व्यक्तित्व

जीवन और जीविका की सुनहरी राह बनाते विनीता-अरविंद

कोरोना महामारी ने समाज के बहुसंख्यक लोगों की जीवन-दिशा को बदला है. जीवन में अचानक आये इस संकट ने लोगों को हताश-निराश तो किया परन्तु उनके मन-मस्तिष्क में अन्तर्निहित शक्तियों और हुनर को उभारा भी है. आज वे कोरोना से पहले के रोजगार से भिन्न और अधिक अच्छे जीवन स्तर पर जीवकोपार्जन कर रहे हैं.
(Inspiring Story Arvind Vineeta Uttarakhand)

इस समय मैं बात कर रहा हूं चैलूसैण के विनीता और अरविंद दम्पत्ति की. जिन्होंने इस आपदा में जीने के लिए नये अवसरों को तलाशा और अब एक बेहतर और कामयाबी की ओर बढ़ती जिन्दगी का आनंद ले रहे हैं.

गुमखाल से 12 किमी. पर है द्वारीखाल और द्वारीखाल से 8 किमी पर है चैलूसैण. पहाड़ की धार पर श्वेत हिमालय के ठीक सामने समुद्रतल से 1600 मीटर की ऊंचाई को लिए हुए. खेती और बागवानी की महक लिए एक खुशनुमा और खूबसूरत पहाड़ी गांव जो अब कस्बाई रंग-ढंग में ढ़ल रहा है. नौकरीपेशा लोगों और पर्यटकों की आवाज़ाही चैलूसैण बाजार की चहल-पहल में रौनक लाती है.

सुराड़ी ग्राम सभा के तोक गांव चैलूसैण के अरविन्द भण्डारी (42 साल) कोरोना बीमारी आने से पहले 25 साल से होटल लाइन में काम करते थे. पहले दिल्ली और फिर हरिद्वार उनका कार्य-क्षेत्र रहा. अनुभवी और हुनरमंद अरविंद 25 हजार रुपये प्रतिमाह तक कमा लेते थे.

परन्तु कोरोना लॉकडाउन के कारण उन्हें 22 मार्च, 2020 को वापस अपने गांव सुराडी आना पड़ा. पहले तो यह लगा कि कुछ दिनों में स्थितियां सामान्य हो जायेंगी. पर, जब वापस काम पर जाने की सभी संभावनायें क्षीण हुई तो अपने ही घर-गांव में रहकर काम करने का विचार आया. अरविंद उचित मार्गदर्शन के लिए कई बार खंड विकास आफिस, द्वारीखाल गए. वहां रोजगार से संबधित योजनाओं की जानकारियां प्राप्त की और उन्हें समझा.
(Inspiring Story Arvind Vineeta Uttarakhand)

होटल का अनुभव, हुनर, सरकारी सहायता और कुछ जमा पूंजी ने अरविंद को हौसला दिया. चैलूसैण में सड़क से लगी अपनी पैतृक जमीन पर उन्होने होटल चलाने ठानी. उसके निर्माण और आवश्यक सामान के लिए 2 लाख रुपए तक का खर्च आया. और फिर, ‘दाना पानी रेस्टोरेन्ट एण्ड फास्ट फूड सेन्टर, चैलूसैण’ की शुरुआत सितम्बर, 2020 से हो गई.

अरविंद ने इसके साथ ही ब्लाक से मनरेगा के तहत मुर्गीबाड़ा के लिए 35 हजार की आर्थिक साहयता प्राप्त की. आज वे इसका व्यावसायिक स्तर पर उपयोग कर रहे हैं.

अरविंद भंडारी के जीवकोपार्जन के इस नई मुहिम में उनका साथ दिया धर्मपत्नी विनीता भंडारी ने. विनीता ने कोटद्वार महाविद्यालय से वर्ष-2006 में इतिहास विषय में एमए किया है. शादी के बाद वे प्रारम्भ से ही घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ आर्थिक स्वावलम्बन में सक्रिय रही हैं. इसके लिए ब्यूटीपार्लर और सिलाई-कढ़ाई का कोर्स उनके काम आया. और, इस व्यवसाय में उन्होंने अपनी लोकप्रियता हासिल कर ली.

द्वारीखाल ब्लाक स्तर पर मनरेगा के तहत बनाये गए स्वयं सहायता समूह से विनीता जुड़ी. वर्तमान में चार अन्य सदस्यों के साथ वे ‘एकता स्वयं साहयता समूह’ की सक्रिय सदस्य हैं. इस समूह की महिलाओं ने ब्लाक स्तर से मशरूम प्रशिक्षण लेकर तकनीकी ज्ञान प्राप्त किया. एकता समूह को जनवरी, 2021 से मशरूम गृह और कच्चा माल के लिए डेढ़ लाख रुपये की मदद ब्लाक कार्यालय द्वारा की गई है. वर्तमान में मशरूम की पहली खेप उत्पादित करके इस समूह ने 17 हजार रुपये अर्जित किये हैं. आज इस समूह के पास इसके अलावा अन्य आर्थिक गतिविधियों के संचालन के उपरान्त 1 लाख रुपए की जमा पूंजी है.
(Inspiring Story Arvind Vineeta Uttarakhand)

जीवन की नवीन परिस्थितियों में विनीता और अरविंद एक दूसरे के और करीबी सहयोगी बने हैं. परिणामस्वरूप विनीता भंडारी और अरविंद भंडारी दम्पत्ति आज आपसी तालमेल से अपने पैतृक गांव में रहकर प्रतिमाह 60 हजार रुपये तक की शुद्ध आय अर्जित कर रहे हैं. साथ ही उनके कारोबार में 4 स्थानीय व्यक्तियों (2 महिलायें और 2 पुरुष) को रोजगार भी मिला है. अपने दो बच्चों और माता-पिता की देखभाल करते हुए वे अपने पैतृक खेती-बागवानी काम में भी सुलभता से योगदान दे रहें हैं.

विनीता भंडारी और अरविंद भंडारी दम्पत्ति पहाड़ी जनजीवन की उद्यमिता में सक्रियता लाने वाले मार्गदर्शी की भूमिका में हैं. ऐसे ही और भी कई युवाओं ने कोरोना काल में जीवकोपार्जन में आये इस असंभावित संकट पर विजय हासिल करके जीवन की नयी सुनहरी राह बनायी होगी.

जरूरत, उन जोशीले और काबिल युवाओं तक हमें पहुंचना होगा ताकि, वर्तमान के शिथिल सामाजिक वातावरण के कुप्रभावों के बीच ऐसे प्रेरक प्रयासों को सराहा और उद्घाटित किया जा सके. जो कि, रोजगारविहीन युवाओं को सफल व्यावसायिक जीवन जीने की राह से भी परिचित करा सके.
(Inspiring Story Arvind Vineeta Uttarakhand)

– डॉ. अरुण कुकसाल

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल का यह लेख उनकी अनुमति से उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है.

लेखक के कुछ अन्य लेख भी पढ़ें : वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल के अन्य लेख

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago