दिवाली में पटाखों के फोड़ने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक फैसला दिया है जिसमें उन्होंने ग्रीन क्रैकर्स या हरित पटाखे शब्द का जिक्र किया था. दिवाली में पटाखों के दीवाने जब बाजार में ग्रीन पटाखे की खोज में निकले तो बाजार में हरित पटाखा नाम पर सूतली बम के अलावा कुछ न मिला. ग्रीन पटाखे को जब विश्व बाजार में ग्रीन क्रैकर्स नाम से अन्तराष्ट्रीय बाजार में खोजा गया तो पता चला कि ऐसा कोई पटाखा ही नहीं है. ख़ैर बाजार में बेचेने वाले से खरीदने वाला अब इस पटाखे के खोज में जुट गया है इसलिये उम्मीद की जानी चाहिये कि पटाखा है जल्द बाजार में आ जायेगा.
वैसे अभी तक की जानकारी के अनुसार सबसे पहले ग्रीन पटाखे का आइडिया देने का श्रेय केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को जाता है. उनके एक सार्वजनिक मंच पर बयान के बाद ही राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने इस ओर खोज शुरू की थी. नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है.
वर्तमान में नीरी ने ऐसे पटाखे खोजने की बात की है जो पारम्परिक पटाखों की तुलना में प्रदूषण कम करते हैं. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार नीरी के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू कहती हैं, “इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी. 40 से 50 फ़ीसदी तक कम. ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा. पर हां ये कम हानिकारक पटाखे होंगे.” ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं. नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे.
नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं. सेफ़ वाटर रिलीज़र पटाखे. ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. दूसरे STAR क्रैकर. जो सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखे हैं. तीसरे सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम पटाखे. इसमें एल्यूमीनियम का कम इस्तेमाल किया जाता है. चौथे अरोमा क्रैकर्स. इन पटाखों को जलाने से हानिकारक गैस कम पैदा होगी और ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे.
फिलहाल नीरी के पास ऐसा कोई पटाखा है नहीं जिसे वह बाजार में हरित या ग्रीन पटाखा नाम से बाजार में जारी कर सके. फ़िलहाल नीरी को हरित पटाखा जारी करने में अभी काफी समय लगेगा.
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सही बात कही, जब बात निकल गई तो ग्रीन पटाखे भी आ ही जायेंगे...?