उत्तराखण्ड वन विभाग द्वारा जारी आदेश में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ट्रैकिंग का रास्ता साफ़ कर दिया है. कार्यालय प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखण्ड द्वारा इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि यदि “Alpine Meadows/ Subalpine Meadows/ Bugyals में रात्रि विश्राम की स्थिति न बनती हो तो इनसे भिन्न क्षेत्रों रात्रि विश्राम करने में कोई प्रतिबन्ध नहीं है”.
विभाग ने यह आदेश अपने 28 अगस्त के आदेश के सम्बन्ध में दिया है, जिसके तहत उच्च न्यायालय के उस वक़्त के आदेश के सन्दर्भ में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में की जाने वाली ट्रैकिंग पर रोक लगा दी गई थी. गौरतलब है कि उच्चन्यायालय ने ‘आली बुग्याल संरक्षण समिति’ द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए सभी बुग्यालों पर रात्रि विश्राम पर रोक लगा दी थी. न्यायालय का यह आदेश 21 अगस्त को आया था. बाद में न्यायालय ने इस आदेश को संशोधित कर धार्मिक यात्राओं को इससे मुक्त कर दिया था.
इसके बाद वन विभाग द्वारा उच्च हिमालयी क्षेत्रों में की जाने वाली सभी किस्म कि साहसिक यात्राओं के लिए पूर्व में दी गयी अनुमतियों को रद्द कर दिया था. साथ ही अब किसी को भी इन क्षेत्रों में जाने नहीं दिया जा रहा था. इससे पर्यटन कारोबारियों और इससे जुड़े सीमान्त ग्रामीणों में मायूसी छा गयी थी. वन विभाग के इस आदेश के बाद उन सभी साहसिक यात्राओं पर भी रोक लगा दी गयी थी जिनके रात्रि पड़ाव किसी भी बुग्याल में नहीं पड़ते.
प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखण्ड जय राज द्वारा कल जारी किये गए इस नए आदेश से उन ट्रैकिंग रूटों पर लगी रोक तत्काल हट गयी है जिनके रास्ते में रात्रि विश्राम की आवश्यकता नहीं है. इसके अनुसार उन उच्च हिमालयी ट्रैकों पर अभी प्रतिबन्ध जारी रहेगा जिनके पड़ाव बुग्यालों पर आवश्यक हैं. हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रतिबन्ध सिर्फ उन बड़ी कंपनियों पर लगाया जाना चाहिए जो अपने मुनाफे के लिए बड़े और सुविधाजनक टूर संगठित करती हैं और प्रकृति से खिलवाड़ करती हैं. स्थानीय ग्रामीणों द्वारा तो प्रकृति प्रेमियों के छोटे-मोटे दलों को ही यात्रा करवाते हैं और पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखते हैं.
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