जंगल में भटकते हुए धोखे से लगे शिकारी के तीर से सिपहसालार की पत्नी की मौत हो जाती है. उसकी बेटी आलम आरा का पालन-पोषण वही शिकारी करता है. मरते समय सिपहसालार की पत्नी शिकारी को सारी कथा बतला देती है और उससे यह वचन लेती है कि यह बातें उसकी बेटी आलम आरा के बालिग होने पर ही बतलाना. शहजादा और आलम आरा अलग-अलग बड़े होते हैं और अंत में उनका मिलन होता है.
शहजादा कमर की भूमिका मास्टर विट्ठल और आलम आरा की भूमिका जुबैदा ने अदा की थी. सिपहसालार आदिल का किरदार पृथ्वीराज कपूर ने निभाया था बादशाह एलिजर और उनकी दोनों बेगमें नौबहार और दिलबहार बनी थी जिल्लो बाई और सुशीला. आलम आरा पारसी थियेटर के लोकप्रिय लेखक जोसेफ डेविड के सफल नाटक पर आधारित थी. फिल्म की पटकथा खुद डेविड ने लिखी थी.
‘बदला दिलवाएगा या रब तू सितमगारों से’, ‘रूठा है आसमां गुम हो गया महताब’, ‘तेरी कटीली निगाहों ने मारा’, ‘दे दिल को आराम अय साकी-ए-गुलफाम’, ‘भर भर के जाम पिलाए जा; और ‘दरस बिना मोरे हैं तरसे नैना प्यारे’ इसके अन्य गीत हैं.
बोलती फिल्म बनाने के लिए एक विशेष उपकरण की आवश्यकता होती थी जिससे ताना सिस्टम कहते थे. इस मशीन की जानकारी और प्रशिक्षण के लिए आर्देशिर ईरानी स्वयं इंग्लैंड गए और बाकायदा प्रशिक्षण लेकर लौटे. ताना सिस्टम के द्वारा तस्वीर के साथ ध्वनि आलेखन भी होता था. इस कैमरे को चलाने के लिए ईरानी ने अमेरिकन विलफोर्ड डेनिम की सेवाएं प्राप्त की, जिन्हें इस काम के लिए सौ रुपए प्रतिदिन वेतन दिया गया था.
आलम आरा जब बनकर तैयार हुई तो उसका प्रदर्शन भी एक समस्या बनी इस को दिखाने के लिए एक विशेष साउंड प्रोजेक्टर की आवश्यकता थी इसके लिए अब्दुल अली युसूफ अली बंधुओं ने बहुत सहायता की. उन्होंने विदेश से टॉकी प्रोजेक्ट बुलवाया और मैजिस्टिक थिएटर को टॉकी थिएटर में बदला. तब कहीं आलम आरा नाचती गाती बोलती नजर आई.
आलम आरा से तीन ऐसी शख्सियत जुड़ी थी जिन्हें आगे चलकर बड़ा नाम कमाया लेकिन आलम आरा में उनकी भूमिका अत्यंत संक्षिप्त थी. पहले महबूब दूसरे पृथ्वीराज कपूर और तीसरे दक्षिण के प्रख्यात निर्माता-निर्देशक एलवी प्रसाद. नानू भाई वकील ने इसका पुनर्निर्माण 1956 और 1973 में किया था.
फिल्म का प्रचार भी बड़े रोचक ढंग से हुआ पुरानी फिटिन घोड़ागाड़ी पर ढ़िढोरची टिन के भौंपू पर चिल्ला-चिल्ला कर प्रचार किया जाता मुर्दा जिंदा हो गया… नया अजूबा देखो चलती फिरती नाचती गाती तस्वीरें चार आने में.
वसुधा के हिंदी सिनेमा: बीसवीं से इक्कसवीं सदी तक अंक से शिवानन्द कामड़े के लेख हिंदी की पहली फिल्म होने का गर्व लेख के आधार पर.
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