कुमाऊँ स्थित जागेश्वर मंदिर किसी परिचय का मोहताज नहीं है न ही किसी को यह बताने की आवश्यकता है कि जागेश्वर मंदिर और उसके आस-पास के देवदार के पेड़ों का महत्त्व क्या है. देवदार के जंगलों के झुरमुट से गुजरकर हमने और हमारे बुजुर्गों ने न जाने कितने बार जागेश्वर मंदिर पर यात्रा की होगी. आज तक यह यात्रा इंसानों द्वारा की गई इसलिये कभी किसी को न तो मार्ग संकरा लगा न कभी किसी को सुझा की इसे चौड़ा किया जाना चाहिये. अब विकास ने इस राह पर अपनी नजर गड़ाई है.
(Save Jageshwar)
पौराणिक कथाओं की मान लें तो देवदार के इन जंगलों को भगवान शिव और पार्वती का निवास माना गया. यहां देवदार के कई सारे पेड़ शिव और पार्वती के संयुक्त रूप में सदियों से पूजे जाते रहे हैं. इतिहासकारों की मान लें तो कत्यूर हों या चंद राजा, जागेश्वर के साथ देवदार का यह वन सभी के लिए आस्था का केंद्र रहा. कुल मिलाकर देवदार का वह वन जो शिव को भाया और यहां के शासकों को भी उस पर अब विकास नाम का ग्रहण लगने को है.
पिछले कुछ दशकों में हिमालयी क्षेत्रों में विकास के नाम पर जबरन शहरीकरण थोपा जा रहा है. चौड़ी सड़क, आलीशान बार और कैफे, बड़े-बड़े होटल्स, ब्रांडेड दुकानें और आई लव डैश-डैश जैसे भौंडे बोर्ड, विकास की गड़ी गई इस परिभाषा के हिस्से हैं. हजारों करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले स्थानीय जनता से किसी प्रकार का राय मशविरा नहीं किया जाता है. जागेश्वर से लगा देवदार का यह सुरम्य जंगल विकास की इसी परिभाषा के चपेट में आने को है.
(Save Jageshwar)
कोई कहता रहे कि पेड़ों में हमारी आस्था है या कोई पुराण खोलकर देवदार के पेड़ों का महत्व समझाने की कोशिश कर दे. विकास की इस परिभाषा में देवदार का पेड़ मतलब लकड़ी के लम्बे मोटे डंडे से अधिक कुछ नहीं. पर्यावरण जैसे शब्दों का तो दूर-दूर तक इस विकास से कुछ लेना-देना नहीं. इसी विकास को अब देवदार के पेड़ों के बीच एक चौड़ी सड़क चाहिये. एक हज़ार पेड़ कटने से किसी की आस्था को ठेस पहुंचे या पर्यावरण को नुकसान हो विकास को केवल चौड़ी सड़क से मतलब है.
स्थानीय जनता से लेकर उत्तराखंड विधानसभा सदस्य तक जागेश्वर में एक हजार देवदार के पेड़ काटने की बात का विरोध कर रहे हैं. इसके बावजूद सोशियल मीडिया में जारी एक वीडियो में मंदिर के पुजारी मुकेश चन्द्र भट्ट देवदार के पेड़ों पर लगे लाल निशान दिखा रहे हैं. सोशियल मीडिया पर भी #SaveJageshwar लिखकर सरकार से अपील की जा रही है कि विकास के अपने इस फैसले पर वह फिर से विचार करे.
चाहें तो काफल ट्री के पाठक भी सोशियल मीडिया पर #SaveJageshwar पोस्ट शेयर कर सकते हैं क्या पता किसी को समझ आ जाये कि देवदार का यह जंगल महत्वपूर्ण है.
–गिरीश लोहनी
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जागेश्वर महादेव के देवदार के विशाल बृक्ष ही जागेश्वर महादेव की पहचान हैं । ये महादेव का निवास ही इन्हीं बृक्षों की छांव में है । जागेश्वर की जनता प्रण ले कि भले प्राण देने पडें पर बृक्षों को नहीं कटने देंगे । विशाल जन आंदोलन उठाना होगा तभी इन पर गयी कुदृष्टि का नाश सम्भव होगा ।
हर हर महादेव
बिल्कुल सही। सभी उत्तरांचल वासियों को इन देवदार के वृक्षों की रक्षा हेतु अपना संघर्ष तेज करना चाहिए। हमारी आस्था और पर्यावरण को खण्डित करने वाला विकास हमें नहीं चाहिए। देवभूमि उत्तरांचल के धार्मिक स्थलों को पिकनिक स्पॉट बनाना बन्द करें और स्थानीय जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सरकार इस सम्बन्ध में कड़े दिशा-निर्देश जारी करें।