यह लेख डॉ. राम सिंह की किताब आजाद हिन्द फ़ौज के क्रांतिवीर से लिया गया है. यह लेख कर्णध्वज चंद के जीवन संघर्ष से जुड़ा है. कर्णध्वज चंद जन्म जलतुरी गांव, पिथौरागढ़ में हुआ था. 1936 में सेना में भर्ती कर्णध्वज चंद आई.एन.ए. का हिस्सा रहे. इस लेख में कर्णध्वज चंद ने बताया है कि आई.एन.ए. से लौटने के बाद कैसे पिथौरागढ़ के लोगों ने उनका ढ़ोल नगाड़ों के साथ स्वागत किया – संपादक
आई. एन. ए. के तीनों जनरल छूट गए. हम लोगों को भी छोड़ दिया गया. फ़ौज में रहते हुए जो एक रुपया प्रतिमाह तनख्वाह से हमारा कटकर फंड जमा होता था, केवल वही सब मिलाकर 344 रुपये मुझे मिले. इसके अलावा कुछ नहीं मिला. डी गज कपड़ा कफ़न का भी दिया गया.
मुल्तान से लाहौर आये वहां कुछ लोगों ने जनरल ढिल्लो साहब के भाई की फैक्ट्री में नौकरी कर ली. हमारे पास गाड़ी का वारंट था. रेलमार्ग से हम लाहौर से काठगोदाम आ गए. जब हम हल्द्वानी पहुंचे, रिलीफ कमेटी ने हमारा स्वागत किया.
मेरे पास फंड का पैसा था, कमेटी वालों से कुछ नहीं लिया. मेरे साथ बलतड़ी का जोगाचंद और बडाबे का खुशालचंद था. उनके पास रुपये-पैसे आदि नहीं थे उनकी रिलीफ कमेटी वालों ने मदद की. अल्मोड़े में भी रिलीफ कमेटी वालों ने पूछा पैसे हैं या नहीं? मैंने कहा मेरे पास हैं मैं घर पहुंच जाऊंगा अगर मेरे साथियों को रुपये पैसों की जरुरत हो तो इनको दे दीजिये.
16 मार्च को मुल्तान से चलते-चलते हम 20 मार्च को पिथौरागढ़ पहुंच गए. पिथौरागढ़ में भी रिलीफ कमेटी थे. अल्मोड़े में कांग्रेस पार्टी और रिलीफ कमेटी वालों ने कहा नौकरी करना हो तो कर लो. हम लोगों ने मना कर दिया. जागेश्वर में बड़ाबे वाले दुर्गादत्त जोशी मिले घोड़े पर सवार होकर अल्मोड़ा जा रहे थे. टंगनू में भगत जी के नाम से मशहूर व्यक्ति थे उन्हीं के यहां दुर्गादत्त जी मिले.
पिथौरागढ़ रिलीफ कमेटी में हीराबल्लभ पुनेठा, राजीव मखौलिया, वड्डा के घनश्याम खर्कवाल और ठुलीगाड़ के अकबर अली आदि थे. हम लोगों के दाढ़ी बाल बहुत बड़े हो गए थे. आठ साल बाद घर आ रह थे. आठ साल तक लगातार गुमनामी में रहे. रिलीफ कमेटी वाले हमको हाईस्कूल, घोड़साल में ले गए. हम लोगों से भाषण देने को कहा, हम लोग भाषण करना ही नहीं जानते थे.
जब पिथौरागढ़ से बड्डा पहुंचा तो मुझे वड्डा से जाने नहीं दिया गया. पन्थ्यूड़ी वाले गाजे-बाजे, ढोल दमाऊ इत्यादि लेकर अगले दिन वड्डा पहुंच गये. उमाकांत जी हेडमास्टर मेंरा स्वागत करने आये थे. मुझे वड्डा से पन्थ्यूड़ी के कुछ उत्साही युवक पन्थ्यूड़ी ले गये. अगले दिन जलतूरी गांव वाले, जो मेरा गांव है, मुझे लेने पहुंच गये. नगाड़ों, गाजों-बाजों के साथ लोग ख़ुशी से नाचते गाते, देशप्रेम के नारे लगाते एक विशाल जुलूस की शक्ल में मुझे घर तक ले आए. इस समय मेरी उम्र 28 बरस थी.
– काफल ट्री डेस्क
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