Featured

गुरुद्वारा रीठा साहिब

रीठा साहिब उत्तराखण्ड में स्थित सिखों के पवित्र तीर्थस्थलों में एक है. चम्पावत जिले में लोहाघाट से इसकी दूरी 66 किमी है. यहाँ मौजूद रीठे के पेड़ की एक शाखा के फल मीठे जबकि दूसरी के कड़वे. इस बारे में किवदंती है कि जब गुरुनानक कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौट रहे थे तो उनके शिष्य मरदाना को भूख लगी. आसपास खाने के लिए कुछ भी उपलब्ध न होने पर गुरु नानक ने उन्हें सामने रीठे के पेड़ पर लगे फल खाकर अपनी भूख शांत करने को कहा. जिस शाखा से मरदाना ने फल खाए उसके फल मीठे थे. कहा जाता है कि तभी से इस शाखा के फल मीठे होते हैं.

अब लधिया और रतिया नदी के इस संगम पर एक विशाल गुरुद्वारा है. यहाँ साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को मीठे रीठे प्रसाद में दिए जाते हैं. यहाँ पर बैशाखी के दिन भव्य मेले और भंडारे का आयोजन किया जाता है.

मान्यता है भी है कि सन् 1501 में श्री गुरु नानक देव अपने शिष्य बाला और मरदाना के साथ रीठा साहिब आए थे. कहा जाता है कि इसी पेड़ के नीचे गोरखपंथी सिद्ध ढेरनाथ और गुरुनानक का सत्संग हुआ था. दोनों सिद्ध गुरु नानक और ढेरनाथ बाबा आपस में संवाद कर रहे थे. इस संवाद दौरान मरदाना को भूख लगी. उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा. गुरु नानक ने पास में खड़े पेड़ से रीठा फल तोड़ कर खाने को कहा. जहर की तरह कड़वा रीठा गुरु नानक के प्रताप से मीठा हो गया. जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम रीठा साहिब पड़ गया. साथ ही मान्यता है कि रीठा साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु ढेरनाथ के दर्शन कर अपनी इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago