हाल ही में औली में किसी गुप्ता परिवार के बेटों का विवाह हुआ जिसके बाद मुख्यमंत्री ने अपने फेसबुक अकाउंट में कुछ तस्वीरें साझा की. इन तस्वीरों के साथ मुख्यमंत्री ने लिखा
पर्यटन, स्थानीय स्तर पर व्यापक रोजगार देने पलायन रोकने में कारगर साबित हो सकता है.
18 बरस पहले जब इस राज्य के गठन की मांग के लिए आन्दोलन किये जा रहे थे उस समय जब आन्दोलन करने वालों से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा जाता था कि आखिर राज्य की आय का स्त्रोत क्या होगा? राज्य में रोजगार कहां मिलेगा तब सभी राज्य आन्दोलनकारी एक स्वर में कहते थे पर्यटन हमारी आय का एक प्रमुख स्त्रोत होगा. आज राज्य बनने के 18 साल बाद मुख्यमंत्री का यह कहना कि पर्यटन रोजगार देने में कारगर साबित हो सकता है, यह बताने को काफ़ी है कि 18 साल में हमने पर्यटन में कितना कुछ पाया है.
हालिया उदाहरण वैडिंग डेस्टिनेशन के कांसेप्ट को ही लें. भारत में डेस्टिनेशन के कांसेप्ट की संभावना वाले मुख्य राज्य राजस्थान, गोवा, केरल और उत्तराखंड हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वैडिंग डेस्टिनेशन का व्यापार 20 से 30 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है. वैश्विक स्तर पर भी वैडिंग डेस्टिनेशन का प्रचलन खूब है जो मिलियन डालर का वार्षिक व्यापार करता है.
वैडिंग डेस्टिनेशन कांसेप्ट के तहत दूल्हा और दुल्हन अपने घर से दूर किसी अन्य स्थान पर विवाह करते हैं. भारत में अभी तक इस कांसेप्ट के तहत विवाह अपनी परम्परा और रीति-रिवाज से ही होता है मतलब विवाह में केवल स्थान अलग होता है बांकी सब वही रहता है. राजस्थान और गोवा में स्थानीय झलक देखने को जरुर मिलती है.
वैडिंग डेस्टिनेशन कांसेप्ट से स्थानीय स्तर पर व्यापार करने वालों को काफ़ी फ़ायदा होता है. जैसे कि अगर आपने कभी राजस्थान में होने वाले ऐसे किसी विवाह समारोह में भाग लिया होगा तो विवाह के अंत में मेहमानों को दिया जाने वाला तोहफ़ा वहां के किसी स्थानीय उत्पादकों द्वारा बनाया होता है या आप केरल में किसी ऐसे विवाह में शामिल हो जाईये वहां मेहमानों को मिलने वाली मिठाई स्थानीय उत्पादकों द्वारा तैयार की जाती है. मेहमानों के स्वागत के लिए स्थानीय वाद्य यंत्र प्रयोग में लाये जाते हैं.
वैडिंग डेस्टिनेशन कांसेप्ट को उत्तराखंड की स्थिति समझने के लिये हालिया गुप्ता विवाह एक अच्छा उदाहरण है. मुख्यमंत्री ने अपने फेसबुक अकाउंट पर अपने स्वागत के दौरान जो फोटो साझा की है उसमें वजने वाला वाद्य यंत्र स्थानीय नहीं है. इस विवाह में जितना भी खाद्यान्न प्रयोग में लाया गया होगा वह हमने आयात किया होगा क्योंकि उत्तराखंड इतना उत्पादन ही नहीं करता कि ऐसे बड़े समारोह की मांग पूरी कर सके. इस विवाह में ऐसा कोई तोहफा भी शायद मेहमानों को दिया गया हो जिससे स्थानीय उत्पादकों को लाभ मिला हो. इस पूरे विवाह में आपको औली की सुन्दरता के अतिरिक्त शायद ही कोई स्थानीय झलक देखने को मिली हो.
वैडिंग डेस्टिनेशन कांसेप्ट स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की अपार संभावना रखता है. क्योंकि यह विवाह समारोह का ही एक बड़ा रूप है इसलिये इससे मिलने वाले रोज़गार में कितनी संभावना है उसके लिये मैदानी क्षेत्रों में होने वाले रिसॉर्ट और बैंकेंट हॉल में होने वाले विवाहों द्वारा दिए जाने वाले रोजगार पर भी एक नज़र दौड़ानी चाहिये.
मैदानी क्षेत्रों के रिसार्ट में अगर आप एक नज़र दौडायेंगे तो मैनेजर के अलावा दो-एक पोस्ट के अलावा अधिकांश काम बाहरी लोगों के जिम्मे हैं. बहुत अधिक मुनाफ़े का व्यापार होने के बावजूद इसके लाभ का 50 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा राज्य के बाहरी लोगों को जाता है. पूरी तरह से परंपरागत तरीकों से होने वाले इन विवाह समारोह से राज्य को बहुत अधिक लाभ नहीं होता क्योंकि हम उत्पादन के मामले में शून्य हैं. शादी में प्रयोग होने वाले दूल्हा-दुल्हन के लिबाज से लेकर शादी में प्रयोग होने वाले खाने के मसालों को हम आयात ही करते हैं.
वैडिंग डेस्टिनेशन कांस्पेट केवल जगह भर दिलाने से नहीं जुड़ा है न ही इससे स्थानीय लोगों को केवल अप्रत्यक्ष लाभ जुड़ा है. इस व्यापार से स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष लाभ हो सकते हैं जैसे उनके स्थानीय उत्पाद विश्वस्तर पर लोकप्रिय हो सकते हैं जैसे राजस्थान ने कर दिखाया है. वर्तमान में राजस्थान में वैडिंग डेस्टिनेशन कांसेप्ट पर होने वाले विवाह में स्थानीय झलक आपको साफ़ देखने को मिलती है. यही कारण है कि राजस्थान आज भारत में वैडिंग डेस्टिनेशन के मामले में नंबर एक स्थान पर है.
कुल मिलाकर सरकार को वैडिंग डेस्टिनेशन के सपने को लोगों को सपना बनाकर दिखाना चाहिये. लोग अपनी आय का 33% से 40% तक का अपने विवाह सामारोह में खर्च करते हैं इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कितना बड़ा व्यापार क्षेत्र है. सरकार को एक संतुलित नीति का निर्माण करना चाहिये जो हिमालय की संवेदनशीलता को बचाते हुये यहां के लोगों को भी लाभ पहुंचा सके.
– गिरीश लोहनी
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