उन्होंने बीमा शर्तों का पालन नहीं किया है.
जिला जज कुमाऊँ ने, कम्पनी का यह तर्क मान लिया और गोपाल सिंह का दावा ख़ारिज कर कम्पनी को सिर्फ यह आदेश दिया कि वह गोपाल सिंह को उस 50 रूपये का भुगतान कर दे जो उन्होंने हुई जली हुई लॉरी के अवशेषों को उठवाने में खर्च किये हैं.
ठाकुर गोपाल सिंह के लिए यह आर्थिक नुकसान के अलावा अपमान की भी बात थी क्यूंकि उन दिनों हल्द्वानी मोटर स्टेशन पर और मोटर बस लॉरी में सफ़र करने वाले यात्रियों में अकसर इस मुकदमे की चर्चा हुआ करती थी. उस समय जिला जज कुमाऊँ के आदेशों की अपील के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जाना होता था जो बेहद खर्चीली कवायद थी. ठाकुर साहब मुक़दमे के सभी दस्तावेज एकत्रित कर और पैसे की व्यवस्था कर आखिरकार इलाहाबाद चले गए और हाईकोर्ट में कम्पनी के खिलाफ अपील की. अपील दर्ज होते ही कम्पनी ने ठाकुर गोपाल सिंह से किश्त अदा करते रहने पर कुछ रियायत देकर समझौते का प्रस्ताव रखा पर ठाकुर साहब ने कम्पनी का प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि उनका मानना था कि कम्पनी अब उनसे भविष्य की किश्तें वसूलने की हक़दार नहीं है.
ठाकुर साहब की अपील में अब यह तय किया जाना था कि क्या सवारियों को ढोने वाली मोटर बस लॉरी में व्यावसायिक भार ले जाना क़ानूनी है या नहीं? अपील का कानूनी पहलू महत्वपूर्ण था इसलिए उनकी अपील की सुनवाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शाह मुहम्मद सुलेमान और अंग्रेज जज सर एडवर्ड बेनेट की खंडपीठ में हुई.
मुख्य न्यायाधीश शाह मुहम्मद सुलेमान को “सर” की उपाधि मिली हुई थी और वह आला दर्जे के कानूनविद माने जाते थे, मात्र 46 वर्ष की आयु में वह मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर पहुँच गए थे. 1937 में जिस साल उन्होंने ठाकुर साहब की अपील का निर्णय किया वह उनकी सेवानिवृत्ति का साल था. सेवानिवृत्त होने के बाद वह 1941 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे जहाँ आज भी उनकी स्मृति में ‘सर शाह सुलेमान हॉल’ है.
ठाकुर गोपाल सिंह की अपील की सुनवाई में साढ़े चार साल लगे और कम्पनी ने इस बीच भी कई बार समझौते का प्रयास किया लेकिन गोपाल सिंह नहीं माने. मुख्य न्यायाधीश, सर सुलेमान ने बड़े विस्तार से ठाकुर गोपाल सिंह के मामले को सुना और आठ पन्नों की बीमा पॉलिसी के एक एक शब्द का गहन अर्थान्वेषण किया. सर सुलेमान ने पाया कि बीमा कम्पनी सवारी ले जाने वाली मोटर बस और मालवाहक मोटर लॉरी (ट्रक) दोनों का बीमा एक ही दर पर करती है. साथ ही संयुक्त प्रान्त के मोटर वाहन नियम भी उन्होंने देखे, जो कहते थे कि मोटर बस की परिभाषा में वह वाहन आता है जिसमें सवारियां और व्यक्तिगत सामान ले जाया जा सकता है. पूरी बीमा पॉलिसी का निर्वचन कर जस्टिस सुलेमान ने पाया कि पॉलिसी में मोटर बस में, ‘सिर्फ सवारी ही’ ले जाने, जैसी कोई उल्लिखित शर्त नहीं थी. मामले को कई दिन सुनने के बाद और ब्रिटिश अदालतों की लगभग 40 नजीरों का सन्दर्भ देकर सर सुलेमान ने व्यवस्था दी कि सवारी ले जाने के लाइसेंस का अर्थ यह नहीं है कि लॉरी की भार क्षमता की सीमा तक उसमें कोई और चीज नहीं रखी जा सकती और न ही पॉलिसी में कहीं सिर्फ सवारी ही ढोने का कोई प्रतिबन्ध है. दूसरे जज अंग्रेज, सर एडवर्ड बेनेट ने भी मुख्य न्यायाधीश सर सुलेमान के फैसले से सहमति जताई और साथ ही यह भी कहा कि सरसों का तेल खाद्य पदार्थ है और उसे कम्पनी द्वारा ज्वलनशील नहीं कहा जा सकता.
13 जनवरी 1937 को इस अपील में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विस्तृत फैसला दिया और घोषित किया कि ठाकुर गोपाल सिंह की मोटर बस में हादसे के वक्त 60 टिन तेल भी लदा था मात्र इस आधार पर बीमा कम्पनी को भरपाई की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता. Thakur Gopal Singh a Kumaon Businessman
हाईकोर्ट ने साथ ही मोटर बस की कुल कीमत 5500 रूपये में से 9 महीने चली हुई बस की प्रतिमाह 100 रूपये के ह्रास मूल्य के हिसाब से 900 रूपये घटा कर 4600 रूपये कीमत तय कर दी. ठाकुर साहब ने मोटर बस जलने से पहले गाड़ी के ऋण की 1320 रूपये की किश्तें भी अदा नहीं की थी जिस पर 10 रूपये का ब्याज भी बनता था इस तरह 1330 रूपये घटाकर शेष 3270 रूपये अदालत के आदेश से ठाकुर गोपाल सिंह को दिए गए.
इससे भी बड़ी राहत के तौर पर हाईकोर्ट ने ठाकुर गोपाल सिंह की मोटर बस की सभी बकाया किश्तें माफ़ भी कर दीं, जिस बात के लिए ठाकुर गोपाल सिंह ने समझौता भी ठुकरा दिया. यह ठाकुर गोपाल सिंह की असल जीत थी.
आज की तारीख में यह मुकदमा कोई साधारण मुकदमों की सूची में ही माना जाता लेकिन ब्रिटिश राज में म्युचुअल इन्डेमनिटी एंड फाइनेंस कारर्पोरेशन बेहद जानी मानी पुरानी कम्पनी थी जिसका सिक्का पूरी दुनिया में ब्रितानी हुकूमत के साम्राज्य में चलता था और कम्पनी के खिलाफ कलकत्ता और मद्रास के एक एक बड़े मुकदमे को छोड़ उस वक्त तक पूरे उत्तर भारत में कोई मुकदमा नहीं था क्यूंकि ऋण और बीमा क्षेत्र में इस कम्पनी का एकाधिकार था, फिर भी उसके विरुद्ध कुमाऊँ के साधारण लेकिन हिम्मत वाले व्यवसायी ठाकुर गोपाल सिंह का डटकर खड़ा होना और अपनी शर्त के लिए लड़ना एक नजीर में बदल गया.
आजादी के बाद भी कई वर्षों तक भारतीय अदालतों में हल्द्वानी के ठाकुर गोपाल सिंह की इस अपील के निर्णय की नजीर दलील के तौर पर दी जाती रही. अदालती निर्णयों के प्रामाणिक अभिलेख (जर्नल) आल इण्डिया रिपोर्टर 1937 इलाहाबाद अंक में दर्ज 13 जनवरी 1937 का यह निर्णय ब्रितानी राज में कुमाऊं के हिम्मती और हठी कारोबारी के साहस की दास्तान ही नहीं बल्कि एक बहुमूल्य धरोहर भी है. Thakur Gopal Singh a Kumaon Businessman
दुष्यन्त मैनाली
पेशे से अधिवक्ता दुष्यन्त मैनाली उत्तराखंड उच्च न्यायालय में प्रमुखतः जनहित के मामलों की वकालत में सक्रिय रहते हैं.
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बहुत दिलचस्प क़िस्सा है। फ़िक्शन में कंपनियों के दाँव-पेंच और साज़िश पाठकों को पकड़ कर रखता है, ये तो गोपाल सिंह के जीवट की सच्ची कहानी है। दुष्यंत का लेखन बड़ा कसा हुआ होता है। माउंड के स्थान पर शायद पाउंड पढ़ा जाना चाहिये।
अशेष धन्यवाद सर। मैं भी इसी दुविधा में था पर रिसर्च किया तो पाया वास्तव में यह मोंड या माउन्ड ही है। सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में यही इकाई उपयोग की जाती थी जबकि खुद ब्रिटेन में पाउंड। तौल की इकाई में भी वे गुलामों को संभवतः हीन दिखाना चाहते हों??
इतनी अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार । भविष्य में भी इसी प्रकार अच्छी जानकारी देते रहें ।दुष्यंत मैनाली जी के बारे में सत्य ही कहा है ।
very beautiful article .very interesting.
Very well explained informative article. Kudos to auther.