2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बबलू चौहान बनाम दिल्ली सरकार मामले में निर्णय देते हुए निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ अनुचित मुकदमा चलाने पर चिंता व्यक्त की थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिये एक कानूनी रूपरेखा तैयार करने की तत्काल आवश्यकता बताई थी. न्यायालय ने विधि आयोग से कहा कि इस मुद्दे की विस्तृत जाँच कर सरकार को अपनी सिफारिशें दे.
वैश्विक स्तर पर निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहराने और जेल में बंद करने जैसे मुद्दे को ‘न्याय की हत्या’ कहा जाता है. नागरिक अधिकारों पर अन्तराष्ट्रीय नियम के तहत भी ‘न्याय की हत्या’ के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने के लिये सदस्य राष्ट्रों के दायित्वों की बात करता है. भारत ने भी नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम की पुष्टि की है.
रिपोर्ट में सिफारिश की गयी है कि ‘न्याय की हत्या’ के मानकों में अनुचित तरीके से मुकदमा चलाना, गलत तरीके से कैद करना और गलत तरीके से दोष साबित करना आदि को शामिल किया जाये. अनुचित मुकदमों में वे मामले शामिल होंगे जिसमें निर्दोष व्यक्ति हो तथा पुलिस या अभियोजन पक्ष ने जाँच में किसी प्रकार की अनियमितता बरती हो तथा व्यक्ति को अभियोजन के दायरे में लाया गया हो.
आयोग ने अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने के मामलों के निपटारे के लिये विशेष कानूनी प्रावधानों को लागू करने की सिफारिश की है, ताकि अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमें के शिकार लोगों को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक मुआवज़े के मामले में वैधानिक दायरे के भीतर राहत प्रदान की जा सके.
रिपोर्ट में अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने’ की परिभाषा, मुआवज़े के इन दावों के फैसले के लिये विशेष अदालतें बनाने, मुआवज़ा निर्धारित करते समय वित्तीय और अन्य कारक, कुछ मामलों में अंतरिम मुआवजे का प्रावधान, गलत तरीके से मुकदमा चलाने या दोषी ठहराने आदि को देखते हुए अयोग्यता हटाने जैसी बातों को एक-एक करके बताया गया है.
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