सन् 1970 से पहले यहाँ बहुत से घरों में बिजली भी नहीं थी. 1956 में नैनीताल रोड पर डीजल पावर हाउस नामक भवन में डीजल से बिजली बनाने का संयंत्र लगाया गया था. सेंटपाल्स स्कूल के ठीक सामने खण्डहर में तब्दील होताजा जा रहा यह विशाल डीजल पावर हाउस आज भी मौजूद है. इस विद्युतालय पर पहले नगरपालिका का अधिकार था. तब जल और विद्युत व्यवस्था नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र में ही हुआ करती थी. Haldwani in 60’s
खण्डहर में तब्दील होने जा रहे इस विशाल भवन में लगे पत्थर में आज भी लिखा हुआ देखा जा सकता है कि ‘विद्युतालय हल्द्वानी म्युनिस्पल बोर्ड का शिलान्यास आत्माराम गोविन्द खरे, सचिव स्वायत्त शासन विभाग संयुक्त प्रान्त के करकमलों द्वारा रविवार श्रावण कृष्ण 7 संम्वत् 26 तदनुसार 17 जुलाई 1949 को किया गया. सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियर विभाग द्वारा निर्मित इस भवन के हरगोविन्द त्रिवेदी-चीफ इंजीनियर, रामदास वर्मा– सुपरिटेंडिंग इंजीनियर, जीवनचन्द्र पाण्डे– एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, अनिल प्रकाश अग्रवाल व श्यामलाल– असिस्टेंट इंजीनियर और जोगा शाह ठेकेदार थे.
आज विद्युतालय के इस भवन की छत उखड़ चुकी है लेकिन इसी बुनियाद और दीवारों की मजबूती देखने लायक है. इस भवन के बगल में विभाग का बहुत बड़ा कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव है. उस समय पंखा तो बिरले ही घरों में चलता था. हाथ के पंखों की काफी चौल थी. कई सरकारी कार्यालयों में छत पर एक डंडा बांध कर उस पर एक मोटा कपड़ा लटका दिया जाता था और एक आदमी रस्सी से उसे झलता रहता था.
कई घरों में खस की पट्टी लगा कर उस पर पानी छिड़क कर गर्मी से निजात पाने का प्रयास किया जाता था. अब हाथ के पंखे क्या होते हैं नई पीढ़ी जानती ही नहीं है. पंखे तो मामूली सी बात है कूलर से आगे लोग एसी की व्यवस्था करने लगे हैं, बावजूद इसके उन्हें गर्मी सताने लगी है.
पहले हल्द्वानी में लू नहीं चलती थी अब चलने लगी है. कारण साफ हैं पेड़ काट दिए हैं, न गर्म हवा को रोकने का प्राकृतिक साधन रह गया है और न जाड़ों में तराई से उठ कर आने वाले कोहरे को रोकने का साधन रह गया है. गर्मियों में लोग घरों से बाहर सड़के किनारे बाण से बुनी बांस की चारपाईयां बिछा कर सोते थे. मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी लगाते थे. न कोई डर था न भय. घरों के किवाड़ भी खुले रखते थे.
पहले नैनीताल से लोग जाड़ों में यहाँ आ जाते थे. अब लोग कहने लगे हैं कि जाड़ों में नैनीताल में अच्छी धूप है. पुराने जमाने में मच्छरों का प्रकोप लोगों को यहाँ बसने में बहुत बड़ा बाधक था और लोग अक्सर मलेरिया से पीड़ित हो जाते थे. किन्तु मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के बाद मच्छरों की संख्या में कमी आ गई और बीमारी वाले मच्छरों की संख्या में भी कमी आ गई साथ ही मलेरिया का इलाज भी ढूंढ लिया गया. तब अधिकांश लोगों को मलेरिया ही हुआ करता था. अब मलेरिया तो होता ही है उससे भी आगे डेंगू आदि का प्रकोप बढ़ गया है.
शहर के विस्तार के साथ ही विभिन्न लाईलाज बीमारियाँ भी फैलने लगी हैं और अस्पतालों की संख्या भी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. हर गली, मुहल्ले अस्पतालों से भर गए हैं. इन अस्पतालों में इलाज कराना भी आसान नहीं रह गया है.
हल्द्वानी में, जिसे आज शोबन सिंह जीना बेस अस्पताल के नाम से जाना जाता है, जिला बोर्ड का एक अस्पताल था. महिलाओं का अस्पताल नैनीताल रोड पर बाद में बना. जिला बोर्ड के इस अस्पताल को पहले नागरिक चिकित्सालय के नाम से जाना जाता था. मैंने इस अस्पताल में देवकी नन्दन पन्त को एकमात्र डाक्टर के रूप में देखा. बड़े सेवा भाव से वे मरीजों को देखते थे. उन्हीं के पुत्र डॉ. विपिन चन्द्र पन्त ने मंगल पड़ाव में सन् 1968 में दांतों का निजी अस्पताल खोला. तब हल्द्वानी शहर और आसपास की जनता मात्र इस नागरिक चिकित्सालय पर निर्भर थी. आज यह बहुत बड़ा बेस अस्पताल बन गया है. डाक्टरों-नर्सों की लम्बी कतार है, व्यवस्था चैप है और मरीज असन्तुष्ट. Haldwani in 60’s
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
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