उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल में एक खुबसूरत पहाड़ी क्षेत्र है जौनपुर. यमुना के बांयी तरफ स्थित जौनपुर का यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परम्पराओं, रीति-रिवाज, खान-पान के लिये जाना जाता है.
जौनपुर क्षेत्र कई मायनों में शेष गढ़वाल क्षेत्र से बिलकुल भिन्न है. इसके समाज में महिलाओं को विशिष्ट स्थान है. यहां महिला अधिकार को मजबूत करने वाली एक प्रथा है जिसे ‘छूट प्रथा’ के नाम से जाना जाता है.
‘छूट’ का अर्थ है पति को तलाक देना. अगर किसी महिला कू पति की वजह से किसी भी प्रकार की परेशानी होती है तो वह अपने पति को छोड़ सकती है.
इस प्रथा के अनुसार जब किसी लड़की की शादी हो जाती है और वह लड़के की वजह से किसी प्रकार की परेशानी है और लड़की को कह पसंद नहीं है, उम्र में बड़ा है, पागल है या यूं कहें उसके लिए वह सही नहीं है तो लड़की उसे छोड़ देने और अन्य किसी के साथ अपना वैवाहिक संबंध बनाने में स्वतंत्र होती है.
दूल्हे की नापसंदगी को लेकर जौनपुर में कई सारे गीत रचे गए हैं. इन गीतों में दूल्हे की चरित्रहीनता, बदसलूकी, योग्यवर का अभाव का जिक्र होता है.
उस स्थिति में जब महिला अपने पति को छोड़ना चाहती है तो वह अपने मायके आ जाती है. कई बार बुलावा देने पर भी वह नहीं जाती तो उसके मां-बाप उसकी शादी करने की सलाह देते हैं.
इच्छित व्यक्ति की तलाश करने के बाद लड़की के ससुराल वालों को बताया जाता है और पंचायत निर्धारित होती है. जहां दोनों पक्ष अपने-अपने पक्ष रखने को स्वतंत्र होते हैं.
अगर कोई मशविरा, निर्णय हुआ तो लड़की को पंचायत छूट देती है, जिसके अंतर्गत छूट के समय जिस लड़के से उसकी दूसरी शादी होती है वह लड़का पहले पति को पंचायत द्वारा निर्धारित रकम देता है.
तय की गई रकम पांच हज़ार से लाखों तक होती है. यह रकम मुआवजा या हरजाने के तौर पर पहले पति को दी जाती है.
इस क्षेत्र में महिलाओं को सात घर तक जाने की स्वीकृति है. इसी प्रथा के चलते जौनसार क्षेत्र में विवाहों में फेरे की प्रथा नहीं थी. यहां पर विधवाओं को भी विवाह करने का अधिकार पहले से ही सुरक्षित था.
सुरेन्द्र पुण्डीर की किताब जौनपुर के तीज त्यौहार के आधार पर.
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छूट प्रथा जौनपुर-जौनसार ही नहीं, और भी कई जगह हैं।
मैंने अपने गाँव में अनुसूचित जाति के परिवारों में इसे होते देखा है।
मेरे ख्याल से यह पूरे पहाड़ की प्रथा रही होगी।