नफ़रत
–विस्वावा शिम्बोर्स्का
देखो कितनी सक्षम है यह अब भी
बनाए हुए अपने आप को चाक-चौबन्द –
हमारी शताब्दी की नफ़रत.
किस आसानी से कूद जाती है यह
सबसे ऊंची बाधाओं के परे.
किस तेज़ी से दबोच कर गिरा देती है हमें.
बाकी भावनाओं जैसी नहीं होती यह.
यह युवा भी है और बुज़ुर्ग भी.
यह उन कारणों को जन्म देती है
जो जीवन देते हैं इसे.
जब यह सोती है, स्थाई कभी नहीं होती इसकी नींद
और अनिद्रा इसे अशक्त नहीं बनाती;
अनिद्रा तो इस का भोजन है.
एक या कोई दूसरा धर्म
इसे तैयार करता है – तैनात.
एक पितृभूमि या दूसरी कोई
इसकी मदद कर सकती है – दौड़ने में!
शुरू में न्याय भी करता है अपना काम
जब तक नफ़रत रफ़्तार नहीं पकड़ लेती.
नफ़रत, नफ़रत
एन्द्रिक आनन्द में खिंचा हुआ इसका चेहरा
और बाकी भावनाएं -कितनी कमज़ोर, किस कदर अक्षम.
क्या भाईचारे के लिए जुटी कभी कोई भीड़?
क्या सहानुभूति जीती कभी किसी दौड़ में?
क्या सन्देह से उपज सकता है भीड़ में असन्तोष?
केवल नफ़रत के पास हैं सारे वांछित गुण –
प्रतिभा, कड़ी मेहनत और धैर्य.
क्या ज़िक्र किया जाए इस के रचे गीतों का?
हमारे इतिहास की किताबों में कितने पन्ने जोड़े हैं इस ने?
तमाम शहरों और फ़ुटबाल मैदानों पर
आदमियों से बने कितने गलीचे बिछाए हैं इस ने?
चलें: सामना किया जाए इस का:
यह जानती है सौन्दर्य को कैसे रचा जाए.
आधी रात के आसमान पर आग की शानदार लपट.
गुलाबी सुबहों को बमों के अद्भुत विस्फ़ोट.
आप नकार नहीं सकते खंडहरों को देखकर
उपजने वाली संवेदना को –
न उस अटपटे हास्य को
जो उनके बीच महफ़ूज़ बचे
किसी मजबूत खंभे को देख कर महसूस होता है.
नफ़रत उस्ताद है विरोधाभासों की –
विस्फ़ोट और मरी हुई चुप्पी
लाल खून और सफ़ेद बर्फ़.
और सब से बड़ी बात – यह थकती नहीं
अपने नित्यकर्म से – धूल से सने शिकार के ऊपर
मंडराती किसी ख़लीफ़ा जल्लाद की तरह
हमेशा तैयार रहती है नई चुनौतियों के लिए.
अगर इसे कुछ देर इंतज़ार करना पड़े तो गुरेज़ नहीं करती
लोग कहते हैं नफ़रत अंधी होती है.
अंधी?
छिपे हुए निशानेबाज़ों जैसी
तेज़ इसकी निगाह – और बगैर पलक झपकाए
यह ताकती रहती है भविष्य को
-क्योंकि ऐसा बस यही कर सकती है.
कविता की मोत्ज़ार्ट के नाम से जानी जाने वाली कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का 2 जुलाई 1923 को पश्चिमी पोलैंड में पैदा हुई थीं. विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविताओं में एक अद्वितीय ह्यूमर भी पाया जाता है, जो उनकी कविताओं को महान बनाता है. ठोस वास्तविक चीज़ों की सतह के बस थोड़ा सा नीचे कितनी विद्रूपताएं छिपी रहती हैं, यह पहचानना उन्हें बख़ूबी आता है. विस्वावा शिम्बोर्स्का में एक तटस्थ दार्शनिक की क्रूर निगाह है जो बहुत ही आम दिख रहे दृश्यों, अनुभवों को न सिर्फ़ बारीकी से उधेड़ती है, मानव जीवन की क्षुद्रता और महानता दोनों को एक ही आंख से देख-परख पाने का माद्दा भी रखती है. बेहद रोज़मर्रा दिखाई देने वाली चीज़ें शिम्बोर्स्का के यहां धर्म, समाज, विज्ञान और दर्शन से सम्बन्धित गहनतम बहसों के विषयों में तब्दील हो जाती हैं.
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