राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र (एसईओसी) की जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड में 15 जून से अभी तक विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलन, मलवा गिरने, बाढ़ और बदल फटने से 69 लोगों की मौत हुई है.
इस मानसून सबसे अधिक मुश्किलें भूस्खलन से हुई. नेशनल ब्यूरो आफ सॉयल सर्वे एंड लैंड यूज प्लानिंग नागपुर के सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि आधा उत्तराखंड खतरनाक भूमि कटाव (मृदा क्षरण) की जद में है. करीब 49 प्रतिशत भूमि पर कटाव की दर सामान्य से कई गुना ज्यादा बढ़ गई है. जो विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस राज्य के लिए आने वाले दिनों में और भी बड़ी मुश्किलें ला सकता है.
वैज्ञानिको के अनुसार प्रदेश में पिछले पांच सालों के आंकड़ों और भौतिक सत्यापन के आधार किए गए सर्वे में जीआईएस और यूनिवर्सल स्वाइल लॉस इक्वेशन तकनीक का प्रयोग किया गया. ब्यूरो ने राज्य के भूमि कटाव का नक्शा भी तैयार किया है.
हर वर्ष प्रदेश में 49 प्रतिशत क्षेत्रफल में भूमि कटाव की दर 11.2 टन प्रति हेक्टेयर से ज्यादा है. 6.71 प्रतिशत क्षेत्रफल में दर 15 से 20 टन प्रति हेक्टयर है. 9 प्रतिशत में दर 20 से 40 टन है. 32.75 प्रतिशत क्षेत्रफल में भूमि कटाव की 40 से 80 टन प्रति हेक्टेयर प्रति साल पाया गया है.
भू-कटान में बागेश्वर प्रदेश का सबसे ज्यादा संवेदनशील जिला पाया गया है. सर्वे के अनुसार देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग और चमोली में भी काफी ज्यादा भूमि कटाव हो रहा है. इन जिलों में भूमि कटाव की दर 40 से 80 टन प्रति हेक्टेयर है और ये गंभीर की श्रेणी में है.
इससे ज्यादा आपदाएं आएंगी. जिससे इंसान को जान माल का खतरा बढ़ेगा. राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र (एसईओसी) की जानकारी इस बात पर मुहर भी लगाती है. एवं पलायन भी बढ़ेगा. खेती कम होने से स्थानीय लोगों की आर्थिकी कमजोर होगी.
सीधे तौर पर मिट्टी के कटाव से भूमि संसाधनों का क्षरण होगा. जमीन की उर्वरा शक्ति कम होगी और इससे हिमालय के इको सिस्टम को भी खतरा पैदा होगा. इससे नदियों के किनारे टूटेंगे. नदियां गहरी होंगी तो उनका बहाव कम होगा. एक समय बाद नदियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगी.
मुश्किलों में इजाफा तब और अधिक हो सकता है जब प्रदेश के अधिकांश नदियां बगैर पुलों के ही है. लोग सड़कों पर बाढ़ में बह रहे हैं. जल-निकासी के उचित प्रबंध के आभाव में लोगों की जान जा रही है. 13 सितंबर को हल्द्वानी के बसानी गांव में दो लोगों की मौत हो गई जब एक पुल न होने की वजह से सड़क पर बहने वाले पानी में उनकी बाइक बह गई थी. सरकारी मशीनरी का सुस्त रवैया भी इस मानसून में लोगों के लिए दिक्कतें पेश करता रहा है.
बागेश्वर के कपकोट व राज्य के कई हिस्से जो बेहद संवेदनशील है. उन हिस्सों में अभी ही तक आपदा से बचने के लिए अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना तक नहीं बन सकी है. खासतौर से जब बागेश्वर भूस्खलन के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील जिला पाया गया है.
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