भारतेंदु हरिश्चन्द्र के कालजयी नाटक अन्धेर नगरी की शुरुआत में लिखी गई हैं ये पंक्तियां - छेदश्चंदनचूतचम्पकवने रक्षा करोरद्रुमेः हिंसा…