हमसे तो कभी गणतंत्र भी साफ़ साफ़ न कहा गया. हमारे लिये हमेशा आज का दिन 26 जनवरी हुआ. स्कूल में भी 26 जनवरी को छुट्टी ही रही. कभी बढ़िया मासाप रहे तो उन्होंने झंडा फरहाने का काम कर दिया तब शाम को झंडा उतारने की ड्यूटी हमारे ज़िम्मे हुई.
(People of Uttarakhand Republic Day)
भारत ख़्वाबों का देश है और गणतंत्र दिवस भारत के सुनहरे ख़्वाबों को बुने जाने वाली किताब पर एक ख़ास दिन. सुनहरे ख़्वाबों के बीच उत्तराखंड का आम आदमी कहां है कहना मुश्किल है क्योंकि किसी के सुनहरे ख़्वाब में खंडहर हो चुके घरों से भरा गांव न होगा न किसी के सुनहरे ख़्वाब में जंगल में बच्चे को जन्म देना होगा.
एक अच्छा स्कूल, एक अच्छा अस्पताल, दो वक्त की रोटी के लिये कुछ काम, यही तो उत्तराखंड के गांव में रहने वाले लोगों का ख़्वाब है. क्या उत्तराखंड के गांव में रहने वाले लोगों के इन ख़्वाब को ख़्वाब कहा जाना चाहिये? जीने के लिये जरूरी चीजों को ख़्वाब में गिनना क्या शर्मनाक नहीं है.
(People of Uttarakhand Republic Day)
सुनहरे ख़्वाबों के गणतंत्र में उत्तराखंड के लोग भारत के अंतिम नागरिक में शामिल हैं जिनके लिये जीने के लिये जरुरी चीजें भी ख़्वाब हैं. देश के लिये जान देने को हमेशा खड़े रहने वाली उत्तराखंड के लोगों के लिये समय है सोचने का कि उनकी इस दुर्गति के लिये कौन ज़िम्मेदार है.
कौन जिम्मेदार है जिसकी वजह से अब पहाड़ों में हल्के अंधेरे में निकलना ही जान जोखिम में डालकर चलना हो गया है. किसकी वजह से हमारे गावों को भूतहा गांव कहा जाने लगा है. किसकी वजह से हमारे बच्चे बड़े शहरों में कम रौशनी वाले आठ बाई दस के बंद कमरों में रहने को अमिशप्त हैं. कौन है जिसकी वजह से जीने की जरुरी चीजें हमारे लिये आज ख़्वाब बन गये हैं.
(People of Uttarakhand Republic Day)
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