क्रिकेट देखना मुझे तभी तक अच्छा लगता रहा जब उसे सफ़ेद पोशाक पहन कर खेले जाने का रिवाज था. फुटबाल खिलाड़ियों की तरह पीठ पर नंबर लिखे रंग-बिरंगे कपड़ों में खेली जाने वाली पाजामा क्रिकेट ने खेल का असली मज़ा तबाह कर दिया.
फेंकने से पहले तेज़ गेंदबाज़ बॉल को अपनी पतलून पर घिसता था. गेंद की पॉलिश उसकी जेब वाली जगह के आसपास लाल निशान छोड़ देती थी. दिन भर में बीस-बाईस ओवर डाल चुके बाज़ गेंदबाज अगले दिन भी उसी पतलून को पहन कर उतरा करते. तेज़ गेंदबाजों की यह एक इमेज मेरे मन में बचपन से जुड़ी हुई है.
जिमी एंडरसन न होते तो ऐसी कितनी ही छवियाँ कब की विस्मृत हो गई होतीं. विकेट लेने से ज्यादा उनके रन-अप को देखने में अधिक आनंद आता था. ऑफ़-स्टम्प के बाहर निकलती उनकी आउटस्विंग पर लगातार चकमा खा रहे बैट्समैन की बेबसी देखने की चीज़ होती थी. जिमी साल-दर-साल ऐसा करते रहे – इक्कीस साल के असंभव करियर में उन्होंने टेस्ट मैचों में ही चालीस हज़ार गेंदे फेंकीं.
क्रिकेट में लगने वाली मेहनत के शारीरिक पहलू पर विस्तृत रिसर्च कर चुके ऑकलैंड के एंगस मैकमोरलैंड का कहना है कि औसतन 128 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से एक ओवर करने पर मनुष्य की देह पर पड़ने वाला स्ट्रेस छोटे-मोटे कार एक्सीडेंट से लगने वाले झटके के समतुल्य होता है. जब आप सामान्य तौर पर खड़े होते हैं, आपके पैरों पर आपके शरीर के पूरे भार जितना दबाव होता है. रन-अप के लिए दौड़ना शुरू करते ही यह दबाव दो गुना हो जाता है. बोलिंग क्रीज़ तक पहुँचते-पहुँचते रफ़्तार बढ़ती जाती है, फिर आप एक निर्णायक जम्प के साथ अपनी बांह को घुमा कर गेंद फेंकते हैं. गेंद फेंके जाते समय यह दबाव सामान्य से सात से आठ गुना तक पहुँच जाता है. आप 128 से जितनी ज्यादा रफ़्तार निकालेंगे देह पर उतना ज्यादा स्ट्रेस पड़ेगा. यही वजह है कि बहुत सारे तेज़ गेंदबाजों का करियर, जो वैसे ही अपेक्षाकृत छोटा होता है, चोटों की वजह से बहुत जल्दी समाप्त हो जाता है.
जिमी एंडरसन ने बयालीस साल की आयु तक तेज़ गेंदबाजी की. उनके नाम बहुत सारी असंभव उपलब्धियां हैं – एक तेज़ गेंदबाज़ के तौर पर वे लगातार इक्कीस साल तक खेलते रहे, क्रिकेट इतिहास के किसी भी तेज़ गेंदबाज़ ने न उनके बराबर टेस्ट खेले न विकेट लिए. उनसे ज़्यादा टेस्ट सिर्फ सचिन तेंदुलकर के नाम हैं.
एक से एक धुरंधर तेज़ गेंदबाज़ देखे – लिली,टॉमसन, मार्शल, गार्नर, इमरान,सरफ़राज़, एलन डोनाल्ड, बॉब विलिस, वसीम, वकार, हैडली, शॉन टेट, डेल स्टेन, मैक्ग्राथ. कैसे-कैसे नाम! एक से एक उनके कारनामे! लेकिन जिमी एंडरसन जैसा कोई न हुआ.
जिमी ने अपना आख़िरी वन डे नौ साल पहले खेला था और आख़िरी टी-ट्वेंटी पंद्रह साल पहले. हैरत होती है कि सिर्फ टेस्ट क्रिकेट खेलने के बावजूद वे लगातार दुनिया भर की क्रिकेट-सुर्ख़ियों में बने रहे. कल जब लॉर्ड्स के मैदान पर उन्होंने आख़िरी बार गेंदबाजी की वे टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के सफलतम तेज़ गेंदबाज के तौर पर रिटायर हुए. उनके आंकड़े देखिये आपको पता चल जाएगा वे किस मिट्टी के बने हैं.
बीते बीसेक साल क्रिकेट के मूलभूत स्वभाव के बदल जाने के साल रहे. यही साल एंडरसन के करियर के भी साल थे. टेस्ट क्रिकेट को लोगों ने उबाऊ और बोझिल बताना शुरू किया और टी-ट्वेंटी जैसा फूहड़ शो क्रिकेट का पर्यायवाची बन गया.
जिमी ने अपनी फेयरवेल स्पीच में कहा – “ज़िन्दगी मैं जैसा भी इंसान बन सका, वह सिर्फ टेस्ट क्रिकेट की वजह से संभव हुआ. टेस्ट क्रिकेट में आपका पलड़ा ऊपर नीचे होता रहता है. जब आप नीचे होते हैं आपको ऊपर उठने का जतन करना होता है और जब ऊपर होते हैं, तब वहीं बने रहने की मशक्कत करनी होती है. दिन भर के खेल के बाद शाम के छः बजे जब आपका शरीर पूरी तरह टूटा हुआ होता है और कप्तान आपकी तरफ गेंद उछालता है तो भी आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होता है. आप एक दिन में बीस से पच्चीस ओवर फेंकते हैं. तब कहीं जाकर तीन, चार या पांच दिनों के बाद मैच का परिणाम आता है. अपने देश के लिए टेस्ट क्रिकेट जीत सकने से बड़ा संतोष दुनिया में कोई नहीं. टी-ट्वेंटी या वन डे मैचों में आप किस्मत से जीत सकते हैं लेकिन आप कितने भी किस्मत वाले हों टेस्ट क्रिकेट में नहीं जीत सकते. टेस्ट क्रिकेट में आपको हमेशा एक टीम की तरह खेलना होता है.”
मुझे जब भी जिमी एंडरसन की स्मृति आती है, वे अपने रन-अप पर होते हैं. सफ़ेद ड्रेस पहने हुए. सधे कदमों के साथ बैट्समैन की तरफ़ दौड़ते हुए. उसी शानदार सफ़ेद ड्रेस में वे रिटायर हुए.
आप एक सुनहरे युग के आख़िरी बाशिंदे थे, जिमी! टेस्ट क्रिकेट को ही असल क्रिकेट मानने वाले मुझ जैसे अपने तमाम चाहने वालों को इतने सारे यादगार मौके देने का शुक्रिया!
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