2016 में मई महीने में डीडीहाट के आस-पास के जंगलों में आग लगती है. भनौरा गांव में रहने वाला 91 बरस का एक बूढ़ा अपनी लाठी के सहारे निकल पड़ता है जंगल की ओर आग बुझाने. आग बुझाने के प्रयास में उसे सांस लेने में तकलीफ होती है और उसी दिन उसे अस्पताल भर्ती कराया जाता है. 25 दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद 8 जून के दिन अपनी आख़िरी सांस लेता है. 25वें दिन जब उसने आखिरी सांस ली तक अस्पताल में उसकी चारपाई के सिरहाने कुछ पेड़ रखे थे इन 25 दिनों में उसे केवल एक चिंता थी कि उसके लगाये नये पेड़ों का कौन ख्याल रखेगा.
अस्पताल में जब कोई उससे मिलने आता तो वह बातों बातों में कहता जंगलों को आग से बचाने के लिये कुछ ठोस करना चाहिये. 91 बरस के इस सज्जन का नाम था कुंवर दामोदर सिंह राठौर, वृक्ष मित्र कुंवर दामोदर सिंह राठौर.
कुंवर साहब ने अपने जीवन में पिथौरागढ़ के न जाने कितने बच्चों के पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया और न जाने कितने लोगों को प्रेरित किया. 1960 ले दशक से वृक्षारोपण कर रहे कुंवर दामोदर सिंह राठौर ने अपने जीवनकाल में 25 हेक्टेयर के 3 विशालकाय वनों को तैयार किया था.
अपने पूरे जीवन में कुंवर दामोदर सिंह राठौर ने लगभग साढ़े आठ करोड़ वृक्ष लगाये थे. लम्बी कद काठी के, कंधे में एक झोला टांगे उन्हें आप अक्सर स्कूल के बच्चों के साथ देख सकते थे. डीडीहाट के भनौरा गांव के आस-पास जो हरियाली आज आप देखते हैं वह कुंवर साहब की मेहनत का ही रंग है.
कुंवर साहब अपने गांव या जिले तक ही सीमित नहीं रहे उन्होंने अपने जिले के बाहर भी बहुत से लोगों को प्रेरित किया. उनके द्वारा जंगलों में पेड़ों की प्रजातियों पर गहन शोध भी किया जाता था.
कुंवर दामोदर सिंह राठौर के योगदान को देखते हुए साल 2000 में उन्हें इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र अवार्ड से सम्मानित किया गया था. यह पुरुस्कार उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने दिया था. उनकी पूण्यतिथि पर प्रत्येक वर्ष पिथौरागढ़ में उनकी बेटी प्रियंका राठौर द्वारा बच्चों को हजारों वृक्ष बांटे जाते हैं.
कुंवर दामोदर सिंह राठौर हमेशा एक बात कहते :
जंगलों को बचाएंगे तभी हम और आप बचेंगे.
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