केनिथ मेसॉन की किताब द अबोड ओफ़ स्नो में कुमायूँ के सबसे बड़े अन्वेषकों में से एक हरी राम के बारे में विस्तार से पढ़कर मेरा मन दशकों पीछे चला गया. बहुत कम लोगों को जानकारी है कि पंडित हरी राम एवेरेस्ट सर्किट की परिक्रमा पूरी करने वाले पहले आदमी थे. और साल था 1871.
(Len-den Story by Yugal Joshi)
पर जो बात हम यहाँ कह रहे हैं वह हरी राम के सौ वर्षों से भी बाद की बात है. जो लोग क्लाईमेट चेंज को अभी भी बकवास कहते हैं, उनके लिए यह अनुभव बाँटने लायक़ है. बस आज से चालीस साल पुरानी बात है. तब सर्दियाँ शुरू होते-होते भेड़ों के रेवड़ के रेवड़ लेकर ऊँचाइयों पर रहने वाले भोट लोग झूलाघाट आया करते थे. एक-एक रेवड़ में कई सौ भेड़ें होती थीं. अपने साथ वह लोग क़ालीन, थुल्मा, कम्बल, पंखी आदि ऊन की बनी हुई चीज़ें भी बेचने लाते थे. तीन महीने के आसपास झूलाघाट में प्रवास के बाद वह होली आने से पहले वापस ऊँचाइयों पर चले जाते थे. पिछले तीस बरस से उनका घाटी में आना बंद हो गया है. कहते हैं, अब ऊँचाइयों पर भी वह बात नहीं रही.
दो साल पहले मैं स्वयं मुखवा और गंगोत्री गया था, जनवरी के महीने में. आप यक़ीन करेंगे वहाँ बर्फ़ नहीं थी! केनिथ मेसॉन आज होते तो द अबोड ओफ़ स्नो को शायद वंस अपॉन ए टाइम देयर वास एन अबोड ओफ़ स्नो जैसा कुछ लिखते.
उस साल भी दीपावली बीतते-बीतते भेड़ों के रेवड़ झूलाघाट में आने लगे. पेशाब की बासी गंध के लिए हमारे यहाँ एक शब्द है, चुरर्रैन. तो भेड़ों के जूलूस निकल जाने के बाद सड़कें और गलियों से चुरर्रैन आती थी और यह चुरर्रैन जब भेड़ों की अपनी गंध और उनके चलने से उड़ने वाली धूल से मिलती थी, तो तब उतनी भी बुरी मालूम नहीं होती थी.
(Len-den Story by Yugal Joshi)
सर्दियों में काली नदी का पाट ख़ूब चौड़ा हो जाता था. गोल-गोल पत्थरों और रेत से भरा पाट बहुत सुंदर लगता था. बीच-बीच में जहाँ कहीं पानी बच जाता था तो उस पानी में छोटे-छोटे कित्ते पकड़ने का अलग ही आनंद था. भेड़ों का यह रेवड़ उसी पाट पर ठहरता था. रात को नदी के पार मेरे घर से पाट के टेंट में जलती लालटेन बहुत जादुई लगती थी. मेरा बाल मन भोट लोगों की उस अपरिचित दुनिया की कितनी ही कल्पनाएँ करने लगता. पर उन लोगों से बात करने का कोई ज़रिया भी तो नहीं था.
फिर एक दिन जादू हुआ. मैं जब दुकान पर पहुँचा तो मैंने एक सफ़ेद बालों वाले बूढ़े भोटिया और एक हमउम्र बच्चे को बेंच पर बैठे देखा. सफ़ेद मोटे ऊन की फुनगी वाली टोपी और बहुत ही मोटे कपड़े का नाड़े वाला कोट पहने था वह. अपनी छोटी छोटी आँखों से वह मुझे भी ग़ौर से देख रहा था. उसके नाक के दोनों तरफ़ गालों पर सिगान सूखने के कारण सूखे फ़ेविकोल जैसी लाइन बन गयीं थीं.
पिताजी दुकान में नहीं थे सो मैं गद्दी पर बैठ गया. तब मेरी नज़र उस बड़े से भूरे कुत्ते पर पड़ी जो लड़के के पैरों के पास लेटा था. उसका बेपरवाह ढंग से देखना और इतने अधिकार से मेरी दुकान पर लेटे रहना मुझे मोह गया. मैं अपलक उसे देखता रहा.
“पंडितजी कहाँ है?” बुज़ुर्ग के सवाल से मैं जागा.
“खाना खा रहे हैं. बस आते ही होंगे.” मैंने जवाब दिया.
उसने अपनी ज़ुबान में बच्चे से कुछ कहा और दुकान से बाहर चला गया.
लड़का दोनों पैर जोड़कर बैठा था, अब उसने अपने हाथ भी सीने में बाँध लिए.
“तुम्हारा है?”
उसने हाँ में सिर हिलाया.
“क्या नाम है?”
लड़के ने बड़े गर्व से कुत्ते को देखा और तब उत्तर दिया, “ब्रूस ली.”
“काटेगा तो नहीं?” मैं खड़ा हो गया.
उसने ना में सिर हिलाया.
“छू लूँ?”
पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान आई. जब वो हँसा तो उसकी आँखें भी हँसी और उसके गाल गुलाबी होकर हिलते हुए हँसने लगे.
(Len-den Story by Yugal Joshi)
मैं कुत्ते के पास धीमे से जाकर बैठ गया. बहुत धीरे से, अपना काँपता हाथ मैंने आगे बढ़ाया. एकदम चौकन्ना होकर कुत्ते ने लड़के को देखा तो लड़के ने मुस्कराते हुए उसे आश्वस्त सा किया. कुत्ते ने मुझसे बिना निगाह हटाये अपना बड़ा सा सिर अपने दोनों पैरों के बीच ज़मीन पर लिटा दिया. जैसे ही मैंने उसके मोटे-मोटे बालों भरे सिर पर हाथ फेरा उसने अपनी आँखें बंद कर लीं. दुनिया से अनजान बड़ी देर तक मैं ब्रूस ली का माथा सहलाता रहा.
जब पिताजी आए तो अचानक ही वह बुड्ढा भी प्रकट हो गया. बुड्डे के आने की आहट पर ही ब्रूस ली एक अंगड़ाई लेकर खड़ा हो गया.
“जमन सिंह.”
“नमस्कार, पंडित जी. नाती के लिए क़मीज़ पैंट बनानी है.”
कपड़ा लेकर वह दोनों चले गए. पीछे-पीछे ब्रूस ली भी चला गया. मैं बड़ी देर तक ब्रूस ली को जाते हुए देखता रहा.
“हम लोग ऐसा कुत्ता क्यों नहीं पाल सकते?” मैंने पिताजी को उलाहना सा देते हुए कहा.
“अरे, वह भोटिया कुत्ता है. यहाँ की गरमी बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.” पिताजी हँसते हुए बोले. “मैं तुम्हारे लिए एक अलशेसीयन कुत्ता ले आऊँगा.”
(Len-den Story by Yugal Joshi)
अगले दिन स्कूल की छुट्टी होते ही मैं पुल पार करके जमन सिंह के टेंट के पास जा पहुँचा. दोपहर का समय था. टेंट एकदम खाली पड़ा था. थोड़ी दूर पर भेड़ें पहाड़ की तलहटी में घास चर रही थीं. मैं थोड़ा पास गया तो देखा, वह लड़का एक चट्टान पर बैठा है और ब्रूस ली उसके पैरों के पास.
मुझे देखकर लड़का पूरा मुँह खोलकर मुस्कराया. ब्रूस ली ने मुझे एक नज़र देखा और फिर मुँह फेर लिया, जैसे मेरा वहाँ वजूद ही न हो.
“मेरे पास कोई कुत्ता नहीं है.” मैंने कहा.
लड़का मुस्कराया पर कुछ नहीं बोला.
मैंने शर्ट के अंदर से दो कॉमिक्स निकालीं और लड़के को थमा दीं.
“पढ़ोगे?”
लड़के ने कॉमिक्स की ओर देखा फिर मेरे चेहरे को, और फिर अपने जूते देखने लगा.
“मुझे नहीं आता.” उसने बिना निगाह उठाए कहा.
मैंने जेब से एक रबर की गेंद निकाली और उसे दी.
“यह लो.”
उसने बॉल पकड़ कर मुझे देखा.
“ब्रूस ली बॉल पकड़ सकता है?” मैंने चैलेंज दिया.
लड़के ने ब्रूस ली को दिखाते हुए बॉल को दूर उछाल दिया. ब्रूस ली एकदम चौंक कर खड़ा हो गया और भागा. पर बॉल की तरफ़ नहीं, भेड़ों के झुंड की तरफ़ – जहाँ दो आवारा कुत्ते आ गए थे. गुर्राते हुए उसने हिंस्र आँखों से कुत्तों की तरफ़ देखा. उसके जबड़े खिंचकर कानों तक आ गए थे. किसी कूँगफू मास्टर की तरह सधे हुए बस दो क़दम उसने बढ़ाए थे कि दोनों कुत्ते भाग खड़े हुए.
(Len-den Story by Yugal Joshi)
ब्रूस ली वापस आकर लड़के के पैरों के पास बैठ गया. थोड़ी देर उसका माथा सहलाने के बाद मैं भी वापस घर लौट आया.
कई सप्ताह गुज़र गए. मैं फिर कभी नदी के पाट की तरफ़ नहीं गया.
फ़रवरी के महीने में भेड़ों के रेवड़ वापस लौटने लगे. उस सुबह मैं अपने कमरे में बैठा पढ़ाई कर रहा था कि बरामदे में आहट हुई.
किवाड़ की झिर्री से मैंने बाहर झाँका. बाहर पिताजी के साथ जमन सिंह, ब्रूस ली और वह लड़का खड़े थे. नए कपड़े पहने हुए वह लड़का बहुत जँच रहा था, लाल चैक की शर्ट और ख़ाकी पैंट, जो उस रोज़ हमारी दुकान से ख़रीदे गए थे.
(Len-den Story by Yugal Joshi)
“नाती कहता है उसे स्कूल जाना है. आपका लड़का उसे ये किताब दे गया था.” जमन सिंह ने कॉमिक्स दिखाते हुए पिताजी से कहा.
पिताजी ने प्यार से लड़के के सिर पर हाथ फेरा, “बिलकुल स्कूल तो जाना ही चाहिए. नाती होशियार है आपका.”
“और, यह ब्रूस ली आप रख लीजिए.” जमन सिंह ने कहा. “नाती कहता है आपके लड़के को उसका कुत्ता बहुत पसंद है.”
(Len-den Story by Yugal Joshi)
–युगल जोशी
इसे भी पढ़ें: इंतज़ार : युगल जोशी की कहानी
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
झूलाघाट में पले-बड़े युगल जोशी वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन के निदेशक हैं. योग, इतिहास और मिथकों में विशेष रुचि रखने वाले युगल जोशी ने अब तक पाँच पुस्तकें लिखी हैं. उनकी किताब सिंगापुर वॉटर स्टोरी का अनुवाद चीनी, जापानी, मंगोलियन और हिंदी भाषा में हो चुका है. युगल की अन्य किताबें हैं, क्रियेटिंग शेयर्ड वैल्यूस, राम: द सोल ओफ़ टाइम, विमेन वॉरीअर्ज़ इन इंडीयन हिस्ट्री और बूंस एंड कर्सेस: लेजेंड्स ओफ़ द माईथोलोजिकल मदर हैं.
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…