साल 2006 में मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. शायद यही वह दौर था जब लोककलाकार नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने एक गीत से जनविरोधी तिवारी सरकार की पोल खोल दी. उनका गीत लोगों के मन में ऐसा रमा कि तिवारी जी जैसे खांटी राजनीतिज्ञ का सफर ही खत्म हो गया. पहाड़ी में कहते हैं उनियान्त लगना. इसके बाद तिवारी जी कभी उठ ही नहीं पाए. शब्द और आवाज से सत्ता की चूलें हिला देने वालों की सीरीज में मैं नगार्जुन और गदर की तरह नेगी को भी देखने लगा. नौकरी करने कभी दूसरे राज्यों में गया तो चौड़े होकर लोगों को बताया कि अपने राज्य में गिर्दा के अलावा नेगी जी जैसा लोकगायक रहता है. कहीं भी मौका मिला उनकाे सुना. गीत ही नहीं उनके इंटरव्यू भी खूब देखे. सौ प्रतिशत इंटरव्यू में उन्हें जनमुद्दे उठाते देखा. लेकिन आज उनका एक शॉल ओढ़े फोटो देखा और बयान पढ़ा कि देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री खोलने में परेशानी क्या है? उनका तर्क था कि पहाड़ी नशा कर ही रहे हैं तो फैक्ट्री खुलनी चाहिए, बाहर से लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
नशे की ही बात करें तो स्मैक पहाड़ के हर जिले में पहुंच गई है. नेगी जी के तर्क के अनुसार तो पहाड़ के हर जिले में स्मैक की फैक्ट्री खुलवा देनी चाहिए. तस्करों को बरेली-मुराबाद से सप्लाई करनी पड़ती है. फालतू खर्चा होता है.
पहाड़ों पर जगह-जगह बच्चे नशे के इंजेक्शन ले रहे हैं. इसकी फैक्ट्री न खोलो तो कैंप लगाकर बांटे जाने चाहिए. बच्चों को ब्लैक में इंजेक्शन खरीदने पड़ते हैं. मेहनत-मजदूरी कर पैसे कमाने वाले अभिभावकों के लिए बड़ी राहत होगी.
पहाड़ में बेरोजगारी, डिप्रेशन के कारण आत्महत्या का अनुपात पिछले सालों में तेजी से बढ़ा है. सर्वे कराया जाए तो जहर की खपत भी राज्य बनने से पहले की तुलना में बढ़ी होगी. नेगी जी के तर्क के अनुसार तो जहर की भी फैक्ट्री खोल देनी चाहिए. व्यापारियों को बाहर से मंगाना पड़ता है. मरने से पहले भी लोगों को भटकना पड़ता है.
खैर नेगी जी ने तो चौंकाया ही है लेकिन फेसबुक पर दिन-रात पहाड़ का झंडा लेकर घूमने वाले लोगों की चुप्पी भी उनके दोहरे चरित्र को दिखा गई. दो दिन पहले जब हरक सिंह रावत ने इस फैक्ट्री का समर्थन किया था तो लोगों ने हंगामा काट दिया था. यही दोहरा चरित्र है जिसकी वजह से उत्तराखंड के लोगों ने इन पर कभी भरोसा नहीं किया.
राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक हैं.
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