Featured

क्या अधिकमास अथवा पुरूषोत्तम मास में पार्थिव पूजन किया जा सकता है?

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

इस वर्ष अधिकमास अथवा पुरूषोत्तम मास सावन के महीने में पड़ रहा है. सावन का महीना हर सनातनी के लिए शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजन का पवित्र महीना माना जाता है. लेकिन इस माह में अधिकमास होने से कई लोगों में यह शंका होना स्वाभाविक है कि क्या इस साल श्रावण माह में शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजा की जा सकेगी अथवा नहीं? पुरोहितवर्ग में मतैक्य न होने से लोग भ्रमित हैं.
(Savan in Uttarakhand)

पुरोहितों का एक वर्ग कहता है कि इस बार श्रावण माह में शिवार्चन नहीं किया जा सकेगा, जब कि दूसरा वर्ग कहता है कि जो नियमित रूप से करते आये हैं, वे तो शिवार्चन कर सकते हैं जब कि जो पहली बार शिवार्चन की शुरूआत कर रहे हों, वे अधिकमास से शिवार्चन की शुरूआत न करें. दूसरी ओर पुरोहितों का एक बड़ा वर्ग का कहना है कि अधिकमास यदि श्रावण माह में पड़ रहा है, तो यह शिवार्चन के लिए सबसे उपयुक्त काल व अधिक पुण्य व फलदायी है. क्योंकि मांगलिक कार्यों को छोड़कर दान, पुण्य, जप-तप के लिए अधिकमास कई गुना अधिक पुण्यफल देने वाला है.

इससे पहले कि इस पर विस्तार से चर्चा करें, आइये जानते हैं कि अधिकमास, अधिमास, मलमास अथवा पुरूषोत्तम होता क्या है? सनातन संस्कृति के अनुसार ज्योतिष काल गणना दो तरह से होती है – पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा-गति और चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा-गति के अनुसार. इसे ही सौरमास व चन्द्रमास के नाम से जाना जाता है. वर्ष में सूर्य बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करता है और इसी संक्रमण के दिन को संक्रान्ति नाम दिया गया है. जैसे मेष, कर्क, मकर संक्रान्ति आदि आदि. पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट और 46 सेकेण्ड का समय लगता है. इस प्रकार हम देखते हैं, कि सौर मास के अनुसार संक्रान्ति पर मनाये जाने वाले पर्व जैसे मेष संक्रान्ति (विखौती) कर्क संक्रान्ति (हरेला) मकर संक्रान्ति (उत्तरायणी) अमूमन हर वर्ष निश्चित तिथि को ही होते हैं, ये बात दीगर है कि कभी-कभी एक दिन आगे पीछे हो सकता है.

आंग्ल कैलेण्डर की तरह इसमें हर माह एक निश्चित दिनों का नहीं होता, बल्कि हिन्दी माहों में ज्योतिषीय गणना के अनुरूप हर महीने के दिन घट अथवा बढ़ सकते हैं और कोई महीना 32 दिनों का भी होता है. जैसे कि इस वर्ष आषाढ़ माह 32 दिन का है. लेकिन सौरवर्ष की तरह चन्द्र वर्ष इतने दिन का नहीं होता. बल्कि चन्द्र वर्ष 354 दिन यानि सौर वर्ष से 11 दिन कम होता है. सनातन संस्कृति में अधिकांश पर्व चन्द्रमास के अनुसार तिथियों पर मनाये जाते हैं, जैसे नवरात्रि, श्रावणी पूणिर्तमा पर रक्षाबन्धन, दशहरा, दीपावली, शिवरात्रि, होली आदि.
(Savan in Uttarakhand)

इस प्रकार 11 दिनों का यह अन्तर 3 साल में लगभग एक महीने से अधिक हो जाता है. इसी को सन्तुलित करने अथवा यों कहें कि सौरमास से सामंजस्य बिठाने के लिए ही हर तीसरे वर्ष अधिकमास अथवा अतिरिक्त मास की व्यवस्था ज्योतिष गणना में की गयी है. अगर इस तरह की व्यवस्था न होती तो हर वर्ष हमारे चन्द्र मास के आधार पर मनाये जाने वाले पर्व 11 दिन पहले हो जाया करते. इस तरह दीपावली, होली आदि हर तीन साल के बाद एक माह पहले हो जाती. यानि होली, दीवाली आदि कभी जाड़ों में, कभी बरसात में तो कभी गर्मियों में होती. जैसा कि इस्लामिक त्योहार ईद में होता है, क्योंकि इस्लाम केवल चांद को ही आधार मानकर चलता है. इसलिए इस्लामिक कैलेण्डर में ईद का समय निरन्तर बदलते रहता है. जब कि सनातन संस्कृति में अधिकमास की ज्योतिषीय गणना के कारण चन्द्रमास के पर्व पुनः अपने समय पर वापस लौट आते हैं. अधिमास का यही क्रम हर तीसरे वर्ष पुनः आते रहता है।

पर्वतीय क्षेत्रों में सावन या श्रावण मास, सूर्य के कर्क राशि में संक्रमण यानि हरेला पर्व से मानते हैं, जो कि इस वर्ष 17 जुलाई को है, इसी दिन के बाद शिवार्चन अथवा पार्थिवपूजन किया जाता है,जब कि देश के अन्य भागों में चन्द्र मास के अनुसार श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से श्रावण मास माना जाता है और इसी तिथि से एक माह पर्यन्त शिव पूजन किया जाता है जो इस 4 जुलाई से शुरू होगा. यानि जो लोग अधिकमास के कारण शिवपूजन न होने के तर्क पर विश्वास करते हैं वे चन्द्रमास के अनुसार 04 जुलाई से 17 जुलाई तक शिवपूजन कर सकते हैं, जो अधिमास अवधि से पहले है लेकिन सौरमास यानि श्रावण के 01 गते से श्रावण मास मानने वाले पर्वतीय समाज के लोगों के लिए इस आधार पर केवल 17 जुलाई का ही दिन पार्थिव पूजन के लिए मिलता है क्योंकि 18 जुलाई 2023, श्रावण शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अधिकमास प्रारम्भ हो जायेगा जो 16 अगस्त 2023 तक चलेगा.

अब मुख्य सवाल पर आते हैं कि क्या अधिकमास में शिवार्चन या पार्थिवपूजन किया जा सकता है? इसके लिए पौराणिक आख्यानों का आश्रय लेते हैं. हमारे मनीषियों ने हर माह के लिए एक अधिपति देवता निर्धारित किये, इस प्रकार बारह मासों के लिए 12 अधिपति देवता तो निर्धारित थे, लेकिन इस तेरहवें मलमास (मलिनमास) के लिए अधिपति बनने को कोई देवता तैयार नहीं हुए, इस परिस्थिति में ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे इस माह का भार अपने ऊपर लें. ऋषियों के आग्रह पर भगवान विष्णु ने यह अनुरोध स्वीकार किया और उस मास का नाम अपने ही नाम के अनुरूप पुरूषोत्तम मास रख दिया. पुरूषोत्तम, भगवान विष्णु का ही एक नाम है.
(Savan in Uttarakhand)

च्यूंकि इस मास के स्वामी स्वयं भगवान विष्णु हैं, इसमें भले ही मांगलिक कार्य (विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, नामकरण आदि) न हों लेकिन भगवान विष्णु कहते हैं कि जो व्यक्ति इस माह में जप, तप, दान तथा धार्मिक अनुष्ठान करता है, उसे मैं सामान्यकाल की अपेक्षा दस गुना फल देता हॅू. यहां पर एक प्रश्न यह उभरना भी स्वाभाविक है कि इस वर्ष पुरूषोत्तम मास श्रावण के महीने में पड़ रहा है,  पुरूषोत्तम भगवान विष्णु तो हरिशयनी एकादशी से हरिबोधिनी एकादशी तक स्वयं योगनिद्रा में हैं. लेकिन हम यह भी न भूलें कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु की योगनिद्रा की अवधि में वे समस्त सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं. तब तो शिव आराधना के लिए इससे उपयुक्त और कोई समय हो ही नहीं सकता.

इस संबंध में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. डी.के. त्रिपाठी से जब राय जाननी चाही, तो उनका स्पष्ट मत था कि यह तो सौभाग्य है कि हमें शिव आराधना के लिए पूरे दो माह मिल रहे हैं. उनका कहना था कि जो नियमित रूप से पार्थिव पूजन कर रहे हैं, वे तो पार्थिव पूजन करेंगे ही, लेकिन जो पहली बार पार्थिव पूजन की शुरूआत कर रहे हैं, उन्हें भी पार्थिव पूजन शुरू करने में कोई हर्ज नहीं है. अपनी बात को आगे बढाते हुए वे कहते हैं, कि यदि घर पर शिवलिंग नहीं है, तो ही पार्थिव बनाये जाने चाहिये, यदि मन्दिर में शिवलिंग है,तो पार्थिव बनाकर उनकी प्राण प्रतिष्ठा के बजाय पहले से प्राणप्रतिष्ठित शिवलिंग पर ही शिवपूजन श्रेयस्कर है.

रूद्राभिषेक में रूद्री पाठ पर उनका मत है कि यदि स्वरों के आरोह-अवरोह और शुद्ध उच्चारण के साथ रूद्रीपाठ किया जाय तो ही व फलदाई होगा और इस प्रकार रूद्रीपाठ करने में पूरे 2 घण्टे का समय लगता है लेकिन आजकल जिस तरह यजमान की पुरोहित के प्रति आस्था रह गयी है, उसी के अनुरूप पुरोहित भी अपना काम कर रहे हैं. उनका यह भी कहना है हरिशयनी के बाद हरिबोधिनी एकादशी पर्यन्त भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं तो भूमिपूजन आदि के बाद योगमाया का पूजन किया जाना चाहिये, जिससे भगवान विष्णु जागृत होंगे,उसके बाद ही नारायण पूजन का विधान है.  

“मुण्डे-मण्डे मतिर्भिन्नाः’’ इसे एक सामान्य जानकारी मानते हुए अन्तिम निर्णय लेने से पूर्व ज्योतिष व कर्मकाण्डीय विद्धानों से इस विषय पर शास्त्रसम्मत परामर्श कर सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है.
(Savan in Uttarakhand)

– भुवन चन्द्र पन्त

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.

इसे भी पढ़ें: लोकगायिका वीना तिवारी को ‘यंग उत्तराखंड लीजेंडरी सिंगर अवार्ड’ से नवाजा गया

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

6 days ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

6 days ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

1 week ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

2 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago