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मॉल चलो भई मॉल चलो: नए बखत का शहरी गाना

चिंटू –चिन्नी, पापा –मम्मी
साथ में उनके बाबा–ईजा
तोंद–पोंद से लटक रहे थे
जाने कितने बर्गर–पीजा

हफ्ते भर की भूख मिटाने
और टापने छूट का माल
महँगी सी गाड़ी में ठुंस के
आ पहुँचे थे शॉपिंग मॉल

ऑडी,होण्डा,बी एम डब्लू
पोलो , पुंटो , बैगन – आर
हट बे!चल बे!पौं पौं-पीं पीं
कारों का था हाहाकार

एक से एक सब बड़े धुरंधर
बिल्डिंग , दारू, गहने वाला
डीएम,सीएम,जीएम,पीएम
न कोई किसी से दबने वाला

रगड़-घुसड़ के,ठोंक-ठाँक के
गाड़ी रो कर माँगे डेंटिंग
कटे–फ़टे से,रुते–मुते से
बेसमेंट की पहुँचे पार्किंग

फिर गाड़ी से उतरे वे योद्धा
ला चेहरे पर पैसे का तैश
एक जेब में कार्ड भरे थे
एक जेब में भरा था कैश

साउथइंडियन, नॉर्थइंडियन
थे सीसीडी और केएफसी
ग़ाज़ी बन कर मॉल घूमते
करने सबकी ऐसी तैसी

पापा–मम्मी ख़ूब मनायें
देख डुकरिया के तेवर
पर चिंटू-चिन्नी केएफसी में
बाबा ग़ुस्से में घूमें बाहर

मम्मी घुसती ज़ारा डब्लू
लावी का लेना था बैग
लघुशंका की बात बोलकर
पापा मार आये दो पैग

फिर बुड्ढों का लागा मौका
राजस्थानी खाने का चाव
चिंटू को था गेम खेलना
पैर पटक खाता था ताव

चिंटू ने फिर रौंद दिया था
वो खेलों वाला पूरा हॉल
चिन्नी का मुँह फूल गया
क्यों नहीं दिलाई बार्बीडॉल

थे ख़फ़ा-ख़फ़ा,रूठे-रूठे
फूले मुख ,निकले न हर्फ़
गर्म दिमाग़ को ठंडा करने
लाये बास्किन–रोबिन बर्फ़

कहीं बजट या छूट का लफ़ड़ा
कहीँ पर आड़े थे सँस्कार
सब कुछ है पर कुछ न पाया
है अद्भुत पूँजी का संसार

कपड़े गैज़ेट और खिलौने
ऐसी कितनी आधी आस
मौन-मौन से आते वापस
पेट ठुंसे पर मन में प्यास

गुमसुम-अनमन चले जा रहे
मार्ग में था गाँधी उपवन
पापा बोले रुक जाते हैं
यदि अच्छा हो जाये मन

चिंटू भागा हरी घास पर
चिन्नी भी पीछे दौड़ी
पापा पीछे बाबा भागे
हाँफ-हाँफ साँसे उखड़ी

चिंटू-चिन्नी, बाबा-ईजा
माँ-पापा संग करते शोर
पाँच रुपये में गुब्बारे थे
बीस रुपये में चन्ना-झोर

पारिजात के पुष्प तोड़कर
माँ-दादी ने लिये सजा
चिंटू चहक-चहक के कहता
पापा आया ख़ूब मज़ा

श्रम से सारा क्रोध बह गया
और प्रफुल्लित हर्षित मन
चिन्नी ने फिर करी घोषणा
माँ हर संडे आयेंगे उपवन
न!न!
रोज़ ही आयेंगे उपवन

प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

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