होली के आखिरी दिन पुरुषों के भोजन एवं पेय की एक मौखिक पुस्तक कई वर्षों से चली आ रही है. यह पुस्तक किसी ने न लिखी है न पढ़ी है इसके बावजूद होली की इस पुस्तक के नियमों का पालन दशकों से किया जाता है. इस पुस्तक का नाम होली शास्त्र कहा गया है.
होली शास्त्र में शराब एक आवश्यक पेय माना गया है जिसका सेवन मानव क्षमता अनुसार पहले छुपकर और फिर खुले में किया जाता है. इस दिन शराब का सेवन ब्रह्म मुहूर्त से शुभ माना जाता है और नाली में गिरने तक किया जाना समाज में पुरुष को एक नवीन स्थान दिलाता है. कई सारे पुरुष होली के दिन से ही सामाजिक शराबी बनते हैं.
होली शास्त्र की इस पुरानी किताब में कहा गया है कि होली के दिन बारह बजे बाद शिकार भात भकोरा जाना चाहिये. इस दिन मंगलवार को भी शिकार खाया जा सकता है. शिकार मुख्य रुप से मुर्गे का होना चाहिये लेकिन बकरे का हो तो होली पूर्ण मानी जाती है. इसी कारण इस दिन बने मुर्गे भात को भी शिकार भात ही कहा जाता है.
मूल होली शास्त्र में कहा गया है लकड़ी से जली आग में बनाया गया शिकार पवित्र होता है किन्तु कुछ पाखंडियों ने सुविधा अनुसार इसे एल.पी.जी. के चूल्हों में बनाना शुरु कर दिया है. आज भी बहुत से भक्त ऐसे हैं जो पारंपरिक रूप से होली शास्त्रानुसार ही शिकार बनाते हैं. इनकी संख्या बहुत कम हो गयी है यदि सरकार ने अब भी कोई कदम नहीं उठाया तो आने वाले कुछ वर्षों में ये विलुप्त हो जायेंगे.
शिकार में नमक और मिर्च तेज होनी चाहिये. मोटा कटा हुआ प्याज सफ़ेद नमक के साथ थाली के दसवे हिस्से को में फैला रहना चाहिये. शिकार की तरी इतनी पतली होनी चाहिये कि खाते हुये आदमी की उंगलियों से होती हुई हथेली तक फ़ैल सके.
शिकार खाते समय के लिये अनिवार्य नियम यह है कि इसे जमीन पर बैठकर ही खाया जाना चाहिये. इसके सेवन का अंतिम नियम यह है कि कितना ही घटिया होने पर भी इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ शिकार भात कहा जाना चाहिये. इसकी शान में कसीदे पढ़े जाने चाहिये. बनाने वाले के हाथ चूमने वाले महानुभावों को पुण्य प्राप्त होता है.
– गिरीश लोहनी
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वाह. यो भे सबूत.
Aapki jitni tarif ki jaye kam hai
Totally Wrong.