साल 1948 डॉ ऐलीजाबेथ और लॉरी बेकर का जोड़ा अपना हनीमून मनाने पिथौरागढ़ आता है. कस्बे से चार-पांच किमी की दूरी पर बसा चंडाक इन दोनों को ऐसा भाता है कि अगले कई वर्षों तक दोनों यहीं रहते हैं. ऐलीजाबेथ के साथ मिलकर लॉरी यहाँ के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने में जुट गये. Laurie Baker in Hindi
लॉरी बेकर की गिनती दुनिया के सबसे मशहूर वास्तुकारों में की जाती है. वर्नाक्यूलर आर्किटेक्ट में लॉरी बेकर का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है. गांधीवाद से प्रभावित होकर लॉरी बेकर ने भवन निर्माण में ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जिसमें उसके आस-पास का सामान जुटाकर ही भवन निर्माण किया जा सके.
लॉरी बेकर द्वारा जलवायु और पर्यावरण के अनुरूप भवन निर्माण किया जाता था. पिथौरागढ़ जिले में गौरंगचौड़ का स्कूल, मिशन इंटर कालेज का हॉल, वाचनालय वाला मुख्य भवन, चंडाक में स्थित बेकर का अपना घर और दवाखाना आदि ऐसी इमारतें हैं जिनमें बेकर की कुशलता और अपने काम से लगाव को देखा जा सकता है. Laurie Baker in Hindi
चंडाक में जहां लॉरी बेकर का घर है उसके पश्चिम में ह्यूं पानी और गौरंगचौड़ की आकर्षक घाटी है और उत्तर में नंदादेवी, नंदाकोट, पंचाचूली आदि. घर को ठंड से बचाने के लिये कमरे के एक किनारे बुखारी और धुएं को बाहर ले जाती कमरे के दीवारों में घुमती नाली आग जलाते ही कमरे को गर्म कर देती. ऊर्जा संवहन और संरक्षण का यह नायाब प्रयोग था.
पिथौरागढ़ के टाउन हॉल के उद्घाटन के दिन मंचित नाटक का सैट लॉरी बेकर ने ही तैयार किया था. मिशन इंटर कालेज के अनेक नाटकों में लॉरी ने सैट तैयार किये थे जिनकी भव्यता को आज तक यहां के पुराने लोग याद करते हैं. Laurie Baker in Hindi
वास्तुकार के अलावा लॉरी एक अच्छे कार्टूनिस्ट और पेंटर भी थे. लॉरी के कार्टून और पेंटिंग्स लॉरीबेकर.नेट पर देखे जा सकते हैं. उनके पास बजेटी-घुड़साल, सिलपट्टा-असुरचूला, सिकड़ानी-चंडाक के चित्र भी थे.
2 मार्च 1917 को लॉरी का जन्म बर्मिघम में हुआ था. बर्मिंघम स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर से उन्होंने 1937 में स्नातक पूरा करने से पहले ही वे ‘फ्रेंड्स एमब्यूलेंस यूनिट’ के साथ स्वास्थ्य सहायक की सेवा देने चीन पहुंचे. यहां स्वास्थ्य कारणों से जब उन्हें अपने देश लौटना पड़ा तब वापसी के दौरान उनकी मुलाकात गांधी से हो गयी.
साल 1945 में कुष्ठ रोग पुनर्वास अभियान के तहत भारत आये. यहीं उनकी मुलाक़ात ऐलीजाबेथ से होती है. साल 1963 में लॉरी पिथौरागढ़ से चले जाते हैं. इससे पहले यहाँ परिवार सोर घाटी को अनेक सेवायें देता है.
पिथौरागढ़ के बाद जब बेकर केरल जाते हैं तो वहां की जलवायु और पर्यावरण को ध्यान में रखकर ही भवन निर्माण करते हैं. त्रिवेन्द्रम में लॉरी का घर आज भी मौजूद है, लॉरी के त्रिवेन्द्रम स्थित आवास को ‘हैमलेट’ कहा जाता है. Laurie Baker in Hindi
कम लागत में भवन निर्माण की जिस तकनीक को लॉरी ने इजाद किया आज उसे दुनिया भर में लोग इस्तेमाल करते हैं. उनकी तकनीक के कारण ही आज दुनिया भर में आम इंसान मकान बनाने जैसा सपना पूरा कर सकता है. 1 अप्रैल 2007 को लॉरी नब्बे वर्ष की उम्र में चल बसे. लॉरी बेकर से जुड़ी कुछ तस्वीरें देखिये :
संदर्भ : पहाड़ पत्रिका के 2016-17 अंक में ललित पन्त के लेख के आधार पर.
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