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ईजा के मरने का इंतजार…

ईजा कल मरेगी या परसों इसी उधेड़बुन में रात का दूसरा पहर भी बीत गया. करीब दस साल बाद आज वह उस कमरे में सोया था जहां 40 साल पहले पैदा हुआ था. कितना खुश हुई थी कलावती. इसके बाद उसे एक बेटा-बेटी और हुए लेकिन उसने हमेशा सबसे ज्यादा दुलार कृष्णा को ही किया. यही वजह थी कि कृष्णा को एक बार देखने के लिए तीन महीने से बिस्तर पर मुर्दा पड़ी थी. (Story by Rajiv Pandey)

गांव के किसी बुजुर्ग ने राय दी शायद कृष्णा को देखना चाह रही है, बुला लो नहीं तो मरेगी नहीं.

डेढ़ महीने पहले भी जब कृष्णा को बुलाने के लिए फोन किया गया था तो उसने ईजा की रिपोर्ट व्हाट्सएप पर हैदराबाद ही मंगा ली थी. रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाई या नहीं लेकिन छोटे भाई कमान को बताया था कि सब कुछ नार्मल है. 15 हजार रुपये छोटे भाई के खाते में डालते हुए कह दिया था कि ईजा को खूब फल-फ्रूट खिला देना. कमान कुछ कहता इससे पहले कृष्णा ने फोन काट दिया. वह कृष्णा को बताना चाहता था कि कंपाउंडर ने ईजा को केवल लिक्विड डाइट देने के लिए कहा है. लेकिन कृष्णा के पास ये सुनने का समय नहीं था. वह अब 35 लोगों की टीम को हेड करता था. किसी भी कीमत पर वह अपनी टीम के सामने एक मजबूत उदाहरण बने रहना चाहता था. मां तो बहुत पीछे छूट चुकी थी. वह कई बार साथ रह रही पत्नी, बेटे और बेटी की भी उपेक्षा कर देता. काम के लिए उसका जुनून कहें या हवस? दोनों शब्दों के बीच बहुत बारीक अंतर रह गया था. इसके बाद एक महीने तक कृष्णा ने फोन कर ईजा की आदर-कुशल जानने की जरूरत नहीं समझी.

आज फिर कमान ने फोन लगाया तो बोज्यु ने उठाया. बोज्यु ने ईजा का हाल जानने की औपचारिकता भी नहीं की. कैसे हो कमान का जवाब सुने बगैर ही लो अपने ददा से बात करो कह कृष्णा को फोन पकड़ा दिया. कमान ने बताया कि अब ईजा नहीं बचेगी. कृष्णा पूछना चाहता था कि कब मरेगी लेकिन पता नहीं क्या सोचकर रुक गया? कमान ने कहा सब लोग एक बार आ जाओ. ईजा कहती है कि जब मैं मरुंगी चारों नाती मुझे कंधा देंगे. कृष्णा ने कहा, सब तो नहीं आ पाएंगे मुझे आना ही पड़ता है. (Story by Rajiv Pandey)

फोन रखते ही कृष्णा पत्नी पर खीझ निकालाते हुए बोला, ईजा को भी अभी बीमार होना था. अगले महीने प्रेजेंटेशन है. इसके चक्कर में सब गड़बड़ हो जाएगा. पत्नी ने कहा मत जाओ, इतने साल से नहीं गए किसी ने कुछ कहा. कृष्णा बोला, इस बार जाना ही पड़ता है. कमान और उसकी बीवी पूरे गांव में गा देंगे मरती ईजा को भी देखने नहीं आए. दूसरे दिन हैदराबाद से फ्लाइट लेकर वह सुबह दिल्ली और यहां से शताब्दी पकड़कर दिन में करीब 12 बजे तक हल्द्वानी पहुंच गया. हल्द्वानी से टैक्सी लेकर करीब तीन बजे वह अपने घर मुक्तेश्वर में था.

रजाई के गुदड़े में लिपटी कलावती निवाड़ वाली चारपाई में ढलती धूप में पड़ी थी. पास ही सगड़ में दौ बन रहा था. जैसे ही कुत्ते की भौकने की आवाज आई तो कलावती के आंखों से धीरे-धीरे आंसू लुढ़कने लगे और तकिया भीग गया. कृष्णा ने चारपाई के एक कोने में बैठकर ईजा का हाथ पकड़ा तो उसने उठने की कोशिश की लेकिन शरीर में इतनी ताकत नहीं थी. कुछ देर कृष्णा को निहारने के बाद वह दरवाजे की तरफ देखने लगी. शायद बहू और नाती को खोज रही थी. कमान ने पूछा बोज्यु लोग क्यों नहीं आए? कृष्णा ने जवाब दिया बहुत लंबा सफर हो जाता है यार. कृष्णा का यह जवाब शायद कलावती को अच्छा नहीं लगा. वह लगातार खांसने लगी जैसे नाराजगी जाहिर कर रही हो. कमान की बीवी ने पानी गरम कर दिया था. कृष्णा हाथ-मुंह धोने चला गया. कमान ईजा को उठाकर अंदर ले आया.

शाम ढल चुकी थी, खाना बन गया था. बिस्तर पकड़ने के बाद आज कई दिन बाद पहली बार ईजा ने एक कटोरा टमाटर का सूप पिया था. कृष्णा और कमान की गपशप चल रही थी, कृष्णा ने बात-बात में बताया कि उसे जल्द ही वापस लौटना है. कमान ने पूछा ईजा को ऐसे छोड़कर? कृष्णा ने कहा ईजा की तो अब उम्र हो गई है. आज नहीं तो कल मरेगी ही. मैं रुपये दे जाऊंगा, तुम चिंता मत करो. (Story by Rajiv Pandey)

पीठ पलटाकर लेटी कलावती सब सुन रही थी. उसके ठीक सामने वह कोड़ा (कोना) था जहां 40 साल पहले उसे पहली संतान हुई थी. प्रसव के दौरान हुआ दर्द आज के दर्द से काफी कम था. आंसुओें की धार के साथ पूरा अतीत बह निकला था. कृष्णा के बाबू जब मरे थे तब वह दसवीं में था. गांव के प्रधान गोपाल ने कलावती से कहा था, हल्द्वानी गुप्ता की दुकान में लगा देता हूं तेरी भी मदद हो जाएगी. बड़ी खार आई थी कलावती को बेटे को गुप्ता की दुकान में लगाने की बात सुनकर. बगैर प्रधान से कुछ बोले वापस लौट आई थी वह.

कृष्णा को पढ़ाने के लिए कलावती ने सालों अपने ही बराबर वजन की गाजियो (घास) की भारियां बोकीं (उठाईं), लोगों के खेत अध्या (बंटाई) लिए और होटल-होटल दूध बेचा. हल्द्वानी में नये-नये खुले आम्रपाली इंस्टीट्यूट में कलावती ने जब कृष्णा का दाखिला करवाया तो लोग चौंक गए थे. उसके चरित्र पर तक शक किया जाने लगा कि इतना पैसा कहां से ला रही है? किसी ने कलावती की इच्छाओं को कत्ल होते नहीं देखा. कलावती ने लीटरों दूध बेचा लेकिन खुद कभी एक गिलास नहीं पिया. कई किलो घी बेचा लेकिन खुद कभी एक चम्मच नहीं चखा. ऐसे मन मारकर, पेट काटकर उसने कृष्णा को बीसीए कराया.

कृष्णा को जिस दिन कॉलेज से प्लसेमेंट मिला कितना खुश हुई थी कलावती. कमान ने बताया था ददा अब कितने रुपये कमाएगा. एक ही रात में कितने सपने देखे थे उसने. सबसे पहले पाथर वाली छत्त ठीक करनी थी. कई साल से चू रही थी. घर के भीतर की पाल भी जगह-जगह टूट गई थी. इसे भी बदलवाना था. कई साल हो गए थे उसने नया कपड़ा नहीं पहना था. कुछ नई धोतियां लेने का खयाल भी मन के कोने में कहीं चल रहा था. (Story by Rajiv Pandey)

कृष्णा जब पहली बार छुट्टी आया था तो कमान ने मां के सपनों के बारे में बताया था उसे. कृष्णा ने दो टूक जवाब दिया था, क्या रखा है यहां? ये टूटा हुआ घर ठीक करके पैसे बर्बाद करने हो रहे हैं यहां. क्या है इस गांव में? सड़कें नहीं हैं, अस्पताल नहीं है, रात में बाहर नहीं निकल सकते. जंगली जानवर रोज किसी न किसी को मार रहे हैं. सबसे बड़ी बात यहां दो बातें करने के लिए ढंग के आदमी नहीं हैं. शराबी ही शराबी हैं सब तरफ. कृष्णा की बातें सुनकर उस दिन भी कलावती को धियाक हो गई लेकिन वह कुछ नहीं बोली. सपनों का मर जाना उसके लिए नई बात नहीं थी.

एक हफ्ते रहकर कृष्णा वापस लौट गया. हैदराबाद में ही उसने शादी की. ईजा को फोन करके बताया कि इतनी दूर आकर तू क्या करेगी? शादी करके हम जल्दी आएंगे. इसमें भी वो खुश हो गई. वो पहाड़ी लड़का अब वापस लौटना चाहता है

शादी के छह महीने बाद कृष्णा गांव आया और तीन दिन रहकर चला गया. शुरुआत में कुछ दिन ईजा को मनीआर्डर करता रहा. बाद में ये सिलसिला भी टूट गया. उसने अपनी तरफ से कभी ईजा को देखने की इच्छा या उसका हाल जानने की कोशिश नहीं की. बेटा पैदा होने पर भी कृष्णा ने कलावती को बताने की जरूरत नहीं समझी. ईजा फिर भी उसके इंतजार में जिंदा रही लेकिन अब मरना चाहती थी क्योंकि कृष्णा के पास ज्यादा समय नहीं था. लेकिन उसके शरीर में इतनी भी जान नहीं थी की खड़े होकर खुदकशी कर सके. उसने लेटे-लेटे अपनी पुरानी धोती का पल्लू मुंह में ठूंस लिया. (Story by Rajiv Pandey)

कुछ देर तक तेज-तेज सांसें कमरे में आईं. इसके बाद धीरे-धीरे सन्नाटा पसरने लगा. कलावाती कुछ साल पहले जिस कुत्ते को मायके से लाई थी वह तेज-तेज रोने लगा. कमान की बीवी ने कुत्ते को चुप कराने की कोशिश की लेकिन वह नहीं रुका. उसने कुत्ते को गाली करते हुए कमान से ईजा को बाहर ले जाने के लिए कहा. कमान ईजा के कमरे में जैसे ही पहुंचा दहाड़ों की आवाज बाहर आई. पीछे-पीछे कृष्णा भी आया. मां की लाश देखकर उसके चेहरे पर एक अजीब सुकून था.

राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक  हैं.

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Sudhir Kumar

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  • क्यो होती औलाद निष्ठुर ! बड़ा सटीक चित्रांकन !

  • भावुक कर देने वाला चित्रण। क्या कहूँ। समय के साथ हम् कितने निष्ठुर हो गए हैं।

  • वर्तमान की वास्तविकता बताती कहानी। अदभुत

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