उत्तराखण्ड में उत्तर पूर्वी कुमाऊँ के चौदास क्षेत्र में श्री कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के प्रारम्भिक पड़ाव, समुद्र तल से 2734 मीटर की ऊंचाई पर देवदार के जंगल के मध्य स्थित यह आश्रम अपने आप में एक आलौकिक एवं दर्शनीय है. मन्दिर प्रांगण की एक ओर से पंचाचूली की चोटी तथा दूसरी तरफ से नेपाल हिमालय में स्थित सुन्दर अपिनम्पा पर्वत चोटियों को देखा जा सकता है. श्री नारायण आश्रम (कैलाश) 1936 में गुरुदेव नारायण स्वामी द्वारा स्थापित किया गया. आश्रम के लिए भूमि सोसा ग्राम के निवासियों ने स्वामी जी को दी.
आश्रम की स्थापना लगभग 82 वर्ष पहले ध्यान, कीर्तन और कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आये तीर्थयात्रियों को सुविधा पहुंचाने हेतु की गयी थी. उस समय मोटर रोड अल्मोड़ा तक की हुआ करती थी अतः तीर्थयात्रियों को नारायण आश्रम तक पहुंचने के लिए 150 मील दूरी की पैदल यात्रा करनी पड़ती थी. आश्रम का उद्देश्य यात्रियों को सुविधा देने के साथ-साथ आश्रम को धार्मिक एवं ध्यान केन्द्र बनाना था. क्योंकि चौदास का यह क्षेत्र अति दुर्गम, दूरस्त एवं मूलभूत सुविधाओं से वंचित था अतः क्षेत्र की मुख्य समस्याओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ आदि के विकास में भी इसका विशेष योगदान है.
नारायण आश्रम की मुख्य इमारत के अंदर भगवान नारायण का सुन्दर मन्दिर है. इस स्थान की प्राकृतिक सुन्दरता व शान्त, शुद्व वातावरण को देख देश-विदेश से प्रकृति प्रेमी इस आश्रम में रहकर हिमालय के अद्भुत दर्शन करते हैं तथा यहां ध्यान कर आत्मशांति प्राप्त करते हैं. इस क्षेत्र के समीप स्थित गांव के लोग गुरु पूर्णिमा को सभी गुरुओं की पूजा एवं जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं. गुरुपूर्णिमा के अवसर पर आश्रम में विशाल भण्डारे का आयोजन किया जाता है.
आश्रम तक पहुंचने हेतु जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से 95 किमी की दूरी तय कर धारचूला पहुंचना होता है. उसके बाद 55 किमी मोटर मार्ग से आश्रम पहुंचते हैं जो कि कठिन पहाड़ों-चट्टानों से होकर गुजरती है. रास्ते में छोटे-छोटे गांव मिलते हैं. यहां की सुंदरता और शांतिपूर्ण वातावरण लोगों को आकर्षित करता है. परन्तु बरसात के मौसम में रोड की हालत अत्यधिक खराब हो जाती है, इस दौरान यह अक्सर बंद ही रहती है.
आश्रम में 30-40 लोगों के रहने एवं खाने की अच्छी व्यवस्था है. परन्तु अत्यधिक बर्फबारी वाला क्षेत्र होने के कारण शीत ऋतु में आश्रम पूर्णतया बंद रहता है. वर्तमान में कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा यहां पर टूरिस्ट गृह की व्यवस्था भी है जो वर्ष भर उपलब्ध रहती है.
जनवरी 2019 में हुई बर्फबारी के बाद नारायण आश्रम की अद्भुत छवियाँ लेकर प्रस्तुत हैं हमारे साथी नरेंद्र सिंह परिहार.
मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…