[पिछली क़िस्त: जमरानी बाँध का अजब किस्सा ]
बची गौड़ धर्मशाला से लगी मटरगली नाम से धीरे-धीरे एक बाजार विकसित हो गयी. पहले यहाँ बीच बाजार से होकर जाने वाली नहर थी. उस बंद नहर के ऊपर कुछ लोग बैठकर सामान बेचने लगे. यहाँ मटर, रायता और चाय की दुकानों में तब अक्सर लोग बैठा करते थे. यहीं महादेव गिरी महाराज ने भैरव मंदिर की स्थापना की, जिसे भैरव चौक के नाम से जाना जाता है. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 12)
बची गौड़ धर्मशाला के पूर्व की ओर स्वराज आश्रम की स्थापना हुई. आजादी की लड़ाई के दौरान स्वराज आश्रम ही क्रांतिकारियों का केंद्र था. आजादी के बाद यह कांग्रेस पार्टी का कार्यालय बन गया. आजादी कि लड़ाई का जब हम जिक्र करते हैं तो कुछ गुमनाम लोगों कि चर्चा किया जाना भी जरूरी होता है. ऐसा ही एक व्यक्तित्व था दलीप सिंह कप्तान. Forgotten Pages from the History of Haldwani- 12)
दलीप सिंह कप्तान बड़े जीवट के आदमी थे. वे उन दिनों बमौरी गाँव में रहा करते थे. बमौरी गाँव घनी झाड़ियों और पेड़-पौंधों से घिरा था. सहज में ही वहां पुलिस या अन्य भेदिया नहीं पहुँच पाता था. वे क्रांतिकारियों को अपने घर पर पनाह दिया करते थे. उन दिनों एक कहावत प्रचलित थी ‘फ़ौज न फर्रा-कप्तान दलीप सिंह, दवा ना दारू वैध गंगा सिंह, जमीन न जायदाद-थोकदार जीवन सिंह’.
जिस तरह किसी फ़ौज के कप्तान न होते हुए भी दलीप सिंह कप्तान कहे जाते थे और एक महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिका का निर्वहन कर रहे थे उसी तरह अन्य लोग भी महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से माने जाते थे. 29 मार्च 1968 को दिलीप सिंह का निधन हो गया.
बाद में नगर पालिका ने बची गौड़ धर्मशाला में ही एक व्यायामशाला का भी प्रबंध कर दिया. नया बाजार में एक संगीत विद्यालय हुआ करता था. हल्द्वानी के इतिहास में संगीत कला केंद्र ही सबसे पुरानी वह संगीत संस्था है जिसने इस नगर में शास्त्रीय संगीत के पैर जमाने की प्रथम कोशिश की.
सांस्कृतिक कला केंद्र कि स्थापना 1957 में हुई. 1960 में प्रयाग संगीत समिति ने यहाँ परीक्षा केंद्र स्थापित किया. इस पाठशाला में शास्त्रीय, सुगम तथा लोक संगीत के अतिरिक्त हारमोनियम, तबला, सितार तथा बासुरी वादन की प्रथम वर्ष तक की शिक्षा का प्रबंध किया गया.
संगीत विभाग द्वारा हल्द्वानी के बाल विद्यालय के लिए कम पारिश्रमिक पर अध्यापकों का प्रबंध करने की योजना बनायी और 1969 में सरस्वती शिशु मंदिर तथा अन्य बाल्य विद्यालयों को अध्यापक उपलब्ध कराये गए.
1969 में काठगोदाम में भी एक सांयकालीन पाठशाला कुछ समय के लिए चलाई गयी और वहां नृत्य शिक्षा का प्रबंध भी विशेष रूप से किया गया. संगीत और नाटक के साथ-साथ साहित्य विभाग द्वारा एक रात्रि प्रौढ़ पाठशाला का सञ्चालन किया गया. कवि सम्मलेन, मुशायरा के साथ ही एक छोटा पुस्तकालय भी शुरू हुआ.
(जारी है)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
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