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कुमाऊनी लोक गीतों में कत्यूरी राज वंशावली

कुमाऊनी लोक गीतों में वह कत्यूरी राज वंशावली जो कार्तिकेय वर्तमान बैजनाथ के निकट रणचूला दुर्ग, लखनपुर (द्वारहाट) तथा छिपला (भोट प्रांत) में शासन करती थी इस प्रकार दी गई है:
(Katyuri Kings in Folk Song Kumaon)

पछम खली में को को राजा बसनीं?
बूढ़ा राजा सासन्दी को पाट.
गौरा को पाट, सांवला को पाट.
नीली चौंरी उझाान को पाट.
मानचवाणी को घट लगायो.
दौराहाट में दौरमंडल चिणो.
खिमसारी हाट में खेल लगायो.
रणचुलीहाट में राज रमायो आसन्दी.
आसन्दी को बासन्ती.
अजोपीथा गजोपीथा, नरपीथा, पृथीरंजन, पृथिवीपाल .

पश्चिम की खली में कौन-कौन राजा रहते थे? वहाँ बूढ़े राजा आसन्दी की राजगद्दी थी. वहाँ गौरा की गद्दी थी, साँवला की गद्दी थी. नीली चौकोर समतल भूमि में उद्यान की गद्दी थी. इन्होंने भात के मांड और चावलों की धोवन की ऐसी नदी बहाई कि उससे पनचक्की चलती थी. द्वारहाट में द्वारिका मंडल का निर्माण किया, खिमसारी हाट में प्रेक्षागार बनाया, रणचूली हाट में अपना राज सिंहासन निर्मित किया, आसन्दी के पुत्र वासन्ती हुए उनके उपरांत अजोपीथ, गजोपीथ, नरपीथ, पृथ्वीरंजन और पृथ्वीपाल हुए.

दुसरी आल पाली पछाऊं.
पाली पछाऊं में राजा बसें?
इलणदेव, इलणदेव का तिलण देव,
अमरदेव, गमरदेव, नारगदेव, सुजानदेव.
सुजानदेव की रानी सुजानमती का सारंगदेव.
सारंगदेव का द्वी च्यला
राजा उत्तम देव. राजा विरम देव

दूसरी शाखा थी पाली पछाऊं की. पाली पछाऊ में कौन-कौन राजा राज करते थे? इलणदेव, इलणदेव का पुत्र तिलणदेव, अमरदेव, गमरदेव, नारंगदेव और सुजानदेव. सुजानदेव की रानी सुजानमती का पुत्र सारंगदेव. सारंगदेव के दो पुत्र राजा उत्तमदेव, राजा बिरमदेव.
(Katyuri Kings in Folk Song Kumaon)

बैराट शाखा के कत्यूरियों की राजवंशावली के विषय में यह लोकगीत प्रचलित है-

धरमयो का रौताण बसें-
राजा ऐतीमल, राजा जैतीमल, सैत चौरिया, बामुगसाई.
लुला लाड़मसाही, रंगीला मालूसाही.
बेराट का सेरा माजी राजधानी बणाई.
सौ मन को नगारो अस्सी मन को बैठ.
बाइस हाथ को लम्बो बडैनी .
सौ मण रीठो बिगर राजी धुसमुस बणौनी.
तब राजधानी राज रमूंनी रंगीली बैराट में.

धरमदेवी नामक राव पत्नी रहती है. उसके पुत्र पौत्र राजा ऐतीमल, राजा जैतीमल, सैत चौरिया, बाम गुसाईं अपंगु लाड़मसाही तथा रूमानी मालूसाही थे. इन्होंने विराट की समतल भूमि में राजधानी बनाई. वहाँ सौ मन भार का नगाड़ा स्थापित किया. अस्सी मन का मूंठ था. बाईस हाथ ऊंचा खंभा बनाया. सौ मन का रीठा बिना पानी मिलाए ही चूरा-चूरा कर दिया. इस प्रकार उस राजधानी में राज्य किया.
(Katyuri Kings in Folk Song Kumaon)

यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’

यह लेख यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’ की 1977 में प्रकाशित पुस्तक से साभार लिया गया है

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