सबसे पहले तिदांग ग्राम में रंचिम ह्या रहते थे. वे एक शक्तिशाली, पराक्रमी, प्रभावशाली व धनुर्धर महापुरुष थे. उनके एक अति सुन्दर हष्ट-पुष्ट एकलौता पुत्र था जिन्हें मंगला ह्या के नाम से जाना जाता था. उस एकलौता पुत्र की दिनचर्या-निठल्ला बैठना, रंगरलियां मनाना, सूर्य देव की नौ कन्याओं के साथ था. मंगला ह्या नौ कन्याओं के साथ मस्त रहता था लेकिन इलाके के देवी-देवता तिदांग रंचिम ह्या के एकलौते पुत्र मंगला ह्या की सूर्य देव की नौ कन्याओं के साथ उठते-बैठते रंगरलियां मनाते हुए कतई नहीं चाहते थे और जले-भुने व नाराज थे, साथ इस मंगला ह्या का जीवन समाप्त करने में भी देवी देवता असमर्थ थे. आखिर में दारमा के समस्त देवी देवता मिल कर रंचिम ह्या के एकलौते पुत्र मंगला ह्या को खत्म करने की योजना (या जिम या गर) बनाते हैं. तभी षडयन्त्र रचाया जाता है और धोखा देकर एकलौते पुत्र मंगला ह्या की हत्या कर देते हैं तथा उसकी आत्मा को लाख का आदमी बनवा कर उसके शरीर में प्रवेश करा देते हैं. इस प्रकार मंगला ह्या लाख का आदमी बन जाता है और घर लौट आता है तथा हमेशा के भांति सूर्य देव की नौ कन्याओं के यहां जाता है नौ कन्याओं के पास पहुंचते ही उनकी ताप से मंगला ह्या का लाख का शरीर पिघल जाता है.
नौ कन्याएं इस काण्ड को देखकर आश्चर्य में पड़ जाती हैं और शोक में डूब जाती है. इस प्रकार तिदांग रंचिम ह्या के इकलौते पुत्र मंगला ह्या का जीवन समाप्त हो जाता है.
जब कई दिन बीतने के बाद में भी पुत्र मंगला ह्या घर नहीं लौटता है तभी रंचिम ह्या अपना झोला, चिमटा, धनुष साथ लेकर अपने इकलौते पुत्र की ढूंढ खोज में निकल जाता है. ग्राम सीपू दांगा-खर्सा से लेकर दर, सोबला, गरूवा तक के देवी-देवताओं के पास जाकर प्रार्थना के साथ अपने गुमशुदा पुत्र मंगला ह्या के बारे में पूछताछ करता है. सभी देवी देवता असली रहस्य को छिपाकर-अनभिज्ञ होकर उत्तर देते हैं. कुछ समय बीतने के बाद एक दिन हूंला ग्राम के देवता देवता दम्फू हयां तिदांग रंचिम के पास आकर उनके एकलौते पुत्र मंगला ह्या के बारे में बताते हैं कि तुम्हारे पुत्र की सर्यू देव की नौ कन्याओं के ताप से पिघल कर मृत्यु हो गयी है. हूला दम्फू देव से यह खबर सुन कर ह्या रंचिम आपे से बाहर हो जाता हैं तथा गुस्से में आकर अपने धनुष बाण उठा लेता है निशाना साध कर सूर्य देव की सबसे बड़ी बेटी सिनो ब्यर पर तीर चला देता है तीर बड़ी कन्या की आंख में चुभ जाती है.
तिदांग रंचिम ह्या अपने एकलौता पुत्र के दुःख में रहते अपना जीवन लीला समाप्त कर देता है.
तिदांग रंचिम ह्या की कहानी को औरतें के श्राद्ध (अम रिमो) में एक अध्याय के रूप में बांचा जाता है. लेकिन ग्राम तिदांग को छोड़कर सभी इलाके वाले गलत तरीके से रंचिम ह्या की कहानी पढ़ते हैं. जो तीदांगवासियों को मान्य नहीं है.
अमटीकर 2012, दारमा विशेषांक से साभार. यह लेख विजय सिंह तितियाल द्वारा लिखा गया है.
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