इतिहास

भारत के रॉबिनहुड सुल्ताना डाकू की कहानी

सुल्ताना को परिवार सहित कैद कर दिया गया था

सुल्ताना डाकू का नाम सभी हम सभी जानते हैं. सुल्ताना भारतीय दंत कथाओं का पात्र बन चुका है. सुल्ताना के किस्से पीढ़ी-दर-पीढ़ी कहे जाते रहे हैं. सुल्ताना की गरीबों के रहनुमा उदारदिल परोपकारी की छवि हर किसी को लुभाती रही है. सुल्ताना जिंदा रहते ही एक काल्पनिक हीरो बन चुका था. जनता उससे प्यार करती थी. सुल्ताना की ख़ूबियों ने आम जनता ही नहीं लेखकों, फिल्मकारों तक को प्रभावित किया. सुल्ताना पर न सिर्फ कई किताबें लिखी गयीं बल्कि कई भाषाओँ की फ़िल्में भी बनी. हॉलीवुड तक में सुल्ताना के किरदार पर ‘द लॉन्ग डेविल’ नाम की फिल्म बनी. था जिसमें सुल्ताना का किरदार युल ब्रेनर ने निभाया था.आज जानते हैं डकैत के रूप में अपना जीवन शुरू करने से लेकर गिरफ्तार होने तक की सुल्ताना की यात्रा के बारे में. (Robinhood of India Sultana Dacoit)

सुल्ताना भांतू नाम की जाति से ताल्लुक रखता था. उसका ताल्लुक मुरादाबाद के हरथला गांव से बताया जाता है. इस जाति को जरायमपेशा करार देकर नजीबाबाद के किले में कैद कर दिया गया था. बाद में यही नजीबाबाद सुल्ताना की कर्मभूमि बना. सुल्ताना अपनी जवान बीवी, छोटे बच्चे और सैकड़ों अन्य लोगों के साथ नजीबाबाद के किले में बंद था. इस कैदखाने की जिम्मेदारी साल्वेशन आर्मी के पास थी. कोई भी नवयुवक अपनी जिंदगी इस तरह कैद में जाया नहीं करना चाहेगा, लिहाजा तंग आकर किसी रात सुल्ताना किले की मिट्टी की दीवार फांदकर भाग गया और जंगल के अंधेरों में खो गया. फरारी के एक साल बाद ही सुल्ताना ने बंदूकों से लैस अपने जैसे 100 अन्य लोगों का गिरोह बना लिया. इस बड़े गिरोह ने पूरब में गोंडा से लेकर पश्चिम में सहारनपुर तक अपना डकैती का साम्राज्य कायम कर रखा था. कभी-कभार यह गिरोह पंजाब जाकर भी डकैती डाला करता था. आम तौर पर तराई और भावर के जंगलों में छिपा यह गिरोह रोज अपना ठिकाना बदलता था. सरकारी दफ्तरों में सुल्ताना और उसके गिरोह के किस्सों की मोटी फाइलें मौजूद रहतीं. सुल्ताना ने 17 साल की उम्र में डकैतियां डालना शुरू किया और 23 साल का होते-होते वह अंग्रेजों के लिए खौफ का पर्याय बन चुका था. लेकिन नजीबाबाद के गरीब लोगों का वह हीरो था.

नजीबाबाद का किला

तराई और भाबर के जिस इलाके में सुल्ताना ने अपनी सल्तनत कायम की थी वह कुमाऊं कमिश्नर पर्सी विंडहैम के जिम्मे था. इस इलाके को सुल्ताना की दहशत से छुटकारा दिलाने के लिए पर्सी ने पुलिस अफसर फ्रेडी यंग को भेजने की मांग सरकार से की. फ्रेडी यंग बेहतरीन पुलिस अफसरों में गिना जाता था और उसे कुछ साल संयुक्त प्रांत में नौकरी करने का अनुभव भी था. सरकार ने सुल्ताना को पकड़ने के लिए ‘स्पेशल डकैती पुलिस फ़ोर्स’ गठित करने की भी इजाजत दे दी. फ्रेडी को इसका सुप्रीम कमांडर बनाकर अपनी पसंद के जवान फ़ोर्स में भर्ती करने की भी छूट दी गयी. फ्रेडी ने पुलिस फ़ोर्स से बेहतरीन लोग अपने लिए चुने. सुल्ताना के सर पर हजारों रुपयों का इनाम था जिसे हासिल करना हर पुलिस अफसर का सपना था.

सुल्ताना ने अपने दिमाग से पुलिस को दिया चकमा

इधर फ्रेडी अपनी फ़ोर्स में भर्ती कर रहा था और उधर सुल्ताना अपने गिरोह के साथ तराई और भाबर में डकैतियां डालने में व्यस्त था. फ्रेडी ने सुल्ताना को पकड़ने की पहली कोशिश रामनगर के जंगलों में की. वन विभाग इस जंगल में पेड़ कटवा रहा था. इस काम में भारी तादाद में मजदूर लगे हुए थे. फ्रेडी ने इन मजदूरों के ठेकेदार से कहा कि जंगल में एक रात नाच-गाने और एक बड़ी दावत का इंतजाम करे और सुल्ताना को अपने गिरोह के साथ इस कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दे. सुल्ताना ने खुशी से अपने गिरोह के साथ यह न्यौता क़ुबूल कर लिया. लेकिन सुल्ताना ने ठेकेदार के सामने यह शर्त रखी कि वे लोग पहले खाना खायेंगे और उसके बाद नाच देखेंगे. सुल्ताना ने कहा भरे पेट देखने से नाच का मजा दोगुना हो जाएगा.

पुलिस और डकैत दोनों के ही पास भरपूर पैसा था और पैसों का इस्तेमाल जानकारी खरीदने में होता है. डाकू-पुलिस के इस खेल की भी पहले चाल खुफियागिरी का बंदोबस्त ही थी. कहना गलत न होगा कि सुल्ताना इस मामले में फ्रेडी से बहुत बेहतर हालत में था. फ्रेडी मुखबिरों से मिलने वाली खबर के बदले सिर्फ इनाम दे सकता था जबकि सुल्ताना अपने खिलाफ मुखबिरी करने वाले को सजा भी दे सकता था. जाहिर है कौन सुल्ताना से पंगा लेना चाहता.

गरीबों का हमदर्द था सुल्ताना

असल गरीबी क्या होती है यह सुल्ताना से बेहतर कौन जान सकता था. इसलिए उसके दिल में गरीबों के लिए ख़ास हमदर्दी थी. कहा जाता था कि सुल्ताना ने कभी न तो किसी गरीब को कोई नुकसान पहुंचाया था, न कभी किसी गरीब की मदद करने से वह पीछे हटा था. अपने गिरोह के लिए राशन खरीदने पर भी वह दुकानदारों को दोगुना दाम देता था. सुल्ताना जिस इलाके में भी डकैती डालता माल लूटकर उसका बड़ा हिस्सा वहां के गरीबों के बीच बंटवा देता था. साहूकारों और ज़मींदारों के हाथों लुटते ग़रीब लोग उसकी लंबी उम्र की दुआएं मांगते और इसी परोपकारी चरित्र की वजह से हजारों लोग उसके आँख-कान का काम करते थे. कई पुलिस वाले भी सुल्ताना के भरोसेमंद मुखबिर थे. लिहाजा सुल्ताना जानता था कि नाच और दावत का न्यौता ठेकेदार नहीं बल्कि फ्रेडी यंग का है.

नथाराम शर्मा की किताब ‘सुल्ताना डाकू गरीबों का प्यारा’

ठेकेदार मोटा असामी था तो उसने रामनगर काशीपुर के अपने दोस्तों को भी दावत में बुलाया. इलाके के सबसे बेहतरीन साजिंदे और नचनिया यहां नाचने के लिए बुलाये गए थे. उम्दा खाने और उससे भी ज्यादा पीने का इंतजाम था.

ठेकेदार के दोस्त ठीक समय पर आये और खाने-पीने का दौर शुरू हो गया और सुल्ताना को निपटाने की तैयारी भी. सभी मेहमान अपनी-अपनी जात के झुण्ड बनाकर लालटेन की मद्धम रौशनी में बैठे थे. अलावों और लालटेन की मरियल रौशनी में एक-दूसरे को पहचानना असंभव था.

सुल्ताना के गिरोह ने मजे से दावत उड़ाई. जब दावत ख़तम होने लगी तो सुल्ताना अपने मेजबान को आड़ में ले गया और उसका शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि हमें बहुत दूर जाना है सो हम नाच देखने के लिए नहीं रुक सकेंगे. जाने से पहले सुल्ताना ने एक दरख्वास्त और की, जाहिर है सुल्ताना की दरख्वास्तें कभी नामंजूर नहीं होती थीं. दरख्वास्त यह थी कि हमारे जाने के बाद भी नाच-गाना बदस्तूर चलता रहना चाहिए.

उधर पहले से तय था कि नाच-गाने की शुरुआत में बजने वाला ढोल फ्रेडी यंग और फोर्स के लिए सुल्ताना पर हमला करने का संकेत होगा.

पुलिस वालों की एक दूसरी टुकड़ी जंगलात के गार्ड की कमान में तैनात थी. इस टुकड़ी का काम हमले से बच जाने वाले डकैतों का रास्ता रोकना. लेकिन यह टुकड़ी खुद अपना रास्ता भटक गयी और सारी रात जंगल में भटकती रही. वैसे फारेस्ट गार्ड को रास्ता भटकने की जरूरत नहीं थी क्योंकि ढोल बजने से काफी पहले ही चतुर सुल्ताना वहां से निकल चुका था. यह अलग बात है कि फारेस्ट गार्ड को उसी जंगल में सुल्ताना के साथ रहना था इसलिए उसने रास्ता भटक जाने की चतुराई दिखाई. लिहाजा जब यंग की टीम मौके पर पहुंची तो उनकी मुलाक़ात बेहद डरी हुई नचनियों और साजिंदों से हुई. ठेकेदार के दोस्त कुछ नहीं समझ पा रहे थे.

रामनगर के जंगलों से पुलिस को चकमा देकर सुल्ताना पंजाब पहुंचा और वहां कुछ डकैतियों को अंजाम दिया. कुछ ही लाख के जेवरात लूटकर सुल्ताना जल्दी ही संयुक्त प्रांत लौट आया. दरअसल पंजाब में घने जंगल नहीं थे और बगैर जंगलों वाले इलाके में सुल्ताना जल बिन मछली सा महसूस करता था.

पंजाब से लौटते हुए सुल्ताना के लिए गंगा नहर पार करना जरूरी था और यह बात अंग्रेज पुलिस जानती थी. गंगा नहर पर हर 4 मील पर बने हुए पुलों पर पुलिस का सख्त पहरा था. सुल्ताना ने नहर पार करने के लिए ऐसा पुल चुना जिसमें पहरा नहीं था. इस पुल पर पहरा न होने की खबर उसे अपने वफादार मुखबिरों से मिली. (Robinhood of India Sultana Dacoit)

सुल्ताना के गिरोह का उसूल था कि किसी औरत के साथ बेअदबी न हो

जब सुल्ताना पुल पार पहुंचा तो उसे शहनाई और ढोलक की आवाज सुनाई दी. पास के ही गांव में एक पैसे वाले व्यक्ति के बेटे की शादी हो रही थी, ये आवाज वहीं से आ रही थी. सुल्ताना मुखबिर की मदद से उस गांव में पहुंच गया. बाराती और घराती सभी गांव के बीचोंबीच बड़े से मैदान में इकठ्ठा थे. वहां की तेज रोशनियों के बंदोबस्त में लोगों ने सुल्ताना को आसानी से पहचान लिया और लोगों में हलचल हुई. सुल्ताना ने लोगों से कहा कि वे आराम से बैठे रहें, उसने यह भी कहा अगर वो किया जाएगा जो मैं कहूँगा तो किसी को डरने की जरूरत नहीं है. उसके बाद सुल्ताना ने गांव के मुखिया और लड़के के पिता को बुलाया. जब वे दोनों आये तो सुल्ताना ने उसने कहा कि यह तोहफे लेने और देने का मौका है. गांव के मुखिया से उसने खुद के लिए मुखिया की नयी बंदूक मांगी और अपने साथियों से लिए 10 हजार रुपये. दोनों तोहफे तत्काल सुल्ताना की नज्र कर दिए गए. सभी मेहमानों को खुदा हाफिज कहकर सुल्ताना वहां से चला गया. लेकिन सुल्ताना को यह मालूम नहीं था कि उसका दायां हाथ माना जाने वाला पहलवान नाम का डकैत दुल्हन को ही अगवा कर लाया है. अगले दिन सुल्ताना को इसकी भनक मिली. सुल्ताना के गिरोह में यह उसूल सख्ती से लागू होता था कि कोई किसी औरत के साथ बेअदबी से पेश नहीं आयेगा. लिहाजा सुल्ताना ने पहलवान पर खूब लानतें भेजीं और उसी बुरी तरह डांट-फटकारकर दुल्हन को पूरे सम्मान के साथ वापस छोड़ आने को कहा. दुल्हन उठा लाने की ना-काबिले माफ़ी गलती के हर्जाने के तौर पर दुल्हन के साथ ढेर सारे तोहफे भी भेजे गए.  

काफी मेहनत और आने-जाने के बढ़िया इंतजाम की वजह से धीरे-धीरे फ्रेडी यंग को सुल्ताना पर दबाव डालने में शुरुआती कामयाबी मिलनी शुरू हो चली थी. इस दबाव से बचने के लिए सुल्ताना अपने गिरोह के साथ पूर्वी सरहद पर बसे पीलीभीत की तरफ चला गया. इस बीच सुल्ताना का गिरोह भी काफी छोटा होने लगा था. उसके गिरोह के कुछ लोग पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे और कुछ गिरोह छोड़कर घर लौट गए. पीलीभीत इलाके में रहकर सुल्ताना ने काफी दूर-दूर यहां तक की गोरखपुर में भी डकैतियां डालीं.

1972 में बनी फिल्म ‘सुल्ताना डाकू’ का पोस्टर

जब सुल्ताना उसी इलाके में दोबारा लौटा तो उसे पता चला कि रामपुर रियासत की रहने वाली एक बेहद अमीर तवायफ इन दिनों लामाचौड़ के मुखिया के घर रुकी हुई है. लामाचौड़ कालाढूंगी से 7 मील दूरी पर है. लूटपाट का खतरा भांपते हुए मुखिया ने अपने घर पर 30 आदमी तैनात कर रखे थे लेकिन इनके पास हथियार नहीं थे. सुल्ताना ने मुखिया के घर धावा बोला और डकैतों की घेराबंदी से पहले ही वह तवायफ अपने गहनों के साथ पिछले दरवाजे से भागने में कामयाब रही. मुखिया और उसके सभी आदमियों को सुल्ताना घेर-घारकर आंगन में ले आया और तवायफ के बारे में जानकारी मांगी. जब इन्होंने बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है तो सुल्ताना ने अपने आदमियों को सबकी पिटाई करने का हुक्म दिया.

सुल्ताना के आदेश पर मुखिया के एक आदमी ने ऐतराज करते हुए सुल्ताना से कहा कि हमारे साथ कुछ भी कर लो लेकिन हमारे मुखिया को बेइज्जत करने का तुम्हें कोई हक़ नहीं है. दलेरी दिखाने वाले इस नेपाली आदमी को मुंह बंद रखने को कहा गया. लेकिन जैसे ही एक डकैत रस्सी के टुकड़े से मुखिया की पिटाई करने के लिए उसकी तरफ बढ़ा यह निडर आदमी बांस लेकर उस डकैत पर टूट पड़ा. दूसरे डकैत ने उसके सीने में गोली मारकर उसे सुला दिया. डकैतों को लगा बंदूक की आवाज दूर तक सुनाई देने की वजह से आसपास के गाँवों से हथियारबंद लोग इस तरफ आ सकते हैं. इस ख्याल से वे तेजी से वाहन से निकल चले और मुखिया का नया घोड़ा भी साथ लेते गए.

सुल्ताना डकैती के दौरान किसी की भी हत्या करने से भरसक कोशिश करता था. लेकिन कोई हिंसक विरोध करता और उसे या उसके साथियों पर हमला कर उनकी जान लेने की कोशिश करता तो वह उसकी हत्या करने से पीछे नहीं हटता था.

इस घटना के एक महीने बाद जिम कॉर्बेट भी फ्रेडी यंग के अनुरोध पर सुल्ताना को धर-पकड़ने में मदद के लिए जुट गए. जंगल की बेहतरीन समझ रखने वाले मिर्जापुर के 4 आदिवासी भी अब फ्रेडी की इस टीम में जुट गए थे. जिम कॉर्बेट और इन चार आदिवासियों को जंगल में सुल्ताना के ठिकानों का पता लगाने और फ्रेडी यंग की फ़ोर्स को उस जगह तक ले जाने का जिम्मा सौंपा गया. सुल्ताना एक रात से ज्यादा किसी जगह पर नहीं रुकता था हर रात वह डेरा बदलकर अपने गिरोह के साथ नए ठिकाने पर होता.

इसके बाद जिम कॉर्बेट ने फ्रेडी यंग को सुझाव दिया कि — फ्रेडी यह खबर फैलाए कि विंडहैम ने शेर के शिकार के लिए इन चारों आदिवासियों को वापस बुला लिया है और जिम को भी इस शिकार में शामिल होने की दावत दी गयी है. इसके बाद हल्दानी के लिए टिकट खरीदकर सभी को हरिद्वार से हल्द्वानी जाने वाली गाड़ी पर बैठा दिया जाए.

आगे की योजना यह थी कि अगले स्थेशन में ये चारों आदिवासी और जिम कॉर्बेट अपनी बंदूकों-रायफल के साथ उतर जायें और इन्हें सुल्ताना को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की छूट मिले. फ्रेडी ने इसके लिए मना कर दिया.

नजीबाबाद के जंगलों में मिला सुल्ताना का गुप्त ठिकाना

3 महीने बाद फ्रेडी ने नजीबाबाद के जंगलों में सुल्ताना के पक्के ठिकाने का पता लगा लिया. उस अड्डे पर घेरा डालने के दौरान अगर सुल्ताना निकल भागता है तो उसे रोकने का काम जंगलात विभाग के हरबर्ट और जिम कॉर्बेट की टीम को करना था. हरबर्ट पोलो का जाना-माना खिलाड़ी भी था और 50 घुड़सवारों की एक टुकड़ी के साथ उसे सुल्ताना को भागने से रोकना था. हरबर्ट और जिम कॉर्बेट को ही सुल्ताना के अड्डे की घेराबंदी में भी फ्रेडी की मदद करनी थी.

सुल्ताना का खुफिया तंत्र बहुत काबिल था इसलिए फ्रेडी यंग, हरबर्ट, फ्रेड एंडरसन और जिम के अलावा इस योजना की किसी को कानोंकान भनक नहीं थी. हथियारबंद पुलिस फ़ोर्स को हर शाम रूट मार्च पर भेजा जाता था. फ्रेडी, हरबर्ट, फ्रेड और जिम कॉर्बेट भी पैदल घूमकर घुप्प अँधेरा होने के बाद ही उस बंगले पर लौटते जहां वे ठहरे हुए थे.

उस रात भी सभी हथियारबंद जवान रोज की तरह मार्च पर निकले लेकिन आज वे रेलवे क्रासिंग पार करने के बजाय पटरी के किनारे चलते हुए हरिद्वार स्टेशन के मालगोदाम की तरफ निकल गए.  यहां साइडिंग में एक मालगाड़ी माय इंजन और ब्रेकवैन के मौजूद थी. बस इस मालगाड़ी के डिब्बों ने दरवाजे स्टेशन बिल्डिंग के दूसरी तरफ खुले हुए थे. सभी जवान और फ्रेडी यंग, फ्रेड एंडरसन और जिम कॉर्बेट ख़ामोशी से इस गाड़ी पर सवार हो गए. उधर सुल्ताना के खबरियों को चकमा देने की गरज से पुलिस लाइन में सभी काम रोज की तरह चलते रहे — जवानों का भोजन पका, खाने के मेज सजा दिए गये.

सुल्ताना की खोज में अंग्रेजों की टीम

उधर, रात ठीक 9 बजे दो स्टेशनों के बीच घने जंगल में रुक गयी. हर डिब्बे तक कानों-कान उतरने का संदेशा पहुंचा दिया गया. सभी को उतारकर मालगाड़ी गुम हो गयी. 50 सिपाही हरबर्ट की कमान में पिछली रात ही रवाना कर दिए गए थे. जिन्हें काफी घूमकर तय जगह पर आने की हिदायत थी. वहां उनके घोड़े पहले से ही पहुंचा दिए गए थे.

फ्रेडी और एन्डरसन की कमान में जवान रात घर मुर्दा ख़ामोशी ओढ़े इंसान से भी ऊंची हाथी घास के बीच चलते रहे. थकान भरे इन चेहरों को 4 रहनुमा रास्ता बता रहे थे. घनी घास और कीचड़ भरे रास्ते पर बियाबान रात में फोर्स रास्ता भटककर गोल-गोल घूमने लगी. आखिरकार जंगल का दिशा ज्ञान साध चुके जिम कॉर्बेट ने इस गलती को पकड़ा कि उनकी टीम जंगल में एक ही जगह का गोल चक्कर काट रही है. उन्होंने दल के आगे चल रहे फ्रेडी को इस बात की जानकारी दी. फ्रेडी के 4 गाइडों में 2 सुल्ताना गिरोह के भांतू थे. कुछ दिन पहले वे हरिद्वार के बाजार में पुलिस के हाथ चढ़ गए थे और उन्हीं से सुल्ताना के इस अड्डे की जानकारी उगलवाई गयी थी. आज रात सुल्ताना को पकड़ने की एवज में उन्हें आज़ाद करने का वादा किया गया था. इन दोनों ने भी क़ुबूल किया कि वे रास्ता भटक गए हैं. सुल्ताना को पकड़ने के लिए उसके अड्डे में अँधेरे में छापा मारना जरूरी था. दिन में ऊंचे मचानों पर बैठे सुल्ताना गिरोह के पहरेदारों से बच पाना नामुमकिन था.

सुल्ताना के अड्डे पर जिबह किये बकरे टंगे मिले

आखिरकार कई तरकीबों से सही रास्ते का पता लगा लिया गया और पुलिस टीम अड्डे के करीब पहुंच गयी. फोर्स के मार्गदर्शकों की धीमी चाल और चौकन्ने हो जाने ने सुल्ताना के अड्डे के करीब होने की पुष्टि की. फ्रेडी, एन्डरसन और जिम इन मार्गदर्शकों के करीब जा पहुंचे. सबसे आगे वाले के करीब लेटने पर जमीन से करीब 40 फीट की ऊंचाई पर बंधा मचान दिखाई दिया. मचान पर सुल्ताना के 2 हथियारबंद आदमी मौजूद थे और सुल्ताना का अड्डा इस मचान से 300 गज अंदर जंगल में था.

इसी बीच पीछे से आ रही फोर्स के एक जोशीले सिपाही ने मचान पर फायर झोंक दिया. मचान पर बैठे दोनों पहरेदार पलक झपकते ही मचान से उतारकर नीचे खड़े अपने घोड़ों पर सवार होकर अड्डे पर खबर करने दौड़ पड़े. अड्डा अब 200 गज की ही दूरी पर था लिहाजा फोर्स ने उस तरफ हमला बोल दिया.

सुल्ताना का अड्डा यहां एक टीले पर था. यहां 3 टेंट और फूस की एक झोपड़ीनुमा रसोई थी. राशन के अलावा यहां हजारों कारतूसों का जखीरा मिला और 11 बंदूकें. रसोई के पास 3 जिबह किये बकरे टंगे हुए मिले. घने जंगल और गहरे नाले का फायदा उठाकर सुल्ताना के आदमी भागने में कामयाब हुये. जाते-जाते वे फायर झोंककर एक हवालदार और फ्रेडी के रहनुमा डकैत को गोली मारने में कामयाब रहे. इन दोनों ने दम तोड़ दिया.

सुल्ताना को शायद अपने मुखबिरों से दूसरी दिशा से डकैतों को घेरने आ रहे हरबर्ट और घुड़सवारों की भी खबर मिल चुकी थी तो वे उस दिशा में भागकर गए ही नहीं. इस तरह यह हमला बुरी तरह नाकाम रहा. पुलिस के हाथ बस कुछ बंदूकें और कारतूस ही लगे.

सुल्ताना ने नाकाम फ्रेडी को पत्र लिखा

नाकाम हमले के बाद फ्रेडी को सुल्ताना का एक ख़त मिला. इसमें सुल्ताना ने अफ़सोस जाहिर करते हुए लिखा था — क्या पुलिस के पास हथियारों की कमी की भरपाई के लिए कप्तान साहब को मेरे अड्डे पर छापा मारना पड़ा? आगे अगर कभी कप्तान साहब को गोला-बारूद और हथियारों की कमी महसूस हो तो मुझे इत्तला कर दें. कप्तान की जरूरत का सामान पहुंचाने में मुझे काफी खुशी होगी.

लेकिन इस हमले ने सुल्ताना के अड्डे को नष्ट कर दिया था. इसके बाद सुल्ताना अपने गिरोह के साथ तराई-भाबर के बीच ठिकाने बदलते हुए घूम रहा था. अब उसके गिरोह में 40 ही डकैत रह गए थे लेकिन सभी आधुनिक हथियारों से लैस. छापे में गंवाए हुए हथियारों की जगह सुल्ताना ने जल्द ही नए हथियार हासिल कर लिए थे.

फ्रेडी ने सुल्ताना को मिलने का न्यौता भेजा

फ्रेडी ने सरकार से सुल्ताना से अपनी जिम्मेदारी पर हथियार डलवाने की इजाजत ले ली थी. फ्रेडी ने सुल्ताना को संदेशा भिजवाया कि वह जहां चाहे, जैसे चाहे उससे मिलने आ सकता है. सुल्ताना ने फ्रेडी का न्यौता क़ुबूल कर लिया. सुल्ताना ने ही मुलाकात का वक़्त, तारीख और जगह मुक़र्रर की और संदेशा भिजवाया कि इस दौरान हम दोनों के अलावा कोई तीसरा शख्स नहीं होगा और हम दोनों निहत्था होंगे.

मुलाक़ात के दिन तय जगह और समय पर जब फ्रेडी एक बड़े पेड़ के करीब पहुंचा तो पेड़ की दूसरी तरफ से सुल्ताना बाहर निकला. ये मुलाकात बहुत दोस्ताना माहौल में हुई. एक तरफ, सरकार की ताकत हासिल किये हुए लम्बा-चौड़ा मजाकिया मिजाज का फ्रेडी यंग था. दूसरी तरफ, एक चाक चौबंद छोटे कद का आदमी जिसके सर पर सरकारी इनाम था. सुल्ताना के हाथ में एक बड़ा सा तरबूज था. उसने तरबूज फ्रेडी यंग को भेंट करते हुए कहा — आप चाहें तो बेझिझक इसे खा सकते हैं.

सुल्ताना को फ्रेडी यंग की शर्तें मंजूर नहीं थीं लिहाजा यह मुलाकात बेनतीजा रही. इस मुलाकात के दौरान सुल्ताना ने फ्रेडी से हाथ जोड़कर अनुरोध किया कि वे बेवजह अपनी जान जोखिम में न डाला करें. उसने बताया कि जब उसके अड्डे पर पुलिस ने छापा मारा तो वह 10 अचूक निशानेबाजों के साथ पास ही बरगद के पेड़ पर छिपा था. वहां से वह फ्रेडी और 2 गोरे साहबों को नाला पार कर बरगद की तरफ आते देख रहा था. सुल्ताना ने कहा — जो साहब (जिम कॉर्बेट) नाले के किनारे चढ़कर ऊपर आने की कोशिश कर रहे थे यदि उनकी कोशिश कामयाब होती तो मेरे लिए आप तीनों को गोली से उड़ा देना जरूरी हो जाता.

आखिरी दौर का मुकाबला

फिर से छापे की तैयारी कर फ्रेडी ने विडहैम और जिम को हरिद्वार आकर इस मुकाबले को देखने का न्यौता दिया. भागते-भागते पस्त हो जाने के बाद सुल्ताना और उसके साथियों ने नजीबाबाद के जंगलों के बीच एक मवेशीखाने में पनाह ले रखी थी. फ्रेडी ने नाव में बैठकर गंगा की धार के साथ जंगल के उस सिरे पर पहुंचकर रात के किसी पहर चुपचाप पैदल जंगल में दाखिल होकर सुल्ताना के इस अड्डे को घेरने की योजना बनायी थी. जंगल में रास्ता ठीक से दिखाई दे इसके लिए पूर्णिमा की रात चुनी गयी थी.

सुल्ताना की सख्त घेराबंदी

टी दिन 300 लोगों की फोर्स टी जगह पर 10 नावों पर सवार होकर 20 मील के सफर पर चल पड़ीं. बगैर किसी परेशानी के ये नावें अपने ठिकाने लग गयीं. मांझियों को बहाव की दिशा में ही 5 मील जाकर फोर्स का इन्तजार करने को कहा गया.

हाथी घास के घने जंगल, तालाब, तेज धार नदी पार कर फोर्स फ्रेडी के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली. मुखबिर ने कहा की सूरज चढ़ आया है तो ऐसे में बगैर किसी की निगाह में आये एक  सपाट बड़ा मैदान पार कर पाना असंभव है.

पूरी फोर्स ने दोबारा वही तेजधार नदी पार की और एक निर्जन टापू पर रात होने का इन्तजार करने लगे.       

रात घिरते ही सारी फोर्स एक बार फिर फ्रेडी के मुखबिर और एक गाइड के साथ सुल्ताना को घेरने निकल पड़ी. इस चांदनी रात में चीजों को दिन के उजाले की तरह देखा जा सकता था. लम्बा फासला तय करने के बाद यह टीम घनी झाड़ियों और पेड़ों वाले जंगल से गुजरकर एक बड़ के पेड़ के नीचे पहुंचे. यहां बैठकर अब इन्तजार करना था. (Robinhood of India Sultana Dacoit)

अलसुबह रेकी करने के बाद मुखबिर और गाइड ने बताया कि सुल्ताना और उसका गिरोह हरिद्वार के किसी गांव में डकैती डालने कल शाम ही निकले हैं, जिनके आज रात या कल सुबह लौटने की सम्भावना है. उन्होंने यह भी सूचना दी कि इस वक़्त गैंग में सिर्फ 9-10 डकैत ही बचे हैं. इत्तला देकर दोनों फोर्स के लिए कुछ खाने का इंतजाम करने निकल पड़े. जाते हुए उन्होंने सूचना दी कि भूलकर भी इस जगह से इधर-उधर न हिलें क्योंकि यह सुल्ताना का इलाका है.

शाम को सुल्ताना मवेशियों के बाड़े में लौट आया. इस सूचना पर फ्रेडी ने फोर्स के साथ बाड़े को घेर लिया. इसके बाद फ्रेडी रेंगता हुआ मवेशीखाने के इकलौते बड़े मकान की तरफ रेंगता हुआ आगे बढ़ने लगा. मकान के भीतर दाखिल होने के बाद उसकी निगाह वहां मौजूद चारपाई पर पड़ी. इस इकलौती चारपाई पर मुंह पर चादर ताने कोई सो रहा था. फ्रेडी इस सोये हुए आदमी पर चढ़ गया. इस भारी-भरकम आदमी के वजन से दबा सुल्ताना कुछ न कर सका. वह जीते-जी पुलिस के हाथ न आने की कसम भी पूरी नहीं कर सका. पुलिसिया कार्रवाई में 4 डकैत पुलिस की गिरफ्त में आये. सुल्ताना के ख़ास बाबू और पहलवान गोलियों की बरसात के बीच जख्मी होने के बावजूद भागने में कामयाब रहे.

सुल्ताना को गिरफ़्तार कर आगरा जेल लाया गया. मुक़दमा चला और सुल्ताना समेत उसके गिरोह के 13 लोगों को फांसी की सजा दी गयी. सुल्ताना के कुछ साथी डकैतों को काला पानी और उम्रक़ैद की सज़ा भी हुई. 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना को फांसी के तख़्ते पर लटका दिया गया लेकिन अमीरों पर इसका ख़ौफ़ और जनता में इसके आतंक के चर्चे लंबे समय तक जारी रहे.

जेल से फ्रेडी को सुल्ताना का संदेश

हिरासत से सुल्ताना ने फ्रेडी को नजीबाबाद किले में कैद अपनी पत्नी, बेटे और ख़ास कुत्ते का ख़याल रखने के लिए संदेश भिजवाया. सुल्ताना ने अंग्रेज़ों के चाटुकार भारतीयों से नफ़रत की वजह से अपने कुत्ते का नाम ‘राय बहादुर’ रखा था. राय बहादुर की उपाधि अंग्रेज़ सरकार द्वारा वफ़ादार हिन्दुस्तानियों को दी जाती थी. सुल्ताना के राय बहादुर को फ्रेडी ने खुद पाल लिया. सुल्ताना के परिवार की जिम्मेदारी भी फ्रेडी ने खूब निभाई. सुल्ताना की इच्छा का सम्मान करते हुए फ्रेडी यंग ने उसकी मौत के बाद उनके बेटे को शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया. उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत लौटने के बाद आईसीएस का इम्तहान पास कर वह पुलिस अधिकारी बना.

सुल्ताना का व्यक्तित्व इतना विराट और प्रभावशाली था कि जिम कॉर्बेट ने उसकी तारीफ में लिखा —

सुल्ताना एक अपराधी था. उसे अपराधी पाया गया और फांसी चढ़ा दिया गया. चाहे जो भी हो उस छोटे से आदमी के लिये मेरे मन में जो जज्बात हैं उन्हें जाहिर किये बिना मैं नहीं रह सकता — जिसने अपने बूते पर 3 साल तक पुलिस की ताकत को बौना साबित किया. जिसने अपनी बहादुरी से उन व्यक्तियों से भी सम्मान हासिल किया जो जेल की काल कोठरी में उसके पहरेदार थे.

मैं सिर्फ तमन्ना ही कर सकता था कि हथकड़ियों-बेड़ियों में सुल्ताना की नुमाइश लगाने की कानून को जरूरत न पड़े. मेरी दिली ख्वाहिश थी कि वे लोग हथकड़ियों-बेड़ियों में जकड़े सुल्ताना की खिल्ली न उड़ा सकें जो कभी उसके नाम से भी कांपते थे. मैं यह भी कामना ही कर सकता था कि सुल्ताना को सजा देने में नरमी बरती जाये. क्योंकि सुल्ताना पैदा होते ही सुल्ताना के माथे पर अपराधी लिख दिया गया था तथा उसे कुछ और करने का मौका ही नहीं दिया गया. यह भी वजह है कि जब सुल्ताना के नाम का डंका बजता था तब भी उसने किसी गरीब को परेशान नहीं किया. इस वजह से कि बड़ के पेड़ तक उसका पीछा करते मेरे दोस्तों की जान उसने बख्शी. और सबसे अंत में इसलिए कि जब सुल्ताना फ्रेडी से मिलने आया तो उसके हाथ में रिवाल्वर या चाकू नहीं एक तरबूज था. (Sultana Dacoit Robinhood of India)

-सुधीर कुमार

(जिम कॉर्बेट की किताब माइ इंडिया के अध्याय सुल्ताना : इंडियाज रॉबिनहुड के आधार पर)    

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Sudhir Kumar

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  • धन्यवाद डाकू सुल्ताना का चरित्र चित्रण देने के लिए

  • श्रीमन सुल्ताना जी अमर हैं। उनको कोटि-कोटि प्रणाम। आपने उनके जीवन चरित्र से लेकर अंतिम समय तक का अत्यंत रोमांचक वर्णन किया। यह उस दौर के इतिहास, भूगोल, समाज और प्रशासन समेत कई रगों से लैस है। काफर ट्री की तमाम पोस्ट अदम्य साहसी, गरीबों के रहनुमा सुल्ताना की गाथा की तुलना में फीकी लगती हैं।

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