Featured

पप्पन और सस्सू के न्यू ईयर रिज़ोल्यूशन

अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 13

अमित श्रीवास्तव

समय- दिन ढलने वाला था बाकी आपको घड़ी की घटिया आदत लग चुकी है तो उसी के हिसाब से कोई भी समय लगा लो

दिनांक- इकत्तीस दिसम्बर (साल बता दें तो आप पात्रों एवं घटनाओं की मिलान करवाने लग जाओगे इसलिए अपने जीवन काल में देखे किसी ग्रिगेरियन कैलेण्डर का आख़िरी पन्ना सोच लो)

स्थान- वही टुटहा चबूतरा जो लूडो-लंगड़-लतखोरी के साझे संस्करण वाले खेल तथा खाली टाइम में कल्लू कोतवाल की पीठ खुजाने के काम आता था

आज बड़ा ऐतिहासिक दिन था. समय बदलने वाला, दिन बदलने वाला, साल बदलने वाला. आज के दिन की परंपरा यही थी कि अगले समय दिन और साल के लिए कुछ कसमें खाईं जाएं. वायदे किये जाएं खुद से. आज खुद से बतियाने का दिन था. मुहल्ले के सारे लौंडे, लगभग हर टीम के सदस्य इकट्ठा थे और आत्म मंथन से निकले चिपचिपे पदार्थ से पुनः आत्मा मल रहे थे. बड़ा शायराना माहौल बन गया था. वाई आई पटेल पास वाले खेत से एक गन्ना उठा लाए थे. उन्हें ग से शुरू होने वाली चीजों से बड़ा `लगाव’ था. अगर उन्हें कहना पड़ता तो वो इसे `गलाव’ कहते. उस गन्ने को शमा मान लिया गया था जिसे बारी बारी सबके सामने रक्खा जा रहा था. रखते ही उसे माइक मान लिया जाता जिसे हाथ में लेकर, जी हाँ हाथ में, लड़के उसी से बोल रहे थे. इस सामूहिक कसम, जिसे वो बस बात का वजन बढ़ाने की गरज से सौगन्ध कह रहे थे, की रसम निभाने की प्रेरणा उन्हें भीष्म पितामह से मिली थी. नहीं मुकेश खन्ना से नहीं, गंगादीन उर्फ शक्तिमान से भी नहीं, बल्कि निगरानी समिति के उन सदस्यों से मिली थी जो बचपने से रिटायर होकर किनारे बैठे वो अड़सैली गा रहे होते जिसका संज्ञान कोई नहीं लेता था. ‘बात नहीं मानते तो क्या फॉलो भी नहीं कर सकते हैं’ ऐसा दोमुंहा वाक्य बोलते लड़के जिसके तुरंत बाद दो तीन खिस-खिस के साथ फुसफुसाते `कम से कम क्या नहीं करना तो इनसे सीखा ही जा सकता है.’

पहली कसम रज्जू दादा `रांझणा’ ने उठाई। उठाने के लिए जोर लगाना पड़ा, ऐसा लगता है, क्योंकि उस ज़ोर से उनकी ऑलरेडी बैठी हुई आवाज़ लेट गई. नए वर्ष में यह प्रण लेता हूँ, संकल्प लेता हूँ, सौगंध खाता हूँ कि हम सांप को दूध नहीं पिलाएंगे.’ व्यक्तिगत प्रण से शुरू होकर सामूहिक ज़िम्मेदारी पर ख़तम होने वाली इस कसम में ध्यान देने वाली बात सांप नहीं दूध था. दूध से लडकों से पप्पन याद आए और सांप से अनोखे. पप्पन चूंकि टीम बतकुच्चन के इस खेमे के नहीं थे और फिलहाल आस-पास भी नहीं थे इसलिए लड़कों ने अगले संकल्प की जानकारी के लिए अमृत लाल अनोखे की ओर नज़रें इनायत कीं.

अमृत लाल `अनोखे’ हाथ बांधे खड़े थे. ऐसे ही खड़े होते थे बांधकर. उनका बस चलता तो पैर भी बाँध लेते लेकिन फिर गिरने के डर से नहीं बांधते थे शायद. यद्यपि उनके विरोधी गुट के लड़के, जो चंद बचे थे, वो ये कहते कि ज़रूर कोई बाईलोजिकल रीज़न होगा क्योंकि गिरा हुआ तो ये आलरेडी है, अब कितना गिरेगा? मुंह खोलने से पहले अनोखे ने हाथ खोले दाहिना हाथ हवा में लहरा कर ऊपर उठाया और पाँचों उंगलियाँ समेटते हुए चेहरे के आगे ले आए फिर बाकी उँगलियों को विश्राम करने देते हुए तर्जनी खोल ली. ठीक नाक के समानांतर. दो पल मौन में गुज़ारने के बाद नए शब्दों में वही पुरानी कसम दुहराई `इस वर्ष मैं धागे ढीले नहीं करूंगा… मैं रास नहीं छोडूंगा’ लड़के जानते थे इसलिए आश्चर्य में नहीं आए कि ये कैसी सौगंध, आप भी आश्चर्य में आने से पहले जान लें कि अनोखे की कठपुतलियों की दुकान थी. इकलौते प्रोपराइटर हो गए थे इन दिनों. डिज़ाईनर, प्रोड्यूसर, सेलर, मार्केटिंग हेड सब वही थे. अंदरखाने ये बात भी सब लड़के जानते थे कि मामा बतकुच्चन इनके फिफ्टी परसेंट शेयरहोल्डर थे. आप जानना चाहें या नहीं ये आप पर निर्भर है. अनोखे ने इतना कहकर आसमान की ओर, जितना दिख सकता था बेचारा, देखा फिर नाक के समानांतर वाली उंगली दो बार आसमान में सूराख़ वुराख करने की नीयत से हिलाई और पुनः दुहराया `मैं… रास नहीं छोडूंगा’ ऐसा लगा कि जैसे बड़े ठंडे तरीके से बाबा सहगल ने `टड़ा डिन टिन टिन टड़ा डिन टिन’ के बाद `ठंडा ठंडा पानी’ दुहराया हो. मामला इतना बर्फीला था कि विरोधी गुट के लड़के, वही जो चंद बचे थे, सिहर उठे.

अज्जू ऊपर देख रहे थे. उन्हें देखकर तो यही लग रहा था कि वो ऊपर देख रहे थे. देखने वाले हालांकि ये भी देख ले रहे थे कि वो ये चेक कर रहे थे कि अनोखे ने जहां सूराख़ किया था वहां प्रौपरली हुआ या नहीं. थोड़ी ख़ामोशी सी रही इस देखने दिखाने के चक्कर में. इस दौरान अज्जू की निगाह ऊपर से नीचे उतरते-उतरते एकदम नीचे उतर गई. इतनी कि उनका सर झुक गया और लगा कि वो कुछ ढूंढ रहे हैं. थोड़ी देर इस खोज में ही बिताने के बाद मुंह की टोंटी सी खोली और कुछ मिलने और कुछ भी नहीं मिलने के समावेशी स्वर में अज्जू अब तक चुभलाए गए शब्दों का लिक्विड उड़ेलने लगे `नए साल में मैं दूसरे के बटुए में नहीं झाकूँगा !’ बात बहुत पिसी हुई थी इसलिए लोग आसानी से गटक गए, कहीं नहीं फंसी. लड़के अज्जू की इस आदत से परेशान थे. उसकी नज़र, बुरी नज़र फॉर दैट मैटर, दूसरे लौंडों की जेब पर रहती. थोड़ी देर बाद प्रश्न के बुलबुले से उठने लगे `यार इसे ग्लानि हुई या ज्ञान? आदत कैसे छूटेगी इसकी?’ ज़ाहिर है जवाब मिलने की सम्भावनाएं क्षीण थीं इसलिए अगले बंदे पर नज़र टिकाई गई.

गन्ने के इंतजाम के बाद वाई आई पटेल एक तरफ शांत बैठे थे जो उनकी फितरत के ख़िलाफ़ था. चिंता तो नहीं करते थे वाई आई क्योंकि कोई भी विचार उनके फिसलन भरे माथे पर ज़्यादा देर टिक नहीं पाता था, लेकिन `मेरा नम्बर कब आएगा’ वाली व्यग्रता माथे की सिलवटों में फंसी पड़ी थी. बतकुच्चन अपनी टीम के सदस्यों का आगा-पीछा जानते थे. उन्हीं के इशारे पर गन्ना उर्फ़ शमा उर्फ़ माइक वाई आई की ओर सरकाया गया. माइक हाथ में लिया मुस्कुराए फिर मुंह से एक अजीब गो-गो की आवाज़ निकालने के बाद शब्दों पर उतरे `हर बरस की भांति इस बरस भी हम यह कसम खाते हैं कि खेत में हरे तोतों को आने नहीं दूंगा और अगर आ गए तो अपने आदमियों से भगवा दूंगा. अगर मैं ऐसा न कर सका’, वाई आई ने बोलते-बोलते ही भृकुटियाँ इस तरह से तान दीं कि दो भ्रिकुटियों के बीच में माथे पर लगा तिलक कमान पर चढ़े हुए तीर के जैसा लगने लगा, `तो अपना नाम बदल दूंगा.’ आख़िरी वाक्य के साथ ही उनका संकल्प धमकी के रूप में स्थापित हो गया. विरोधी या अन्दर ही अन्दर सहयोगी लड़कों का गुट कुलबुलाहट करने लगा. इस संकल्प के बाद सबको वाई आई से ज़्यादा अपने नाम की चिंता सताने लगी.

वैसे तो माहौल ऐसा बनाने की कोशिश थी कि इस टीम का कोई विरोध विकल्प ना दिखे लेकिन फिर भी इसी बीच जाने कहाँ से बतखोर चा ख़रामा-ख़रामा आते दिखे. चूंकि आ ही गए थे इसलिए माइक उन्हें भी थमाया गया. वो थोड़ी देर तक चुपचाप कभी माइक कभी उस चबूतरे को देखते रहे जिसपर बैठने को उन्हें नहीं कहा गया था. फिर माइक का लटका हुआ काल्पनिक तार दो बार अपने पंजे में लपेटा और बड़े बेआबरू होकर बोले- `मैं…’ उसके बाद पुनः एक लम्बा चुप इतना लंबा कि लड़के उकता कर पूछ बैठे- `बोलोगे?’ घनश्याम ने चौंक कर देखा जैसा नींद से अचानक जागने पर चौंकने का रिवाज़ है फिर फुसफुसाए- `हां यही’ और आगे बढ़ गए. यही उनका नए साल का रिजोल्यूशन था. शार्ट एंड क्रिस्प. इस वाक्यांश की सीमा और सामर्थ्य समझने में समय व्यर्थ करने की जगह लड़कों ने उस दिशा में देखना उचित समझा जहां से गला साफ़ करने की आवाज़ आई जो आते-आते नाक साफ़ करने जैसी हो गई

-`मैं सदा सच बोलूंगा’

आवाज़ जहां से आई वहां से अक्सर आती थी इन दिनों. खूब ईको, रेजोनेंस और नसल इफेक्ट के साथ. सही पहचाना. बनवारी. बतकुच्चन मामा. इस टीम के लीडर. फ्रेंड, (दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया वाले) फिलोस्फर (भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः वाले) एंड गाइड (ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे-धीरे वाले). एक तिहाई मुंह खोलकर जो बात बोलते थे उसका दो तिहाई झूठ होता था. इस बार उन्होंने जब्त करके जज़्बात मात्र चार शब्द बोले थे. इसमें से दो तिहाई सौ फीसद वाला सच था और एक तिहाई सौ फीसद वाला झूठ. लेकिन इसमें सच और झूठ को इतने महीन तरीके से बुना गया था कि अलग-अलग समझना मुश्किल था. बारीक कारीगरी. बहुत देर तक लड़के शब्दों के तिलस्म में भटकते रहे बाहर आने का दरवाज़ा तलाशते रहे. नहीं मिला. फिर काट के लिए वैकल्पिक रास्तों की तलाश शुरू हुई. उन्हीं रास्तों पर सम्भवतः, ऐसा विश्वास से कहा नहीं जा सकता, पप्पन पांडे आते दिखे.

आजकल पप्पन पांडे के पर, दिखते नहीं थे क्योंकि प्रजातिगत घपला होने की सम्भावना थी, पर निकल आए थे जिसे कुतरने के लिए टीम बतकुच्चन ज़्यादातर जुबान की कैंची का इस्तेमाल करती दिखती थी. उड़ते हुए आए घटनास्थल पर. अपनी लिल्ली घोड़ी टुटहे चबूतरे के साइड में टिकाई और मुस्कुराने लगे. मुस्कुराना उनका ट्रेड मार्क था. लोगो. उनके चेहरे का तकिया कलाम. लोगो लगाए-लगाए बोले- `इस बरस मैं डांस करूँगा सस्सु के साथ. भईया किसी भी कीमत पर.’

`कर लेंगे पप्पन सस्सु के साथ डांस’ लोग दबी जुबान कहने लगे. जितना मुंह खोलकर लोग बोल रहे थे उतने से ज़ुबान उतना दब नहीं पाती थी इसलिए सुनने वाला इतना आश्चर्य प्रकट करता कि भौहें, अगर गंजा न हुआ तो, माथे की लटें चूमने लगतीं -`पप्पन और सस्सु? क्या बात कर रहे हो मियाँ?’
`
हाँ कर लेंगे. मैंने रिहर्सल देखी है.’ किसी ने कहा. तो किसी ने तत्काल शंका डाल दी- `पप्पन आजकल मून वॉक की प्रैक्टिस कर रहे हैं. जा पीछे को रहे हैं पर लग रहा है आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में सस्सु क्या सस्सु का रुमाल भी हाथ न आएगा. ना! उनसे ना हो पाएगा’

जो भी हो नया साल आने-आने को था और कुछ भी हो सकता था. गुडी गुडी में गुदगुदी बढ़ गई थी क्योंकि अभी बहुत से लड़के नए साल का संकल्प लेने से रह गए थे और ग्यारह बजकर उन्सठ मिन्ट हो चुके थे. बतकुच्चन और अनोखे ने समवेत स्वर में भजन शुरू कर दिया था –

रास नहीं छोडूंगा …
टन टन टन टन
रास नहीं छोडूंगा
खेल भले गोडूंगा
राल से कपाल की
खुजली मिटाता हूँ
आता हूँ आता हूँ
सपनों में आता हूँ …
टन टन टन टन
रास नहीं छोडूंगा!!

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 12

 

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता).

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

View Comments

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago