Featured

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती

उत्तराखंड की धरती पर कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विकास का एक चमकता सितारा है “गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय”, जिसे हम प्यार से पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के नाम से जानते हैं। यह भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय है, जिसकी नींव 1960 में रखी गई थी। पंतनगर, उत्तराखंड के उपजाऊ तराई-भाबर क्षेत्र में बसा है, जहां की भूमि और जलवायु कृषि के लिए एकदम अनुकूल हैं। (Pantnagar Agricultural University farming)

यह विश्वविद्यालय न केवल आधुनिक कृषि पद्धतियों के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि किसानों को नवीनतम तकनीकों से जोड़कर उनकी उपज को बढ़ाने में भी मदद करता है। यहां के वैज्ञानिक और शिक्षाविद खेतों में जाकर किसानों की समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए नई तकनीकें विकसित करते हैं।

इसे भी पढ़ें: सर्दियों की दस्तक

तराई-भाबर क्षेत्र, हिमालय की गोद में बसा एक समृद्ध कृषि केंद्र है, जहां की मिट्टी में जैविक तत्वों की भरपूरता और जलवायु खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। यहां धान, गेहूं, गन्ना जैसी प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं, और बागवानी, सब्जी उत्पादन और पशुपालन भी किसानों की आमदनी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

नदियों के निकटता के कारण जल की प्रचुरता यहां खेती के लिए एक वरदान है। पंतनगर विश्वविद्यालय इस क्षेत्र में उन्नत तकनीकों के प्रयोग को बढ़ावा दे रहा है, जैसे कि आधुनिक सिंचाई प्रणाली, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, खाद और फसल सुरक्षा के उपाय।

इसे भी पढ़ें : उत्तराखंड की संस्कृति

किसानों के लिए आयोजित मेले और प्रशिक्षण कार्यशालाएं उन्हें नई तकनीकों से अवगत कराती हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय ने तराई-भाबर के किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों, कीट नियंत्रण, जल प्रबंधन और फसल संरक्षण के बारे में प्रशिक्षित किया है। यहां की प्रयोगशालाओं में नई फसल किस्में विकसित की जाती हैं, जो क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं।

इस प्रकार, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर क्षेत्र की खेती भारतीय कृषि में एक अनूठी भूमिका निभाते हैं। यह विश्वविद्यालय न केवल तकनीकी सहायता प्रदान करता है, बल्कि नई पद्धतियों का विकास कर किसानों को समृद्धि की ओर अग्रसर करता है। इसके प्रयासों से तराई-भाबर क्षेत्र की खेती में निरंतर सुधार हो रहा है, जिससे यहां के किसान आर्थिक रूप से मजबूत बन रहे हैं। 

रुद्रपुर की रहने वाली ईशा तागरा और देहरादून की रहने वाली वर्तिका शर्मा जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर में कम्युनिटी साइंस की छात्राएं हैं, फ़िलहाल काफल ट्री के लिए रचनात्मक लेखन कर रही हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

3 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

3 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

4 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

4 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

1 month ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

1 month ago