1962 में एशियन गेम्स जकार्ता में आयोजित किये गये थे. कोच सैयद अब्दुल रहमान के नेतृत्व वाली भारतीय फुटबाल टीम का यह स्वर्णिम दौर था. एशियन गेम्स के अपने पहले ग्रुप मैच में भारत को दक्षिण कोरिया ने 2 – 0 से हराया था. लेकिन इसके बाद भारतीय खिलाडियों ने तभी पीछे मुड़कर नहीं देखा जब फ़ाइनल में दक्षिण कोरिया को 2 – 1 से हराया. इस टीम में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का भी एक खिलाड़ी था. त्रिलोक सिंह बसेड़ा.
1962 की भारतीय फुटबाल टीम विश्व की अब तक की सबसे फुर्तीली फुटबाल टीमों में गिनी जाती है. इस फुटबाल टीम में भी सबसे फुर्तीले खिलाड़ी हुआ करते थे त्रिलोक सिंह बसेड़ा. इस पूरी फ़ुटबाल टीम में न केवल सबसे फुर्तीले बल्कि सबसे हैंडसम खिलाड़ी के रूप में भी त्रिलोक सिंह बसेड़ा का नाम शामिल था.
पिथौरागढ़ में देवलथल के पास भंडारी गाँव है. पहाड़ भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद यहाँ के लोग बड़े परिश्रमी होते होते हैं. यहीं 18 अक्टूबर 1934 को त्रिलोक सिंह बसेड़ा का जन्म हुआ. उन्होंने 1947 – 48 में देवलथल पिथौरागढ़ से ही जूनियर हाईस्कूल की परीक्षा पास की. सभी सामान्य पहाड़ी लड़कों की तरह त्रिलोक सिंह बसेड़ा को भी बचपन से ही फौज में जाने का शौक था और 16 साल की उम्र में वह ई. एम. ई. सेंटर, सिकंदराबाद में सेना में भर्ती हो गये.
सेना में पहाड़ के इस युवा को जब अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला तो सेना की बटालियन एथलेटिक्स टीम में 100 मीटर, 200 मीटर और 800 मीटर दौड़ में वह प्रथम स्थान पर रहे. कुछ ही समय बाद ई. एम. ई. सेंटर की सर्विसेज फुटबाल टीम में शामिल हो गये और उसके बाद हमेशा फुटबाल के होकर रह गये.
1961 में चौथे मार्डेको शताब्दी फुटबाल प्रतियोगिता मलाया में त्रिलोक सिंह बसेड़ा ने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. एशियन गेम्स 1962 में त्रिलोक सिंह बसेड़ा ने बैक पोजीशन पर खेला. त्रिलोक सिंह बसेड़ा के फुर्तीले खेल के कारण उन्हें एशियन गेम्स 1962 के बाद से आयरन वॉल ऑफ़ इंडिया कहा जाने लगा. उनके प्रदर्शन के लिये प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार दिया.
त्रिलोक सिंह बसेड़ा के प्रदर्शन के दम पर ही भारतीय सेना एकादश और रूस सेना एकादश फुटबाल प्रतियोगिता भारतीय सेना एकादश जीती. राष्ट्रीय खेलों में अच्छे प्रदर्शन के कारण सेना में त्रिलोक सिंह बसेड़ा को पहले हवलदार पद और फिर 1966 में जे.सी.ओ. का पद मिला.
खेल के आलावा त्रिलोक सिंह बसेड़ा ने 1962, 1965, 1971 के युद्धों में भाग लिया. त्रिलोक सिंह बसेड़ा का निशाना भी अचूक था. खेल के मैदान में लगी एक सामान्य चोट ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया की फुटबाल का यह महान खिलाड़ी 45 वर्ष की उम्र में ही सेना में रहते हुये देश को अलविदा कह गया.
त्रिलोक सिंह बसेड़ा की स्मृति में देवलथल जीआईसी का नाम त्रिलोक सिंह बसेड़ा जीआईसी किया गया. 2014 में उत्तराखंड सरकार ने त्रिलोक सिंह बसेड़ा को मरणोपरांत देवभूमि उत्तराखंड रत्न पुरूस्कार दिया गया.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…