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नैनीताल के तीन नौजवानों की फाकामस्त विश्वयात्रा – 9

यात्रा जारी रहेगी

इस्तानबूल से कहानी उन पश्चिमी यायावर युवकों की शुरू होती है जो कि योरोप एवं अमेरिका के उस समाज से, जिसके प्रति उन्हें आक्रोश है, अपने आक्रोश को मिटाने के लिए हिमालय के उस छोर की ओर निकल पड़ते हैं जिस काठमाण्डू कहते हैं. इस्तानबूल से नेपाल की राजधानी काठमाण्डू तक की लगभग 3500 मील लम्बी इस यात्रा में हजारों युवकों को हर वर्ष देखा जा सकता है, जिसके पास न पर्याप्त पैसा होता है, न यात्रा के कोई अन्य साधन, न यात्रा का कोई अर्थ होता है, न ही उद्देश्य. इनके मस्तिष्क का ईधन है, चरस और मोरफिन. इनमें से कुछ ही कामाण्डू पहुंच पाते हैं, कुछ अपना मार्ग नशे में भूलकर कहीं और निकल पड़ते हैं तथा कुछ की मार्ग में ही दुखद मृत्यु हो जाती है. कुछ युवकों के लिए यह यात्रा मात्र एडवेंचर है तो कुछ के लिए जीवन में अपना रूढ़िवादी अस्तित्व बनाने से पूर्व कुछ अटपटा करने की इच्छा मात्र, कुछ के लिए बीसवीं शताब्दी और आधुनिक पश्चिमी भौतिक सभ्यता से भाग चलने की दौड़, तो कुछ के लिए अपने उस देश से दुःखद यात्रा है, जहां वे अपना अस्तित्व बनाना चाहते हैं. क्योंकि ये लोग यो ही निकल पड़ते हैं? विस्थापितों की तरह रहना, अपना रक्त बेचकर तक अपनी उदर पूर्ति करना. आखिर क्यों? क्यों युवा वर्ग सोचता है कि समाज में उसके प्रति न्याय नहीं हो रहा है? क्या यात्रा मात्र कर लेने से सब कुछ बदल जायेगा और जीवन की कठिनाइयों से छुट्टी मिल जायेगी.

यह सच है कि आज हम अपने आप से भाग रहे हैं. हम में आज वह करने का साहस नहीं रह गया है जो हम सचमुच करना चाहते है. हमने अपनी अधिकांश शक्ति सच को दबाने में लगा दी है. आज लोग खुशी का बहाना करते हैं, क्योंकि अगर आप प्रकट करें कि आप खुश नहीं हैं तो आपको जीवन में असफल माना जायेगा. यही कारण है कि आज हर कोई अपने आप को सफल दिखाने के प्रयास में दौड़ रहा है. सभी का सोचना हो गया है कि अधिक से अधिक धनार्जन जीवन में खुशी लाता है, अतः धर्नाजन ही सफलता का मापदण्ड हो गया है.

इसी झूठी सफलता से परेशान हमने कुछ अटपटा करने की चाह में, उन्मुक्त पंछी की तरह नीले गगन में अपने आपको उड़ाने का प्रयास किया, जिसमें हमें कुछ अनुभव हुए, इन्हीं अनुभवों के आधार पर मैंने पिछले वर्षों में ‘नैनीताल समाचार’ में लिखा था, पर बीच-बीच में मेरी यायावर की आत्मा न जाने कहां चली जाती थी. मैं अपने को झूठी सांसारिक खुशी देने में लगा पा रहा था, पर एक बार मेरी आत्मा फिर से लौट आयी और मैं अपने पाठकों के लिए अपनी यात्रा के संस्मरण पूरा कर सका.

आज के आधुनिक युग में उन्मुक्त होकर रहना और यात्रा करना कोई साधारण काम नहीं, इसके लिए निरन्तर संघर्ष करना होता है, और संघर्ष भी उस समाज से जिसकी दीवारें हजारों वर्षों के मानव प्रयत्नों से बनी है. हो सकता है कि ये विशालकाय दीवारें मानव की सुरक्षा एवं विकास के लिए बनायी गयी हो, पर कम से कम मैं तो अपने आप को इसमें कैद और घुटा हुआ ही अनुभव करता हूं. यह मानसिक स्थिति मेरी नहीं, मेरे जैसे लाखों करोड़ों युवक-युवतियों की है. कुछ में संघर्ष के लिए दम है, कुछ समझौता करके नारकीय जीवन जी रहे हैं, कुछ इस पैशाचिक पंजे से स्वतंत्र होकर एक सफल जीवन यान कर रहे है. जिसने जीवन में एक ही कल्पना की हो, उसको कोई अन्तर नहीं पडता. उसके लिए जो कुछ वह देख रहा है, वही संसार है. पर मेरा जीवन का तर्क हमेशा यह रहाः

‘मैं एक असन्तुष्ट मनुष्य होना ज्यादा पसंद करूंगा,
बजाय इसके कि मैं एक बेवकूफ व सन्तुष्ट सुअर बनूं.’

आज के आधुनिक युग में विदेश भ्रमण करना और वह भी उन्मुक्त होकर, कम से कम भारतीयों के लिए कठिन समस्या पैदा कर देता है. भारतीयों के लिए सबसे अधिक समस्या धन की रहती है. अगर पैदल भी चला जाय, लिफ्ट यात्रा की जाय, किसी का मेहमान बनकर भोजन ग्रहण करें फिर भी कभी न कभी थोड़े बहुत पैसे की आवश्यकता पड़ती ही रहती है. जैसे वीसा, फीस, पैदल मार्ग न होने पर पानी या हवाई जहाज से यात्रा करना, एयरपोर्ट फीस, कभी-कभी कुछ विदेशी दूतावास 200-300 डालर देखे बिना वीसा भी नहीं देते हैं. कभी-कभी दवाइयां भी खरीदनी पड़ सकती है. इन सबके लिए कुछ न कुछ काम करके कमाने की आवश्यकता है. आज विदेश में रोजगार मिल ही जायेगा यह सोचना गलत है. वैसे आदमी को यह साहस करना चाहिए कि वह बिना पैसे के ही निकल पड़े, और हर स्थिति में अपना मानसिक संतुलन बनाये रखे. पैसा कभी उसकी समस्या नहीं बनेगा, लोग उसकी सहायता करना चाहेंगे, इसके लिए अपने आप में असीम विश्वास होना चाहिए. अगर आप कमजोर हैं तो आपके लिए सबसे अच्छा तरीका यह रहेगा कि आप कुछ पैसा तो अपने देश से ही कमा कर ले चलें और बकाया पैसे का भरोसा अपने विदेशी मित्रों से करें. हमें चाहिए कि अपने देश में आये हुए यात्रियों से अपने संपर्क बढ़ायें और अपने देश में उनकी सहायता करें तथा अपना पत्र व्यवहार निरन्तर बनाये रखें. आज विदेश यात्रा के लिए यह एक सबसे सफल तरीका है, जिसका मुझे अनुभव नहीं, विश्वास है.

अगर आपको किसी बड़ी यात्रा में जाना है, तो आपको एक ही समय में अनेक काम करके धनार्जन करना चाहिए. पैसा अर्जन का आसान तरीका आउटडोर फोटोग्राफी, सजावट के परिधान बनाना, बचे हुए समय में ट्यूशन इन कार्यों में एक दो वर्ष के परिश्रम के बाद यात्रा के लिए पर्याप्त पैसा बनाया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह कार्य ऐसे हैं, जिनमें आपको मानसिक तनाव कम से कम रहेगा तथा सुरूचिपूर्ण परिश्रम से आप धनार्जन कर सकते हैं. इन सब कार्यों को करने में प्रारम्भिक झेंप तो अवश्य होगी पर एक बार कदम उठा लेने पर आपका आत्मविश्वास बढ़ता ही चला जायेगा.

जिनमें यायावरों की आत्मा है, उनको चाहिए कि वे प्रगतिशील लोगों का ही साथ करें, जिनमें जीवन में कुछ नया करने की लालसा है, जो जीवन में कुछ अन्वेषण करना चाहते हैं. लकीर के फकीर लोग आपको निरूत्साहित करेंगे, आप में कुंठाएं पैदा करने का प्रयास करेंगे, इनसे हमेशा बचना चाहिए.

यात्रा का सच्चा आनंद विपरीत सैक्स के साथी के साथ अधिक है, इससे यात्रा में रोचकता बनी रहती है तथा आप अपने आपको स्वस्थ एवं स्फूर्ति में पायेंगे. मनुष्य के सही विकास के लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए. पुरूष वर्ग में यात्रा के शौकिन बहुत मिल जाते हैं पर ऐसी नारी का मिलना काफी मुश्किल होता है पर असम्भव नहीं. यात्रियों को स्वस्थ अवश्य होना चाहिए, वरना मार्ग में कठिनाई आ सकती है. अतः इस बात का हमेशा ध्यान रहे. सहयात्रियों के विचारों में थोड़ा मेल भी होना आवश्यक है, वरना मानसिक तनाव से ग्रस्त रहेंगे और बहुत शीघ्र ऊबने लगेंगे. अतः यात्रा से पूर्व इन सब बातों का अवश्य ध्यान रहे.

 

वापसी

अपनी विदेश यात्रा में हम कई ऐसे यात्रियों से मिले, जो कि दस-दस, बारह-बारह वर्षों से यात्रा कर रहे थे, जिनका अपना निजी अनुभव था कि अपने आपसे भागने की यह उद्देश्यहीन यात्रा युवा वर्ग को कहीं नहीं पहुंचाती. पर मेरा विश्वास है कि अगर नशे से हटकर विश्वास एवं लगन के साथ बिना पैसे या थोड़े पैसे से मानव व्यवहार को समझते हुए कोई भी यात्रा की जाये, उसमें आपको अवश्य सफलता मिलेगी. हमें यात्रा के बाद ऐसे बहुत से नवयुवक मिले जिनमें विश्व भ्रमण में आने जाने की अत्यन्त उत्कंठा है, पर पहल करने का वह साहस उनमें नहीं जो नवयुवकों में होना चाहिए. उनमें खतरा उठाने की हिम्मत नहीं, उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य नौकरी या व्यवसाय करके रुढ़िवादी अस्तित्व बनाना मात्र रह गया है. अगर जीवन को सार्थक बनाना है तो हमको वही कार्य करना चाहिए जिसके प्रति हमें जिज्ञासा और रूचि हो. लगन एवं निष्टा से उठाया गया हर कदम हमें देर सबेर अवश्य अपनी मंजिल तक पहुंचायेगा. पता नहीं आज की पीढ़ी में भविष्य के प्रति इतना भय क्यों है?

इस बार हम दुबारा इस्तानबूल पहुंच रहे थे. सुबह के आठ बजे के आस-पास हमने बुलगारिया की सीमा को पार किया. अब हम टर्की में प्रवेश कर चुके थे. सीमा पर सैनिक जमाब काफी दिखाई दे रहा था इसका कारण साइप्रेस के विषय को लेकर था. हमारी ट्रेन 10 बजे रेलवे स्टेशन पर पहुंची. यह वही प्लेटफार्म था, जहां से संसार की सबसे सुन्दर एवं आरामदेह ओरियट एक्सप्रेस पेरिस के लिए चला करती थी. सब कुछ पूर्व में देखा था, पर बड़ा अन्तर था तब और अब में. जाते समय लगभग 6 माह पूर्व इसी शहर से हम सीरिया, जोर्डन, मिश्र, ग्रीस, इटली, यूगोस्लाविया एवं बुलगारिया गये थे. आज फिर उसी शहर में एक दूसरी मानसिक स्थिति थी. उस बार पैसे नहीं थे पर इस बार पैसे थे. तब भय रहता था कि नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा, क्या कभी अपने घर वापस पहुंच भी पायेंगे. पर हम में खतरा उठाने का साहस अवश्य था, अतः अन्दाज भी कुछ अजीब था. कभी खुद खाना बनाया करते थे, पर इस बार होटलों में खाया करते थे. पिछली बार धनाभाव के कारण इस्तानबूल का प्रसिद्ध संग्रहालय टॉपकाफी नहीं देख पाये थे, इस बार वह भी देखा. कभी पहले विश्वास के साथ जिज्ञासा रहती थी अब विश्वास के साथ अनुभव था. इस बार हम अपने आपको अधिक मजबूत अनुभव कर रहे थे. हमें क्या करना है, कैसे करना है, सब कुछ ज्ञात था. अतः सीधे यूथ हॉस्टल की ओर निकल पड़े , जहां पहुंकर हमने सबसे पहला काम किया नहाना और कपड़े धोना, क्योंकि योरोप का उन्मुक्त जीवन जीकर रंग-रूप यायावर कम, हिप्पी अधिक हो चुका था.

इस्तानबूल संसार के रंगीन शहरों में से एक है. शिकागो, रोम, न्यूयार्क के स्तर की दादागिरी यहां भी होती है. पूर्व से पश्चिम को होने वाली तस्करी में इस शहर का काफी महत्व है. यहां जोखिम उठाने वाले अपराधी रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय पुलिस संगठन (इन्टरपोल) जैसे संस्थाएं हर समय सक्रिय रहती हैं, पर अपराधी भी प्रतिभावान हैं, अतः सब कुछ चलता ही रहता है. भारतीय एवं पाकिस्तानी युवकों के झुण्ड के झुण्ड दिखाई देते हैं. ये सभी योरोप जाकर बसने के लिए अपने देश से आये थे, पर या तो डिपोर्ट कर दिये गये या योरोप में नौकरी मिलने का मिथ्या भ्रम यहां पहुंचकर टूट गया. अब सभी का एक ही धंधा है ‘फ्लाइंग बिजनेस’! टर्की का माल बुलगारिया के शहरों में बेचकर अच्छा पैसा कमा लेते हैं. धीरे-धीरे कुछ इस काम में जब अनुभवी हो जाते हैं तो जर्मनी से पुरानी कार खरीद कर ईरान में बेचने का व्यापार करने लगते हैं. हमने कुछ भारतीयों से सुना कि इसमें लाभ अधिक है. दो एक ऐसे चक्कर रहते हैं जिसमें फॅसने का भय रहता है. पर खतरों से घबराकर पैसा नहीं कमाया जा सकता है यह सभी सफल तस्करों का सिद्धान्त रहता है. सबसे ऊॅंचे दर्जे के, ऊॅंची प्रतिभा वाले भारतीय-पाकिस्तानी युवक अन्तर्राष्ट्रीय अपराधियों के सम्पर्क में आकर सुदूर पूर्व से लेकर योरोप और अमेरिका तक तस्करी करने लगते हैं, इनका अपराध जगत भी अजीब होता है, जहां हर समय जोखिम रहता है और हर समय पैसा.

शरद ऋतु के मौसम को इस्तानबूल का यौवन कहा जाता है. इन दिनों होटलों के किराये आसामन छूने लगते हैं, चारों और एक अजीब रौनक! सड़कें हों या रेस्ट्रा, होटल हों या समुद्र तट; चारों और पर्यटक ही पर्यटक; शोख और चंचल लड़कियां, सुन्दर और रंग-बिरंगे पोशाकें पहनकर बड़े ही आत्मविश्वास और फक्कड़पन लिये हुए इधर-उधर घूमती हुयीं या अपने प्रमियों के साथ प्रेमालाप करते हुए दिखाई देती हैं. इस शहर की सुन्दर अदाओं में कुछ दिन हम भी उलझे रहे. इस बीच हमने शहर का चप्पा-चप्पा घूमा. हमारा यही तरीका रहता था कि हम जब किसी शहर में पहुंचते थे, दो-तीन दिन में ही उस शहर की गलियां-गलियां घूम लेते थे. किसी शहर की संस्कृति का ज्ञान भी तभी होता है, वरना दो एक दर्शनीय स्थल देख लेने से शहर से परिचय नहीं हो पाता. इस्तानबूल एक ऐसा शहर है जिसकी आत्मा को हमने पहचान लिया था.

हम अब अपने घर की ओर लौट रहे थे. मानसिक एवं शारीरिक रूप से कुछ कमजोर कभी-कभी अनुभव करते थे. शायद कुछ आराम की जरूरत थी. योरोप की जलवायु और मानव व्यवहार से हमारा कोई पूर्व परिचय नहीं था. योरोप में घूमने के लिए कुछ दूसरा तरीका है इसका हमें पूर्वज्ञान नहीं था. एशिया और अफ्रिका महाद्वीप में मानव व्यवहार दूसरा है. वहां विदेशी यात्रियों के लिए लोगों में जिज्ञासा रहती है, पर योरोप में ऐसा कुछ नहीं है. योरोप में उसी को महत्व दिया जाता है जिसमें कलात्मक बौद्धिक या आध्यात्मिक प्रतिभा हो. उद्देश्यहीन घूमते यात्रियों की ओर कोई ध्यान नहीं देता, पर हां आप वार्तालाप में प्रवीण हों, दूसरे को अपने तर्क से प्रभावित कर सकते हों तो वहां का युवा समाज आपको अवश्य स्वीकार करेगा. तर्क-वितर्क करना पश्चिमी युवकों का शौक होता है, गहन चिन्तन करने की सामर्थ्य हमने उनमें पाई. यह आसान नहीं कि उनके ऊपर आप अपनी बात थोप दें, हर युवक एवं युवती का अपना मौलिक व्यक्तित्व होता है, दूसरों से बहुत जल्दी वे प्रभावित नहीं होते हैं. यूथ होस्टलों, रेस्टोरेंट, रेलवे स्टेशन या किसी बाजार और चर्च के करीब योरोपियन लड़के-लड़कियां बैठकर बातें करते हुए दिखाई देते हैं. अगर आपको रुचि है तो आप भी वार्तालाप में भाग ले सकते हैं.

इस्तानबूल से हम लोग रेल द्वारा अंकारा पहुंचे. अंकारा टर्की की राजधानी है अतः स्वभाविक है कि शहर साफ सुथरा एवं सुन्दर है. फैशन और सोफेस्टीकेशन में वही भिन्नता इस्तानबूल और अंकारा में दिखाई देती है जो बम्बई और दिल्ली में है. दो दिन हम अंकारा में रहे. इस बीच हमें तीनों सहयात्रियों में मानसिक तनाव काफी रहता था. शायद हम कुछ थो, हमें किसी की जैसे खोज रहती हो. ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में हम कोई नशा कर लेते थे. इससे हमारे बीच का तनावपूर्ण वातावरण ठंडा हो जाता था. वैसे मूलरूप से हमारे बीच में एक-दूसरे के प्रति स्नेह में कभी कमी नहीं आयी.

तीसरे दिन हम अंकारा से एक प्राइवेट बस द्वारा टर्की और ईरान की सीमा के लिए चल पड़े. अंकारा में तो बस ड्राइवर बोला कि वह हमें सीमा पर ले जाकर छोड़ेगा, पर टर्की के शहर ईजरम पहुंचकर वह बोला कि आगे के लिए टैक्सी कर देता हूं, क्योंकि बस में चार ही यात्री ऐसे थे जिनको सीमा तक जाना था. इस क्षेत्र को कुर्दिस क्षेत्र कहा जाता है. यहां के विषय में सुना था कि रात में यहां यात्रियों को लूट लिया जाता है, अतः रात होने से पहले हमें सीमा पर पहुंचना था. एक ड्रग एडिक्ट टैक्सी-ड्राइवर से हमें सीमा तक छोड़ने का समझौता हुआ. ईजरम से सीमा तक के मार्ग में देख रहा था कि कुर्दिस लोगों के गांवो का समुचित विकास नहीं हो पाया. यही कारण है कि कुर्दिस क्षेत्र, जो कि ईरान, और ईराक और सीरिया तक फैला हुआ है, के लोग समय-समय पर अलग कुर्दिस राष्ट्र की बात करते हैं, पर हमेशा सैनिक शक्ति द्वारा इनकी मांग को दबा दिया जाता है. यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है. बहुत से लोग नशीली वस्तुओं के व्यापार में लगे हुए हैं.

(जारी)

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Sudhir Kumar

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