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नैनीताल के तीन नौजवानों की फाकामस्त विश्वयात्रा – 4

डमास्कस में

किस्मत के सितारे आज कुछ बुलंद लग रहे थे. लिफ्ट के लिए हमें इंतजार नहीं करना पड़ा. 25’००० सीरियन पाउण्ड की एक चमचमाती नई कार में हमें शीध्र ही लिफ्ट मिल गई. 100 से 120 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से भागती कार में हम उत्सुकता से ड’मेस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि यह ड’मेस वह नगर है जो विश्व में डमास्कस के नाम से विख्यात है.

डमास्कस पहुंचते ही हमारा स्वागत एक विद्यार्थी ने किया. अपने ही खर्च पर उसने हमें यूथ हाॅस्टल तक पहुंचाया. कमरा तय करने के बाद हमने जमकर स्नान किया और फिर एकजुट होकर कल के बारे में सोचने लगे. लम्बे विचार-विमर्श के बाद यह तय किया गया कि हममें से एक विश्वविद्यालय जायेगा, एक सांस्कृतिक केन्द्र और तीसरा ‘सिफारिते हिन्द’ यानी भारतीय दूतावास – ताकि आगे के लिए वीसा लिया जा सके. साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि आने वाले कल का ‘भोजन’ अपनी कोशिशों से पैदा करें. लगभग पूरी रात हम इसी तरह सोचते-विचारते रहे.

छूसरे दिन प्रातः हम तीनों ने भोर में ही बिस्तर छोड़ दिया और पूर्वयोजना के अनुसार अपने-अपने गन्तव्य की ओर चल दिये.

हवालात में

शाम को जब सब लोग आकर यूथ-हाॅस्टल में एकत्रित हुए तो सबके चेहरे देखने लायक थे. जिस तरह की खिसियानी हॅंसी सबके चेहरे पर थी, उससे अनुमान लगाया जा सकता था क्या हुआ होगा. जब बारी-बारी से सबने अपने अनुभव सुनाये तो जाकर बात साफ हुई.

हममें से जो व्यक्ति विश्वविद्यालय गया था, उसे दो घंटे हवालात की सैर करनी पड़ी थी, क्योंकि उसके पास उस समय पासपोर्ट नहीं था. जो सज्जन तीनों व्यक्तियों के पासपोर्ट लेकर भारतीय दूतावास गये थे, उन्हें दो पासपोर्टो के 200 डॉलर देने वाले भारतीय तथा पाकिस्तानी खरीददार मिल गये थे. बड़ी मुश्किल से इन अति-उत्साही ग्राहकों से उन्होंने पीछा छुड़ाया था. सांस्कृतिक केंद्र जाने वाला युवक इसलिए निराश हुआ था, क्योंकि वहां दूसरे देशों के बारे में कुछ भी कहने तथा सुनने की सख्त मनाही थी. इस प्रकार हम तीनों लोग हाथ मलते हुए वापस आये थे.

हम तीनों बहुत ज्यादा उदास थे. हताशा ने हमें जकड़ लिया था. हमें काम की सख्त तलाश थी. लेकिन काम था कि मिल नहीं रहा था. आत्मविश्वास बनाये रखना हमारे लिए कठिन हो गया. ड’मेस में हमारे ये तीन-चार दिन घोर गर्दिश में बीते!

लकड़ी के रेल में एक रोचक अन्तराल

चौथे दिन जब हम डमास्कस शहर से 2 मील दूर एक दुकान के आगे घुटनों पर सिर दिये बैठे थे, हमारी मुलाकात अचानक एक बुजुर्ग से हुई. उन्होंने हमारी बातें काफी सहानभूति से सुनीं. फिर कुछ सोचकर वे हमें टैक्सी में बिठाकर एक क्रस फैक्ट्री में ले गये. टैक्सी का पैसा हमें नहीं देना पड़ा और ऊपर से हमें रोजगार मिल गया. गो कि उस फैक्ट्री में मजदूरों की जरूरत नहीं थी, फिर भी शायद हमारे ऊपर दया करके ही हमें काम दिया गया. हमारा काम दीवारों को रेगमाल से रगड़ना था. लम्बी-लम्बी सीढ़ियों पर चढ़कर हम दिन भर दीवारें घिसते थे. डेढ़ दिन तक हम यही काम करते रहे. उसके बाद हममें से एक को ट्रक से सामान उतारने-चढ़ाने के काम में लगा दिया गया तथा एक को दीवारों पर कागज चिपकाने के. हम को एक घंटा काम करने पर एक सीरियन पाउण्ड मिलता था और हम प्रतिदिन लगभग 10-12 घंटा काम करते थे. हमारे सेठ जी हम पर बहुत मेहरबान थे. उनकी कृपा से हमें अक्सर मुर्गा खाने को मिल जाता था. और फैक्ट्री में कोल्ड ड्रिंक तो ऐसे बहती थी जैसे नलके से पानी. दिनभर हम यहां करते और रात को खुले आसामान के नीचे नींद निकालते. सच तो यह है कि अपनी विदेश यात्रा में हमें डमास्कस तथा उससे आगे, धनोपार्जन करने के लिए छोटे-बड़े जो भी काम करने पड़े, उनका हमें अपने देश में कोई आभास नहीं था. लेकिन हम तो यह निश्चय लेकर निकले थे कि हम तो सिर्फ 7 डालर से विदेश यात्रा प्रारंभ करेंगे, अपनी मेहनत से धन अर्जित करेंगे, और जो कुछ देखें सुनें उसे वापस आकर अपने देशवासियों को बातयेंगे.

सात दिन लगातार उस फैक्ट्री में काम करने के बाद आठवें दिन यह सिलसिला टूट गया. यह कार्य हमारे लिए काफी वजनी था और मशक्कत माॅंगता था. हमारे एक साथी के गले व नाक से खून रिसने लगा. यह हमारे लिए अप्रत्याशित झटका था. हमने उसी दिन सेठ से अपना हिसाब लिया और पैदल ही दस किलोमीटर दूर यूथ हॉस्टल में वापस आ गये. यहां कुछ सुस्ताने के बाद हमने एक सप्ताह की मैल बदन से बहाई और दो दिन आराम करते रहे. इस बीच हम ड’मेस घूमते रहे और आगे बढ़ने के लिए उर्दन (जोर्डन)का वीसा भी प्राप्त कर लिया.

14 मई 1676 केा हम एक पुराने जमाने की, छोटे-छोटे डिब्बों की लकड़ी की एक ट्रेन से छोटी लाईन द्वारा उर्दन की राजधानी अम्मान के लिए रवाना हो गये . पुराने माॅडल की इस रेलगाड़ी को हम काफी पश्चिमी फिल्मों में देख चुके थे. अतः इस ट्रेन में बैठने का एक विशेष आनंद था.
गाड़ी की बनावट और बाहर के दृश्य जी भर के देख लेने के बाद हमने डिब्बे के अन्य यात्रियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. बारी-बारी से सभी यात्रियों को देखते हुए हमारी निगाहें सहसा एक जगह स्थिर हो गई. हम लोगों की कुल मिलाकर छह आॅंखे एक बेहद खूबसूरत लड़की पर टिक गई. कहा नहीं जा सकता कि उस अपरिचिता ने हमारी आॅंखे पर क्या जादू कर दिया कि हम अपलक कुछ क्षणों तक उसे देखते रह गये. यह तथ्य हम जानकर भी दिरकिनार कर गये कि डिब्बे के अन्य यात्री हमें क्रोधित होकर घूर रहे हैं. बेपरवाही के उन क्षणों में हमारा सम्हल जाना संभव नहीं था.

उस लड़की की एक चितवन पर हम तीनों इस तरह मोहित हो गये कि उस वक्त हमें पहली बार अपनी हालत बेहद नागवार लगी. अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी से हमें घृणा हुई. शरीर के अधमैले वस्त्र गर्म सलाखों की तरह लगने लगे. हमारी खुशी तब तो सीमा लांघ गइ, जब वह लड़की मुस्कुराते हुए स्वयं ही हमारे वार्तालाप में सम्मिलित हो गई.

हमसे अब और अधिक नहीं रहा गया. चटपट दाढ़ी बना डाली और धुले हुए कपड़े पहन लिए. इस हरकत का आपेक्षित प्रभाव उस लड़की पर हुआ. वह अंग्रेजी नहीं जानती थी और हमें अरबी का ज्ञान नहीं था. फिर भी हम किसी प्रकार अपने भावों को स्पष्ट कर पा रहे थे. प्यार की चुहल के बीच भाषा की दरार नहीं थी. पूछने पर उसने बेहद पतली आवाज में अपना नाम ‘कहल’ बताया.

जब हमारी संकेत भरी बोलचाल के थमने के कोई आसार नजर नहीं आये और हमारी हॅंसी और मुस्कान का यह आदान-प्रदान अन्य सहयात्रियों के लिए असहनीय हो गया तो वे हमसे हाथापाई करने पर उतारू हो गये. तब ‘कहल’ ने ही बीच-बचाव कर हमें बचाया. हम विदेशी थे और उन यात्रियों की भाषा हमारे पल्ले बिल्कुल नहीं पड़ रही थी. लेकिन उनकी बाहर निकल पड़ने को तैयार आॅंखे और थूक के छींटे फेंकती कर्कश आवाज से यह लगा कि वे हमें गाली दे रहे होंगे. बहरों की भांति हम सुनते रहे. हम बच गये और जब सब कुछ शांत हो गया तो हमने रेल की खिड़की के बाहर के दृश्यों में अपनी आॅंख गड़ा दी.

जोर्डन का तीन चैथाई भाग रेगिस्तान है. इसी रेगिस्तान में कहीं न कहीं कुछ हरा भरा प्रदेश भी है. इस तरह के हरे-भरे क्षेत्रों का यहाॅं के लोगों के अपने प्रयत्नों से और अधिक हरा भरा एवं सुन्दर बना दिया है. जोर्डन की राजधानी अम्मान भी ऐसे ही क्षेत्र की छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच बसा हुआ अत्यंत सुन्दर शहर है.

आर्थिक रूप से जोर्डन बहुत सम्पन्न दिखाई देता है. इसकी राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख स्रोत सऊदी अरब से प्राप्त रायल्टी है. सऊदी अरब के तेल के कुछ पाइप जोर्डन के क्षेेत्र से गुजरते हैं और इसी के लिए जोर्डन को यह राॅयल्टी मिलती है. थोड़ी बहुत कृषि भी होती है. देश की समृद्धि का परिचय सड़कों पर भागती महंगी कारों तथा टीवी पर आते रंगीन कार्यक्रमों को देखकर ही मिल जाता है. मुद्रा प्रसार के लक्षण भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाते हैं. यहां की मुद्रा दीनार है. एक दीनार लगभग 28 रुपये के बराबर होता है. दीनार के हजारवें भाग को फिल्स कहते हैं. 2500 फिल्स में एक समय का साधारण भोजन, 1100 फिल्स में एक पैकेट जोर्डन में बनी सिगरेट तथा 500 फिल्स में एक बोतल वोडका आती हैं यहाॅं न्यूनतम वेतन 25 दीनार प्रतिमाह है. नालायक से नालायक व्यक्ति को भी आसानी से रोजगार उपलब्ध हो जाता है. इसीलिए जोर्डन से हमें बहुत आशाएं थीं.

दिन के लगभग दो बजे हम अम्मान के प्लेटफार्म पर उतरे. हमारे साथ सीरिया के तीन युवक भी थे. ये लोग भी रोजगार की ही तलाश में आये थे. उनके साथ ही हम लोग भी लगभग 3 किमी चलकर शहर के मध्य भाग तक पहुंचे. पहली समस्या आवास की थी. जिसका समाधान यूथ हाॅस्टल पहुंचकर हो गया. यूथ हाॅस्टल के प्रति हमारे आकर्षण का प्रमुख कारण वहाॅं का वातावरण तथा कपड़े धो सकने की सुविधा तक सीमित था. कहते हैं पानी अपना तल स्वयं खोज लेता है. वही स्थिति हम लोगों की भी थी कि चैन वहीं मिलता था, जहाॅं हम जैसे घुमक्कड़ मौजूद हों. यूथ हास्टलों में ऐसे घुमक्कड़ों की कोई कमी नहीं रहती.

हम दो दिन अम्मान में रहे और इस बीच यह पता लगाने का प्रयत्न करते रहे कि वहां रोजगार प्राप्त करने की क्यों संभावनाएं हैं. बाजार में लोग हमें हिन्दी या पाकिस्तानी कहकर पुकारते थे. हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान के नागरिक भारी संख्या में जोर्डन में बसे हैं और इस कारण जोर्डन में इन देशों के नागरिकों का सम्मान कम है. हमसे भी सभी लोगों ने यही कहा कि तुम नौकरी कर बसने के लिए जार्डन आए हो. हमें बार-बार बात दोहरानी पड़ी की हम टूरिस्ट हैं.

तफरीह के दिन

अम्मान में दो दिन बिताने के बाद तीसरे दिन हम डेजर्ट ‘हाइवे’ (रेगिस्तानी सड़क) पर बैठे हुए थे. बड़े-बड़े ट्रक तेजी से गुजरते जा रहे थे, पर हमारा विश्वास था कि ऐसा कोई वाहन अवश्य मिलेगा जो हमें लिफ्ट देगा. मगर चार घंटे तक इंतजार करने पर भी अकबा के लिए कोई लिफ्ट नहीं मिली तो हम थोड़े निराश से होने लगे कि रात को रेगिस्तान में क्या करेंगे? कहां रहेंगे, क्या खायेंगे. तभी एक कार ठीक हमारे सामने रुकी और हमें आधे रास्ते तक के लिए लिफ्ट मिल गई. ड्राइवर एक फिलिस्तीनी था, जो भारत के बारे में यह जानता था कि वहाॅं मरने के बाद शव को जलाया जाता है. वह रास्ते भर इसी विषय पर वार्तालाप करना रहा और हम उसकी सिगरेट फूंकते-फूंकते उसके प्रश्नों का उत्तर देते रहे. इन्दिरा गाॅंधी और शम्मी कपूर के बारे में भी उसे जानकारी थी. ड्राइवर को इस बात पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था कि उसकी कार में विदेशी बैठे हुए हैं.

कुछ देर की यात्रा के बाद हम लोग एक रेस्तराॅं के पास पहुंचे. यहां पर एक पेट्रोल पंप भी था. हमें रात इसी स्थान पर बितानी थी. रेगिस्तान में अधिकांशतः बहुत तेज हवायें चलती हैं, इसलिए बाहर रहना मुश्किल होता है. या तो किसी गड्ढे में बैठे जाओ या किसी ऐसी जगह पर चले जाओ जहाॅं पर आड़ हो. हमने अफगानिस्तान में देखा था कि लोग गड्ढ़ों में बैठे रहते हैं और जैसे ही बस नजदीक पहॅंचती है, बाहर आकर हाथ हिलाने लगते हैं. हवायें इतनी तेज होती हैं कि रेत कानों में चली जाती है. इसीलिए अरब देशों में लोग सिर पर एक कपड़ा लपेटे रहते हैं जिससे तेज हवा और धूप से बचने में मदद मिलती है.

हम तीनों ने अपनी-अपनी स्वेटर पहन ली और रेगिस्तान के बीचों-बीच इस उम्मीद से खड़े हो गये कि शायद कोई गाड़ी अकबा के लिए मिल जाये. सूर्यास्त का समय था और बहुत खूबसूरत मंजर था. हवा से हमारे बाल उड़ रहे थे.

उस शाम लिफ्ट नहीं मिल पाई और रेस्तरां की बाहरी दीवार की आड़ के कारण हवाओं की तकलीफ नहीं हुई. सुबह जब नींद टूटी, सूर्य निकल चुका था. थोड़ी ही देर में एक ट्रक वाले ने हमें अपने ट्रक में बिठा लिया. वीरान रेगिस्तान में ट्रक के पीछे लेटकर यात्रा करने का अनुभव भी जोरदार था.

तीन-चार घंटे की इस यात्रा के बाद हम लाल सागर में स्थित जोर्डन एकमात्र बन्दरगाह अकबा पहुंचे. अकबा कभी भारत के अंडमान की तरह कालापानी की सजा वालों के लिए प्रसिद्ध था. आज यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है. इसका विकास भी बहुत सोच समझ कर किया जा रहा हैं यहाॅं के आकर्षक होटल व रेस्तराॅं पर्यटकों को समय बिताने के लिए आमंत्रित करते हैं. विस्तृत समुद्र तट और उस पर बालू का विस्तार बहुत आकर्षक है. अकबा से जुड़ा हुआ इजरायल का सुन्दर शहर इलट है. इन दोनों शहरों का समुद्र तट एक ही है, पर एक शहर से दूसरे शहर तक पहुॅंचना संभव नहीं है क्योंकि सीमा पर दोनों राष्ट्रों की सेनाओं का काफी जमाव है.

अकबा पहुंच कर हम नौकरी तलाशते रहे. बंदरगाह पर जाकर जहाजों पर नौकरी की संभावनाओं पर पूछताछ करते थे और बाकी समय में समुद्र तट पर लेटे रहते थे. रात को अरबी दोस्तों के साथ शराब पीकर ‘जंगली’ फिल्म का ‘याहू’ गाना गाया करते थे. क्योंकि यहाॅं पर भारतीय फिल्मों के गाने काफी लोकप्रिय हैं.

रात को हम लोग समुद्र तट पर बने हुए कैफे में सो जाते थे. एक दिन सुबह-सबेरे एक बूढ़ा आदमी आया. उसने हमें दूध पिलाया और उसके बाद बोला, ‘‘मैं अकेला रहता हूं. तुम चाहो तो मेरे घर पर रह सकते हो.’’ हम इंकार क्यों करते? अपना सामान उठा कर सीधा उसके घर पहुंच गये.

बूढ़े का शहर में कैफे था. कुल जमा रिश्तेदार, बूढ़ी माॅं और एक बहन, जेरूशलम में रहते थे. उनसे मिलने की इच्छा लिए हुए बूढ़ा जीवन के आखिरी वर्ष जी रहा था. इजरायल को बहुत गाली दिया करता था. हर रात हमारे लिए शराब लेकर आता और फिर हम लोग शराब पीकर नाचते रहते. बूढ़े को भी नाचने का बहुत शौक था. बाद में  जब हमारी नौकरी लग गई तो हम एक टैंट में रहने लगे, तब भी हम कभी-कभी बूढ़े से मिलने के लिए उसके कैफे जाया करते थे.

होटल में हमारा काम रसोई और बर्तनों की सफाई तथा कभी-कभार साग-सब्जी साफ करना था. शिकार अधिकांशतः गाय का होता था. पहले पहल हमने शिकार का काम न करने के लिए जोर डाला, पर धीरे-धीरे महसूस किया कि ऐसे नहीं चलेगा. शिकार का काम करते-करते धीरे-धीरे खाना भी शुरू कर दिया. इसी दौरान मैने महसूस किया कि दुनिया में धर्म के बिना सिर पैर के कितने ही नियम बनाकर लोगों का सचमुच मूर्ख बनाया है.

हम लोगों ने काफी हद तक अपने आप को वहाॅं के तौर तरीकों में ढाल लिया था. हम लोग थोड़ी-थोड़ी अरबी भी बोलने लगे थे, जिसका आनंद हम खूब लेते थे. अपने बाॅस से हम ‘हनुमान’ कहते, जिसके लिए वह खुद को धन्य समझता. कई लोग हमें ‘महाराजा’ कहकर पुकारते थे.
होटल के अच्छे भोजन एवं अन्य आधुनिक सुविधाओं से हम लोग काफी स्मार्ट हो गये थे. खूब नक्शे के साथ सिगरेट पीना, टैंट में बैठकर मित्रमंडली के साथ खूब आराम से शराब पीना तथा खूब बीयर पीकर काम करना, रेत में लेटकर पाश्चात्य संगीत का आनन्द लेना हमारी आदत बन गई थी. हमारे दोस्तों में सभी घुमक्कड़ थे और भटकते हुए ही अकबा पहुंचे  थे. इनमें ब्रिटिश, आस्ट्रिायाई तथा अफगान शामिल थे. एक जर्मन लड़का भी था. बेचारा होटल का काम नहीं कर सका, फलतः नौकरी से निकाल दिया गया. उसकी गर्लफ्रेंड काल गर्ल का काम कर रही थी. शीघ्र ही दोनों ने पैसा जमा किया और ग्रीस के लिए रवाना हो गये.

…अकबा में हमारे ये दिन काफी मौज मस्ती में बीते.

(जारी)

पिछली कड़ी का लिंक: नैनीताल के तीन नौजवानों की फाकामस्त विश्वयात्रा – 3

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Sudhir Kumar

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