इतिहास

लालमणि-खीमदेव की फर्म तम्बाकू के लिए प्रसिद्ध थी

पहाड़ की प्रमुख मंडी हल्द्वानी के आबाद होने की कहानी बहुत रोचक है. इसका वर्तमान चाहे कितना ही स्वार्थी हो गया हो इसका भूतकाल बहुत ईमानदार और विश्वास पर आधारित था. मूल रूप से रानीखेत के रहने वाले लालमणि ने यहाँ चलता-फिरता कारोबार शुरू किया बाद में इनके पिता खीमदेव यहाँ स्थायी रूप से बस गए और लालमणि-खीमदेव नाम से फार्म स्थापित की. उस समय बरेली, काशीपुर आदि स्थानों से हल्द्वानी का संपर्क था और ऊंट, हाथी से सामान का ढुलान हुआ करता था. तब वे बैलगाड़ी से गुड़, तेल व अन्य सामान रानीखेत में बिक्री के लिए ले जाया करते थे. (Lalmani-Khimdev Firm was Famous for Tobacco)

1931-32 में लालमणि के पुत्र खीमदेव ने लोहारा लाइन में दुकान शुरू की. अब लीलैंड नाम की गाड़ी पहाड़ के लिए चलना शुरू हो गयी. लीलैंड गाड़ी बहुत धीमी गति से चलती थी. प्रातः हल्द्वानी से चलकर यह शाम तक गरमपानी स्टेशन पहुँचती थी फिर अगले दिन रानीखेत के लिए निकलती थी. तब यात्रियों के साथ सामान का ढुलान भी बस से होने लगा. हल्द्वानी से बरेली का किराया 1 रुपया 2 आना हुआ करता था. 1 रुपया गैलन पेट्रोल मिल जाया करता था. 2800 रुपये में पूरी गाड़ी आ जाया करती थी. 400 रुपये में पूरी गाड़ी की फिटनेस हो जाया करती थी. हल्द्वानी से रानीखेत का किराया 4 आना हुआ करता था. 1939 में केएमओयू का गठन हुआ तब प्रति सवारी किराया आठ आना हो गया. गाड़ी में 14 सवारियां या फिर 42 टन माल लाने-लेजाने की स्वीकृति मिला करती थी.

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

उस समय हल्द्वानी मंडी की मुख्य व्यापारी फर्में गंगाराम-मंगतराम, सागरमल-दौलतराम, रामस्वरूप-भीखामल, मंगतराम-रामसहाय हुआ करती थी. उस दौर में सदर बाजार, लोहारा लाइन में टिन की छत वाली दुकानें थीं, जिनके किवाड़ बांस के होते थे. भोलानाथ बगीचा, कालाढूंगी चौराहे पर खाम का बगीचा बहुत चर्चित था. यहाँ कटहल, लुकाट, आम के पेड़ खूब हुआ करते थे. वर्तमान में खानचंद मार्किट को उस समय भानदेव का बगीचा कहा जाता था. कालाढूंगी चौराहे पर दुर्गादत्त की पान की दूकान हुआ करती थी.

काशीपुर के व्यापारी लाला बिंद्रावन का तम्बाकू का कारोबार काफी फैला हुआ था. उन्होंने हल्द्वानी में कुछ पिंडी तम्बाकू रखकर इस कारोबार को शुरू करवाया. बाद में लाला ने यह कारोबार बंद कर दिया लेकिन तब तक लालमणि-खीमदेव की फर्म तम्बाकू के लिए प्रसिद्ध हो गयी.

व्यापार के अलावा लालमणि-खीमदेव व्यापारियों का अड्डा थी. यह तराई-भाबर और सीमांत के व्यापारियों का मिलन केंद्र भी हुआ करती थी. इस फर्म में तम्बाकू पीने वालों का भी जमघट लगा करता था.

सीमान्त के शौका व्यापारी आलू के अलावा सूखे मेवे, खुमानी, अखरोट, तिब्बत का सुहागा और गरम कपड़े लाया करते थे. सैंकड़ों भेड़-बकरियों के साथ हल्द्वानी पहुँचने वाले इन व्यापारियों को लोग न्यौता देकर अपने खेतों में रहने का निवेदन किया करते थे ताकि उनकी बकरियां खेतों में चुगान की एवज में कीमती खाद दे सकें. तब व्यापार बहुत ईमानदारी से किया जाने वाला काम था. नकद-उधार का व्यापार भी खूब हुआ करता था. व्यापारी आते-जाते समय परिचितों के पास पैसा तक जमा कर जाया करते थे. तब लम्बे सफ़र के दौरान चांदी के भारी रुपयों के होने से उन्हें ढोने में दिक्कत हुआ करती थी. बाद में कागज के नोटों के चलन से सुविधा हो गयी. पहाड़ के शौक व्यापारी उस समय 100 के नोट के दो टुकड़े करके डाक द्वारा दोनों भागों को अलग-अलग भेजा करते थे. एक टुकड़ा खो जाने की स्थिति में दूसरा टुकड़ा रुपया मान लिया जाता था.

पहाड़ को लौटते समय व्यापारी नमक ले जाया करते थे. तब नमक की गाड़ी उतारते ही सड़क पर नमक का ढेर लग जाता था, गायें नमक चाटने के लिए सड़क पर इकठ्ठा हो जाया करती थीं. श्रमिक-पल्लेदार तो वैसे ही आवश्यकतानुसार नमक उठा लिया करते थे, कोई कुछ कहने वाला नहीं था. (Lalmani-Khimdev Firm was Famous for Tobacco)

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर

पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 28

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago