उत्तराखण्ड में डेंगू के बढ़ रहे प्रकोप को देखते हुए हाईकोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार को एडवाइजरी जारी की है.केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह डेंगू पर नियंत्रण के लिए उत्तराखंड को पर्याप्त सहायता उपलब्ध कराए. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देशित किया है कि राज्य में डेंगू पर नियंत्रण के लिये सेंटिनल अस्पतालों की संख्या में वृद्धि करे.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने देहरादून निवासी रोहित ध्यानी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया. प्रदेश में डेंगू प्रभावित मरीजों के लिये जिलों में मौजूद अस्पतालों में पृथक वार्ड व बिस्तरों की पर्याप्त व्यवस्या नहीं है. एवं प्रत्येक अस्पताल में डेंगू प्रभावित मरीजों की भर्ती के लिये पृथक वार्ड के साथ ही पर्याप्त संख्या में बेड की व्यवस्था करने को भी कहा.
बीते वर्षों में डेंगू का कहर प्रदेश में इस कदर छाया रहा कि स्वास्थ्य विभाग के भी हाथ-पांव फूल गए. इसका सबसे अधिक असर देहरादून में दिखा. वर्ष 2016 में 1434 मरीजों में डेंगू की पुष्टि हुई. यहां तक की तीन लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी.गत वर्षों से सबक लेते हुए स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू को लेकर अभी से कसरत शुरू कर दी है. विभाग की ओर से इंटेंसिव सोर्स डिटेक्शन सर्वे कराया जा रहा है. जिससे संभावित क्षेत्रों पर डेंगू के अटैक से पहले ही वहां छिड़काव आदि कराया जा सके.
डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है. डेंगू बुख़ार को “हड्डीतोड़ बुख़ार” के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों. डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती है.
डेंगू पीड़ितों की सुविधाओं के लिए केंद्र सरकार की ओर से रक्षक नामित दून अस्पताल, जौलीग्रांट अस्पताल, सरकारी मेडिकल कॉलेज और बेस अस्पताल हल्द्वानी, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल रुद्रपुर और कोरोनेशन अस्पताल दून में डेंगू की जांच निशुल्क की जाती है.
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