विजया अर्थात संस्कृत में भंगा, मदकारिणी, मादनी, बंगाली में सिद्धि भांग, फ़ारसी में कनब, बंग,अरबी में किन्नाब व मराठी, गुजराती व हिंदी में भांग तो अंग्रेजी में Indian Hemp कही जाती है. इसका कुलनाम Cannabinaceae व कुलनाम Cannabis Sativa L है. पहाड़ में भी बहुतायत से पाई जाती है. इसके नर पौंधों की पत्तियों को सूखा कर भांग व मादा मंजरियों से गांजा एवं पत्तों पर राल को हाथों में रगड़ चरस प्राप्त होती है. इसके फल छोटे काले -भूरे दानेदार होते हैं जिनके भीतर सफ़ेद पदार्थ होता है.
भांग में कैनबिनोल नाम की राल होती है, इसके साथ शर्करा, उड़नशील तेल व कैल्शियम फॉस्फेट आदि होते हैं. यह कफ नाशक, पाचक, पित्तकारक, अग्निवर्धक व मद कारी है.
भांग के सूखे पत्तों को सुखा कर पानी में भिगा हरा रंग निकलने तक धोते हैं. फिर इन्हें सिलबट्टे में काली मिर्च के साथ तब तक पिसा घोटा जाता है जब तक यह गुलगुली न हो जाये और सिल लोड़े को छोड़ न दे. अब शुद्ध दूध में अनुपान भेद से हल्का हरा रंग आने तक घुटी भांग मिला लोटे में खूब झाग आने तक फैंटते हैं. फिर बादाम, चिरोंजी , खसखस, तालमखाना फिर बारीक़ दरदरा करें व दूध में मिला कर फिर झाग आने तक फेंटे. शिव को अर्पित करें.
हर -हर बम भोले का सस्वर उच्चारण करें. लखनऊ में चौक में शिव-शंकर ठंडाई वाले बताते हैं. बचुवा सायंकाल पहले दिशा-मैदान से निवृत हो लो. फिर शीतल जल से स्नान करो. अब माथे पे चन्दन का टीका लगाओ. शिव का ध्यान करो. उन्हें बेलपत्र, धतूरा, भांग पत्ती, मदार पुष्प चढ़ाओ. अब शिव लिंग पर संपूर्ण समर्पण से ठंडाई चढ़ाओ. आरती करो. डमरू बजाओ. भस्म लगाओ. बस शिव जु प्रसन्न. अब आप अपने बल सामर्थ्य के हिसाब से ठंडाई का सेवन कर सकते हैं. जैसा आपका चित्त होगा वैसे ही प्रभाव होंगे.
अनुपान भेद से बाहर इसे लेने पर यह शरीर को दुर्बल, मन को भावुक व लंगोट को कच्चा कर देती है. सच्चे शिव भक्तों की संगत से इसका प्रयोग शरीर व मन तो तरंगित कर शिव-कृपा का सम्पुट देता है.
भांग स्नायु पीड़ा मिटाती है. दमा का नाश करती है. हिस्टीरिया का वेग नहीं पड़ता. उदर शूल नहीं होता. संग्रहणी, उल्टी-दस्त नहीं होते. आमातिसार, मूत्रकृच्छ, विशूचिका व धनुस्तंभ में असरकारी है. इसकी पत्तियों के तिल व अरंडी से बने तेल से शरीर की सभी अंगों का शोथ दूर होता है व दर्द ख़तम कान में दो बून्द टपकाने से कानदर्द भी नहीं होता. ठंडाई के सेवन से खूब भूख लगती है. खट्टे पदार्थ न खाएं व सबसे आखिर में जम के मिस्टी खाएं, रबड़ी चाटें.
एक चक्कर बनारस का लगाएं. बाबा विश्वनाथ के दर्शन करें. प्रसादी पाएं. ठंडाई, भोजन के बाद बनारस की मिठाई खाइये. परम सिद्धि तृप्ति का अनुभव कीजिये. ॐ शिव शिव शिव शिवाय.
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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