आजादी के बाद से ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान और शौर्य के नाम पर सरकारें हर साल 15 अगस्त को खूब वायदे करते आ रहे हैं लेकिन अब सरकारें उनकी बातें सुनना तो दूर उनकी सुध भी लेने में कतराने लगी हैं. इसका जीते जागते उदाहरण बागेश्वर जिले के गरूड़ तहसील के वज्यूला, पासतोली गांव निवासी 98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह चौहान हैं. अब मायूस हो वो पुराने दिनों को याद कर बस यही कहते रहते हैं, ‘इससे अच्छा तो अंग्रेजों का ही जमाना था…’
(Freedom Fighter Ram Singh Chauhan)
बैजनाथ चौराहे से तीन सड़कें, गरूड़, ग्वालदम और बागेश्वर को फटती हैं. यहीं से ही एक सड़क ग्रामीण क्षेत्र मटे-तिलसारी-वज्यूला को जाती है. सड़क के बुरे हाल हैं. गांव में पानी हो या न हो लेकिन यह सड़क कई जगहों पर तलैया बनी रहती है.
बागेश्वर जिले के 124 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. इनमें अब सिर्फ एक सेनानी, पासतोली गांव राम सिंह चौहान भी अब बुढ़ापे की दहलीज पर हैं. बीते दिनों उनके घर जाना हुवा. उनके पुत्र गिरीश चौहान से पहले फोन से बात हो चुकी थी तो घर में इंतजार करते मिले. राम सिंह चौहानजी के चार बेटे और चार बेटियां हैं जिनमें से उनके तीन पुत्र अब नहीं रहे. एकलौता पुत्र गिरीश स्वरोजगार से परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं. घर के आंगन में पहुंचे तो राम सिंहजी को देख महसूस हुवा कि अपनी शतायु के निकट अवस्था में भी उनमें गजब का आत्मविश्वास है.
उनके बेटे ने जब बताया कि पिताजी को अब सुनाई कम पड़ता है तो हमारे लिए ये मुश्किल आन खड़ी हुई कि गुलाम भारत के दिनों में उनके अनुभव और वर्तमान हालातों पर उनके नजरिए पर चर्चा कैसे हो पाएगी. उनके पुत्र ने हमारी बातों को उनके कानों में जोर से कहा तो सही लेकिन कोई फायदा न देख मैंने पूछा क्या ये पढ़ना-लिखना जानते हैं. इस पर बेटे ने बताया कि लिखते-पढ़ते तो रहते ही हर हमेशा. मैंने चौहानजी से लिख कर प्रश्न पूछने शुरू किए तो इससे काम आसान हो गया. बिना चश्मे के ही उन्होंने लिखा हुआ पढ़ा और अपनी रौ में नए-पुराने दिनों को याद करते हुए बोले कि
क्या होती है आजादी… क्या सपना था… आजादी के बाद देश में भ्रष्टाचार का दीमक इतना फैल गया है कि देश का विकास रुक सा गया है. अब भी वक्त है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के साथ ही आरक्षण को भी आर्थिक आधार पर कर दिया जाना चाहिए ताकि वास्तविक गरीबों को उनका हक मिल सके. आज के वक्त में किसी की कोई सुनवाई नहीं है. खुद मैंने दो बार मुख्यमंत्री को फैक्स किया कि गांव में पानी की समस्या है इसे दूर करवा दो लेकिन हुआ क्या? एक विभाग वाले आए और रोड किनारे हैंड पंप की खुदाई कर उसमें बंद हैंडपंप लगाकर चले गए. पानी का कहीं अता-पता नहीं. हद है, भ्रष्टाचार की. सब चोर बैठे हैं न सब विभागों में. कहीं कोई सुनवाई नहीं है इस जमाने में. हिंदुस्तान आजाद हो गया कहते हैं सब. साल में एक बार इसका ढिंढोरा पिटते रहेंगे. करेंगे कुछ भी नहीं. अब क्या है मेरा. कुछ समय बाद में भी चल दूंगा, लेकिन जो सपना उस समय हमने देखा था वो ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था. घुन सा लग गया है इस देश को तो…
(Freedom Fighter Ram Singh Chauhan)
मैं निरूत्तर सा हो उठा तो मैंने उनका जन्म, पढ़ाई और आजाद हिंद फौंज के बारे में लिखा तो उसे ध्यान से पढ़ने के बाद उन्होंने पहले लिखकर उत्तर देना शुरू किया, फिर बताते चले गए कि उनका जन्म 21 जून 1922 में बागेश्वर जिले के गरूड़ तहसील के वज्यूला, पासतोली गांव में हुवा. वज्यूला के प्राईमरी स्कूल में वो कक्षा दो तक ही पढ़ पाए. उनके पिताजी हवलदार तारा सिंह चौहान गढ़वाल राइफल में तैनात थे और दो बड़े भाई कैप्टन और सुबेदार के पद पर रहे. तब भारत को स्वतंत्र कराने के लिए हर ओर जनता आंदोलन कर रही थी. जिनके किस्से उन्हें भी घर में सुनने को मिलते रहते थे. आंदोलन से स्कूल भी बंद हो गया था तो वो भी आंदोलनकारियों के जुलूस में जाने लगे. उन्नीस वर्ष की आयु में नौ जनवरी 1941 में वो गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए. उनकी ट्रेनिंग अभी पूरी ही हुई थी कि इस बीच नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर देशभक्ति के जज्बे से ओतप्रोत हो वो 15 फरवरी 1942 को अपने साथियों के साथ मय हथियार के नेताजी की सेना में शामिल हो गए.
सुभाष चंद्र बोस के साथ अंग्रेजों से जंग शुरू की. अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर वर्मा, मुल्तान, कोलकत्ता आदि जेलों में रखा. यातानाएं दी लेकिन वे आजाद हिंद फौज से नहीं टूटे. 26 मार्च 1946 में जेल से रिहा हुए. उन्होंने सजा से बचने के लिए अंग्रेजों से कोई माफी नहीं मांगी.
(Freedom Fighter Ram Singh Chauhan)
उस वक्त को याद कर वो बताते हैं कि आजाद हिंद सरकार एक ऐसी अस्थाई सरकार थी जो आजादी के पहले ही गठित कर दी गई थी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की घोषणा की थी. वहां पर नेताजी स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेशी मामलों के मंत्री और सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने गए थे. वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया. तब सभी का उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था.
इतने में चाय के साथ ही बिस्कुट-नमकीन आ गई. चौहानजी इस बात पर नाराज थे कि ड्राई फ्रूट्स क्यों नहीं लाए. चाय पीते हुए वो फिर से अपनी बात दोहराते हुए बोले कि भले ही अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया था लेकिन उनके वक्त में काम में ईमानदारी होती थी, अब तो बिना रिश्वत के कोई काम ही नहीं होता है. उनके गांव में पानी की बहुत समस्या है. खुद वो दो बार मुख्यमंत्री को इसके बारे में लिख चुके हैं, लेकिन आज तक भी इस बारे में कोई कार्यवाही नहीं हुई.
बाद में उनके बेटे गिरीश ने उनके ताम्रपत्र सहित कई चीजें दिखाई जो उन्हें मिले थे. 15 अगस्त 1972 में स्वतत्रता दिवस के 25वें वर्ष पर ताम्रपत्र देकर उन्हें तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सम्मानित भी किया था. इसके साथ ही उन्हें कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा गया. चौहानजी से विदा ली तो उनके चेहरे में व्यवस्था के खिलाफ पीड़ा साफ झलकते महसूस हुई. देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में राम सिंह चौहान अकेले शख्स नहीं हैं जो आज की लालफीताशाही व्यवस्था से दु:खी हैं, उन्हें तो बस इसी बात का मलाल सालते रहता है कि आजाद हिंदुस्तान के सपने जो उन्होंने देखे थे वो ये तो कतई न थे.
(Freedom Fighter Ram Singh Chauhan)
बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.
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