न किताब छन- न किताबें हैंन मासाब छन- न मास्टर साहब हैंकी छ पें?- क्या है फिर?कि चैं पें?- क्या…
जिसे तुम लोकतंत्र कहते हो, इसमें न लोक है न तंत्र है यह आदमी का आदमी के खिलाफ खुला षड़यंत्र…