Featured

विसर्जन : रजनीश की कविता

देह तोड़ी है एक रिश्ते ने…  

आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया.

आख़िरी सांस  की आवाज भी ना सुन पाया उसकी.

देह पड़ी है सीने मैं,

जो पूरा सीना खाली कर देगी.

चलो विसर्जन के लिए चलें.  

कुछ चन्दन की लकड़ी का बोझ उठाओ,

और देह को ले चलो शमशान.

मेरी भावनाओं का घी लगाओ देह पर,

ताकि मेरी आत्मा शांत हो.

मन्त्र पढ़ो सौभाग्य और दीर्घायु के,

लेप लगाओ मेरे क़िस्सों के.

आराम से लकड़ी रखना देह पर मेरे दोस्त.

भार उसे कभी पसंद नहीं था.

मेरे अंदाजों को चरणामृत कर देना पंडित जी,

छिड़कने में आसानी होगी.

कपाल को धीरे धीरे से तोड़ना,

वो बड़ी नाजुक सी थी.

आत्मा उसके हिर्दय से निकलेगी ,

वहाँ थोड़ी जगह रखना.

मुझे यकीन है वो मेरे पास आएगी,

तो थोड़ा मुख मोड़ लेना.

उसे छोटी-छोटी खुशियाँ खरीदने की आदत थी,

तो विसर्जन के लिए कुछ पुड़िया बना लेना.

मलामी (शव के साथ आये लोग) आये हुए मेहमानों को ,

दो पूड़ियाँ और आलू खिला देना.

मैं चाहता हूँ कि…

विसर्जन चारों धामों मे किया जाये…
-रजनीश

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

2 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

2 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago