उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में पौड़ी जिले का ऐतिहासिक क़स्बा है श्रीनगर. अलकनंदा नदी के तट पर बसा श्रीनगर भारत के उन ऐतिहासिक स्थलों में माना जाता है जो 5000 साल पहले से विद्यमान हैं. इन सालों में श्रीनगर कई बार उजड़ा और बसा है. बहुत विषम स्थितियों में भी इस कस्बे ने अपने मूल स्वरूप को बनाये रखा है.
पौराणिक समय में इसे श्री क्षेत्र कहा जाता था. बाद में इसे श्री पुर कहा जाने लगा. श्रीनगर महाभारत काल में कुलिंद नरेश सुबाहु की राजधानी हुआ करता था, तब इसे श्रीपुर कहा जाता था.
सन 1515 में गढ़वाल के राजा अजय पाल ने श्रीनगर को गढ़वाल की राजधानी बना दिया, इस समय तक चांदपुर व देवलगढ़ गढ़वाल की राजधानी रहे थे.
1803 तक यह गढ़वाल के पंवार शासकों की राजधानी रहा. 1804 में नेपाल के गोरखा शासकों ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया. 1815 तक श्रीनगर गोरखा शासकों की सत्ता का केंद्र बना. इस समय तक श्रीनगर गढ़वाल की प्रशासनिक इकाई होने के साथ-साथ वाणिज्यिक केंद्र भी हुआ करता था. अंग्रेजी राज में पौड़ी को गढ़वाल का मुख्यालय बना दिया गया. बाद के समय में श्रीनगर ने अपना व्यापारिक महत्त्व भी खो दिया.
श्रीनगर में एक बड़ी चट्टान पर प्राकृतिक श्रीयंत्र बना हुआ था, इसी वजह से इसे कभी श्रीक्षेत्र तो कभी श्रीनगर कहा गया.
गढ़वाल का केंद्र बिंदु होने की वजह से यह चारों तरफ की मुख्य जगहों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है.
आजाद भारत की पहली जनगणना के अनुसार श्रीनगर की आबादी 2385 हुआ करती थी. 2011 की जनगणना के समय में यह आबादी बढ़कर 20,115 हो गयी. श्रीनगर साक्षरता दर के मामले में शेष राज्य से काफी आगे है. जहाँ उत्तराखण्ड की औसत साक्षरता दर 78.82 है वहीं श्रीनगर की साक्षरता दर है 92 प्रतिशत.
1803 में भूकंप ने श्रीनगर को बुरी तरह तबाह किया तो 1894 में गौनाताल के टूट जाने से आई बाढ़ ने इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था. 1970 और 1995 में अलकनंदा की बाढ़ ने भी श्रीनगर को काफी नुकसान पहुंचाया.
1894 की तबाही के बाद कस्बे को एक किमी ऊपर की तरफ बसाया गया, जहाँ की यह आज है. जहाँ पर आज श्रीनगर का राजकीय पालीटेक्निक है वहीँ पर पुराना श्रीनगर तथा अजय पाल का महल होना बताया जाता है.
इस ऐतिहासिक नगर के आसपास आज भी कई मठ और मंदिर हैं जिनसे विभिन्न किवदंतियां जुड़ी हुई हैं —कमलेश्वर, किलकिलेश्वर, शंकरमठ, गोरखनाथ गुफा, लक्ष्मीनारायण मंदिर और राजराजेश्वरी मंदिर आदि.
कभी गढ़वाल के सत्ता और वाणिज्य, व्यापार का केंद्र रहा गढ़वाल आज बदलते समय में संस्कृति व शिक्षा के केंद्र में ढलता चला जा रहा है.
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